हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) स्थित27 दवा कंपनियों (Pharmaceutical Companies) द्वारा निर्मित 9 दवाएं जनवरी में सब-स्टैंडर्ड पाई गई हैं (failed drug samples). सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) के मुताबिक परीक्षण में विफल रहने वाली दवाओं में फेविपिरवीर (Favipiravir) शामिल है जिसका उपयोग कोविड -19 के इलाज में किया जाता है. अन्य दवाओं का उपयोग हार्ट अटैक, गैस्ट्रिक, गाउट और हाई बीपी के उपचार में किया जाता है. इनमें से सात दवाओं का निर्माण सोलन (Solan) जिले के नालागढ़ और बद्दी में दवा यूनिट में, एक सिरमौर के पांवटा साहिब में और एक कांगड़ा जिले में स्थित एक कंपनी में किया गया था.
परीक्षण में विफल रहने वाली शेष 18 दवाओं का निर्माण उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु की इकाइयों में किया गया है. सीडीएससीओ ने दवाओं के 1,227 नमूने लिए थे, जिनमें से 1,200 गुणवत्ता परीक्षण में सफल रहे और 27 विफल रहे. हिमाचल प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर नवनीत मारवाह ने संबंधित दवा कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और उन्हें घटिया पाई गई दवाओं के पूरे बैच को वापस लेने को कहा है. मारवाह ने कहा कि अधिकारी रिकॉर्ड की जांच कर रहे हैं. बेतरतीब ढंग से दवाओं और दवाओं के नमूने लिए गए. फर्मों को दवाओं के पूरे बैच को वापस लेने के लिए कहा गया है.
जुलाई 2020 में छह दवा उद्योगों में निर्मित दवाएं पाई गई सब-स्टैंडर्ड
इससे पहले जुलाई 2020 में हिमाचल के छह दवा उद्योगों में निर्मित दवाएं सब-स्टैंडर्ड पाई गई थी. ये उद्योग बद्दी, ऊना और कांगड़ा के थे. इसके अलावा सीडीएससीओ की पड़ताल में महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व गोवा के दवा उद्योगों में निर्मित 14 तरह की दवाएं भी गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतर पाई गई थी.
जो दवाएं सब-स्टेंडर्ड पाई गई हैं, उनमें कैल्शियम, विटामिन, एलर्जी, एंटीबायोटिक, यूरिनरी इन्फेक्शन, घबराहट व थायराइड के उपचार की दवाएं शामिल हैं. तब जून महीने में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने देश भर के अलग-अलग राज्यों से 790 दवाओं के सैंपल एकत्रित किए थे. इनमें से जांच के दौरान 20 दवाएं सब-स्टैंडर्ड पाई गईं, जबकि 770 दवाएं गुणवत्ता के पैमाने पर सही पाई गई थी.
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