यहां है देश के 25 हजार शहीद सैनिकों के नाम जिन्होंने देश के लिए दी कुर्बानी…

नई दिल्ली23 जनवरी (वेदांत समाचार)।कहते हैं कि किसी शहीद के घर जाना, चार धाम की यात्रा से बढ़कर होता है। आज हम आपको भारत के नए राष्ट्रीय शहीद स्मारक लेकर चलेंगे, जहां पर देश के 25 हजार शहीद सैनिकों के नाम अंकित हैं।इस लिहाज से आप इसे भारत का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल भी कह सकते हैं।

आज इस वॉर मेमोरियल की मशाल में, अमर जवान ज्योति का विलय कर दिया गया। ये भारत के इतिहास में एक बहुत बड़ा अध्याय है। इससे पहले अमर जवान ज्योति, इंडिया गेट पर प्रज्ज्वलित थी, जो असल में हमारी आजादी की नहीं बल्कि गुलामी की याद दिलाता है। अब समय आ गया है कि भारत के लोग, अपनी गुलामी की परछाई से निकल कर अपनी शौर्यगाथा, अपनी भाषा में खुद लिखें।

इसी दिशा में अब 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन के मौके पर उनकी प्रतिमा, इंडिया गेट के ठीक सामने स्थापित की जाएगी। एक जमाने में इसी जगह पर ब्रिटेन के शासक किंग जॉर्ज द फिफ्थ की प्रतिमा लगी हुई थी। आज हम आपको बताएंगे कि भारत कैसे, अब धीरे-धीरे अपने इतिहास में की गई गलितयों को सुधार रहा है, लेकिन हमारे देश के विपक्षी दलों को इसमें भी परेशानी है। आज दिनभर अमर जवान ज्योति पर राजनीति होती रही।

अमर जवान ज्योति को 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के सम्मान में प्रज्ज्वलित किया गया था। इसकी शुरुआत 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। तभी ये परम्परा शुरू हुई कि 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के मौके पर जब तक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और तीनों सेनाओं के प्रमुख अमर जवान ज्योति पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि नहीं देते, तब तक गणतंत्र दिवस के समारोह की शुरुआत नहीं होती, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए नेशनल वॉर मेमोरियल जाएंगे।

विपक्ष इस ऐतिहासिक घटना को 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों का अपमान बता रहा है, लेकिन इससे बड़ा विरोधाभास क्या होगा कि, जो अमर जवान ज्योति पिछले 50 वर्षों से इंडिया गेट पर जिन शहीदों के सम्मान में जल रही थी, उस इंडिया गेट पर उन शहीदों के नाम तक अंकित नहीं हैं।

इंडिया गेट का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा पहले विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो अफ़ग़ान वॉर में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में करवाया गया था। आपको याद रखना चाहिए कि इन युद्धों में भारतीय सैनिक अपनी स्वेच्छा से शामिल नहीं हुए थे। युद्ध लड़ने का फैसला भी ब्रिटिश सरकार का था और इस युद्ध में जो भारतीय सैनिक शहीद हुए, वो भी अंग्रेजी हुकूमत के लिए लड़ रहे थे। यानी इंडिया गेट, भारत का स्वाभिमान तो है लेकिन ये आज भी भारत को अंग्रेजों की गुलामी की याद दिलाता है।

जबकि नेशनल वॉर मेमोरियल देश के उन सभी शहीदों को समर्पित है, जिन्होंने आजादी के बाद देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की कुर्बानी दी। इस वॉर मेमोरियल में कुल 25 हजार 942 शहीदों के नाम अंकित हैं और ये वो सैनिक हैं, जिन्होंने 1947, 1962, 1965, 1971 और 1999 के करगिल युद्ध में सर्वोच्च बलिदान दिया। यहां उन शहीदों को भी याद किया गया है, जिन्होंने आतंकवाद के खिलाफ चलाए गए सैन्य अभियानों में देश के लिए अपनी शहादत दी। जो सैनिक श्रीलंका में भारत के पीस कीपिंग फाॅर्स ऑपरेशन्स के दौरान शहीद हुए।

अब एक बार फिर से सोचिए कि गणतंत्र दिवस पर देश के प्रधानमंत्री को सिर्फ उस मशाल पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए, जो केवल 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में शहीद सैनिकों को समर्पित है या देश के प्रधानमंत्री को नेशनल वॉर मेमोरियल जाकर श्रद्धांजलि देनी चाहिए, जहां आजादी के बाद शहीद हुए सभी सैनिकों को स्मरण किया गया है।

यहां दो और बातें आज आपको पता होनी चाहिए. पहली बात, अमर जवान ज्योति को बुझाया नहीं गया है बल्कि इसका विलय किया गया है। यानी शहीदों के सम्मान की ये ज्योति वॉर मेमोरियल की मशाल में समाहित रहेगी और इसका प्रकाश कभी नहीं मिटेगा। दूसरी बात, जिस कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद सात दशकों तक शहीदों के लिए नेशनल वॉर मेमोरियल नहीं बनाया, वो आज शहीदों के अपमान की बात कर रही है।

आज कांग्रेस राहुल गांधी ने अपने एक ट्वीट में लिखा कि बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर जवान ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा। कुछ लोग देशप्रेम और बलिदान नहीं समझ सकते-कोई बात नहीं, हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएंगे।

राहुल गांधी इसे शहीदों का अपमान बता रहे हैं, लेकिन असल में शहीदों का अपमान तो उन्हीं की पार्टी ने कई बार किया। वर्ष 1947 से 2010 के बीच इस देश में कई नेताओं की याद में मेमोरियल और म्यूजियम बनाए गए, लेकिन देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों की याद में एक स्मारक तक नहीं बनाया गया।

वर्ष 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद दिल्ली के तीन मूर्ति में स्थित उनके प्रधानमंत्री आवास को उनका मेमोरियल घोषित कर दिया गया। आज इसे द नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की याद में दिल्ली में इंदिरा गाँधी मेमोरियल की स्थापना की गई। ये मेमोरियल दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उसी बंगले में है, जहां इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। ये भी उस समय प्रधानमंत्री आवास था।

इसी तरह वर्ष 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की याद में राजीव गाँधी मेमोरियल की स्थापना की गई, जो चेन्नई में उसी जगह पर मौजूद है, जहां 1991 में उनकी हत्या हुई थी। इसे हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे, जब ये Memorial बन रहे थे। तब कांग्रेस पार्टी ने नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया।

इस स्मारक के लिए भारत को पूरे 68 वर्ष दो महीनों तक इंतजार करना पड़ा। जबकि भारतीय सेना ने वर्ष 1960 में ही देश का एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने का प्रस्ताव, उस समय की नेहरू सरकार के सामने पेश कर दिया था। तब सेना की इस मांग पर नेहरू सरकार ने गौर नहीं किया और ये मांग पूरी नहीं हो पाई। इसके बाद वर्ष 2006 में यूपीए की सरकार में मंत्रियों का एक समूह बनाया गया, जिसे इस मांग की समीक्षा करनी थी। इसके बाद भी कई वर्षों तक नेशनल वॉर मेमोरियल की फाइल एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय तक घूमती रही। कभी इसके स्थान को लेकर विवाद उठा तो कभी केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने ही इस स्मारक को बनाने का विरोध किया।

साल 2012 में जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ने इस स्मारक को सैद्धांतिक मंजूरी दी, तब भी उस समय की दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने इस प्रोजेक्ट का विरोध किया और ये स्मारक UPA सरकार में नहीं बन सका। लेकिन वर्ष 2015 में मोदी सरकार ने ना सिर्फ नेशनल वॉर मेमोरियल के लिए इंडिया गेट के पास ही जगह दी। बल्कि 500 करोड़ रुपये के बजट को भी मंजूर किया. हालांकि इस स्मारक को बनाने पर 176 करोड़ रुपये ही खर्च हुए।

ये वॉर मेमोरियल शहीदों को समर्पित एक सच्ची श्रद्धांजलि है तो वहीं इंडिया गेट, भारत को आज भी अंग्रेजों की गुलामी याद दिलाता है। इंडिया गेट की नींव वर्ष 1921 में ढुके ऑफ़ कनौघट द्वारा रखी गई थी। इसका डिजायन एडविन लुट्येन्स (एडविन लुटियंस) ने तैयार किया था।

इंडिया गेट पर इस समय कुल 13 हजार 516 शहीदों के नाम अंकित हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इनमें से काफी नाम ब्रिटिश सैनिकों के भी हैं, जो 1914 से 1918 के बीच पहले विश्व युद्ध और 1918 से 1919 तक चले तीसरे एंग्लो अफ़ग़ान वॉर में शहीद हुए थे। जबकि नेशनल वॉर मेमोरियल, पूरी तरह से आजादी के बाद शहीद होने वाले सैनिकों के लिए समर्पित है।

पिछले साल नवम्बर महीने में जब शहीदों को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तब उनके परिवार इस नेशनल वॉर मेमोरियल भी पहुंचे थे। इससे पहले ऐसा नहीं होता था, क्योंकि देश में शहीदों के लिए कोई राष्ट्रीय स्मारक था ही नहीं। हम आपको ऐसे ही दो वीडियो दिखाते हैं, इनमें एक वीडियो में शहीद मेजर अनुज सूद की पत्नी इस स्मारक पर पहुंची थी और जहां अनुज सूद का नाम लिखा है, वहां उन्होंने समय बिताया था। अनुज सूद एक मई 2020 को आंतकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इसके अलावा शहीद लांस नायक संदीप सिंह की पत्नी और उनका बेटा भी इस स्मारक पर पहुंचे थे। पहले ये परिवार, इस तरह शहीदों को स्मरण नहीं कर पाते थे।

अगर भारत ने आजादी के बाद दूसरे देशों से युद्ध नहीं लड़े होते और तब इस देश में नेशनल वॉर मेमोरियल नहीं बनाया जाता, तो शायद इस पर कभी सवाल नहीं उठते. उदाहरण के लिए स्विट्ज़रलैंड ने वर्ष 1815 में ही युद्ध को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी थी कि वो कभी किसी सैन्य संघर्ष का हिस्सा नहीं बनेगा। इसीलिए पहले और दूसरे विश्व युद्ध में उसने हिस्सा नहीं लिया था। हालांकि इस दौरान पहले विश्व युद्ध में स्विट्ज़रलैंड के दो हजार नागरिक, फ्रांस, जर्मनी और दूसरे देशों की सेना में अपनी स्वेच्छा से शामिल हो गए थे, जिनमें से 365 नागरिकों ने युद्ध लड़ते हुए अपनी शहादत दी थी। लेकिन आप जानते हैं, इसके बाद स्विट्ज़रलैंड ने क्या किया था।

स्विट्ज़रलैंड ने इन 365 नागरिकों के लिए एक वॉर मेमोरियल की स्थापना की, जो आज Zurich (ज्यूरिख) में स्थित है और ‘फोर्च’ मेमोरियल के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाता है. लेकिन दूसरी तरफ भारत ने आजादी के बाद 1947 में ही पाकिस्तान से युद्ध लड़ा, जिसमें एक हजार से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इन शहीदों की याद में तब कोई मेमोरियल नहीं बनाया गया।

इस समय दुनिया के अधिकतर देशों में उनकी सरकार द्वारा बनाया गया नेशनल वॉर मेमोरियल मौजूद है। अमेरिका में पहले विश्व युद्ध, दूसरे विश्व युद्ध, कोरियाई युद्ध और बाकी दूसरे युद्धों में शहीद होने वाले सैनिकों के लिए विशाल और भव्य मेमोरियल बनाए गए हैं। इन मेमोरिअल्स को बनाने में अमेरिका ने भारत की तरह दशकों का इंतजार नहीं किया गया।

अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में स्थित वियतनाम वॉर मेमोरियल, वहां का सबसे बड़ा युद्ध स्मारक है। यहां वियतनाम युद्ध में शहीद हुए अमेरिका के 58 हजार सैनिकों के नाम लिखे गए हैं। इनमें फ्रांस भी है, जहां फ्रेंच नेशनल वॉर सिमेट्री को वहां के शहीदों को समर्पित किया गया है।

रूस का नेशनल वॉर मेमोरियल, मास्को में है। इसे फ़ेडरल मिलिट्री मेमोरियल सिमेट्री के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा 50 लाख की आबादी वाले नई ज़ीलैण्ड के पास भी उसका नेशनल वॉर मेमोरियल है, जो Wellington (वेलिंग्टन) में मौजूद है। ये वर्ष 1932 में शुरू हुआ था। भारत को अपने पहले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए 68 वर्षों का इंतजार करना पड़ा। इसलिए अमर जवान ज्योति की लौ का विलय, भारत के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है।