बेंगलुरु 15 फ़रवरी (वेदांत समाचार)। कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब विवाद पर आज, मंगलवार को फिर से सुनवाई होगी। इससे पहले हिजाब मामले में सोमवार को हाईकर्ट सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने सरकारी आदेश पर सवाल उठाए। वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने सोमवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय से कहा कि वे यह तय करने के लिए कालेज विकास समिति पर छोड़ रहे हैं कि हिजाब के लिए कोई अपवाद किया जाना चाहिए या नहीं। बता दें कि, चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की 3 जजों की बेंच राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दी दलीलें
दरअसल, सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने अदालत को अवगत कराया कि एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि हिजाब पहनना अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित नहीं है, और यह तय करने के लिए कालेज विकास समिति को छोड़ दिया गया कि क्या हिजाब के लिए एक अपवाद किया जाना चाहिए या नहीं। कामत ने कहा कि, हिजाब पहनना अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित नहीं है, और इसे कालेज कमेटी पर छोड़ना पूरी तरह से अवैध है।
मामले को टालने पर दिया गया जोर
सुनवाई के दौरान वकील ने हिजाब विवाद पर मीडिया और सोशल मीडिया पर हो रही टिप्पणियों को प्रतिबंधित करने के लिए एक आवेदन का उल्लेख किया। उन्होंने अन्य राज्यों में हो रहे चुनावों के बाद मामले को स्थगित करने की गुजारिश की। हालांकि, इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर चुनाव आयोग ने या कुछ अधिकारियों ने यह अनुरोध किया होता, तो पीठ इस पर विचार कर सकती थी। कोर्ट ने कहा कि वह मीडिया को प्रतिबंधित नहीं कर सकता। इस बीच, कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या एक आवश्यक धार्मिक प्रथा कानून द्वारा नियमन के लिए पूर्ण या अतिसंवेदनशील है। एडवोकेट कामत ने जवाब दिया कि जहां तक मुख्य धार्मिक प्रथाओं का सवाल है, यह अनुच्छेद 25 (1) के तहत है और यह पूर्ण नहीं है। एडवोकेट कामत ने स्पष्ट किया कि यदि मूल धार्मिक प्रथाएं सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं या ठेस पहुंचाती हैं तो उन्हें विनियमित किया जा सकता है।
‘कुरान’ का आया जिक्र
हाई कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या कुरान में कही गई हर बात एक जरूरी धार्मिक प्रथा है? वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने जवाब दिया कि मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। उन्होंने दोहराया कि इस्लामिक आस्था के मुताबिक हिजाब पहनना आवश्यक है। एडवोकेट कामत ने कोर्ट को बताया कि दाखिले के बाद से याचिकाकर्ता पिछले दो साल से सिर पर स्कार्फ पहने हुए हैं, और कालेज जा रहे हैं। अधिवक्ता कामत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे एक ही रंग की कपड़े से सिर ढकेंगे। कर्नाटक उच्च न्यायालय शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई जारी रखेगा।
जनवरी में शुरू हुआ था विवाद
बता दें कि, कर्नाटक में हिजाब का विरोध इस साल जनवरी में शुरू हुआ। जब राज्य के उडुपी जिले के सरकारी गर्ल्स पीयू कालेज की कुछ छात्राओं ने आरोप लगाया कि उन्हें कक्षाओं में जाने से रोक दिया गया है। विरोध के दौरान कुछ छात्रों ने दावा किया कि उन्हें हिजाब पहनने के लिए कालेज में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था। इस घटना के बाद विजयपुरा स्थित शांतेश्वर एजुकेशन ट्रस्ट में विभिन्न कालेजों के छात्र भगवा स्टोल पहनकर पहुंचे। यही स्थिति उडुपी जिले के कई कालेजों में भी देखने को मिली। हालांकि, प्री-यूनिवर्सिटी शिक्षा बोर्ड ने एक सर्कुलर जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि छात्र केवल स्कूल प्रशासन द्वारा अनुमोदित वर्दी पहन सकते हैं और कालेजों में किसी भी अन्य धार्मिक प्रथाओं की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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