छत्‍तीसगढ़ में सामान्य वर्ग के गरीब

रायपुर 22 जनवरी (वेदांत समाचार)।  छत्‍तीसगढ़ में हाई कोर्ट के आदेश पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) की गणना की प्रक्रिया ने सामान्य वर्ग के गरीबों की जागरूकता की वास्तविक स्थिति को सामने ला दिया है। एक तरफ जहां अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग अनुमान से कहीं अधिक संख्या में सामने आए हैं, वहीं ईडब्ल्यूएस के 50 फीसद लोगों की ही पहचान हो सकी।

वह भी राशन कार्ड और अन्य माध्यमों से सरकारी तौर पर ही पहचान कर ली गई, ऐसा प्रतीत हो रहा है। सामान्य वर्ग के गरीबों की इस गणना में किसी भी स्तर पर भागीदारी ही नहीं दिखी और गणना की अवधि समाप्त हो गई।

मुश्किल है कि ऐसी आधी-अधूरी गणना के आधार पर हाई कोर्ट की तरफ से आरक्षण की अनुमति मिल पाएगी। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2019 में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण का दायरा 14 फीसद से बढ़ाकर 27 फीसद करते हुए ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए भी 10 फीसद आरक्षण लागू किया था।

सरकार के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट के आदेश पर पिछड़ा वर्ग और ईडब्ल्यूएस की गणना एक सितंबर से शुरू की गई और दो बार समय सीमा बढ़ाए जाने के बाद अब 15 जनवरी को समाप्त हुई है। इसमें ईडब्ल्यूएस वर्ग के साढ़े 18 लाख राशन कार्ड में से साढ़े नौ लाख की ही गणना की जा सकी।यह भी कहा जा सकता है कि आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग इतना दबा-कुचला, शोषित और निराश है कि उसे सरकार से बहुत ज्यादा मदद और सहारे की उम्मीद ही नहीं है। अगर है भी तो उसे यह नहीं पता कि मदद कहां से और कैसे मिलेगी। वैसे भी इस वर्ग की गणना का आधार यदि राशन कार्ड को माना जाए और वह भी मोबाइल से लिंक है तो फिर यह कैसे संभव हुआ कि उसकी वास्तविक गणना नहीं हो पाई।

राज्य में आर्थिक रूप से बेहद कमजोर व निरक्षर लोगों की संख्या काफी है, जिनके पास आज भी राशन कार्ड नहीं हैं। ऐसे में क्या वे ईडब्ल्यूएस वर्ग के नहीं हैं? असली चुनौती तो उन्हें भी वास्तविक गण्ाना के आधार पर आरक्षण के दायरे में लाकर लाभान्वित करने की है।दरअसल सरकार ने ईडब्ल्यूएस वर्ग की गणना के लिए कोई ठोस मापदंड निर्धारित नहीं किया है। एक तरफ स्थापित सत्य है कि अनुसूचित जाति, जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण का लाभ लगातार जारी रखने के लिए इन वर्गों के नेता किसी स्तर तक राजनीति से बाज नहीं आते, वहीं दूसरी तरफ संपन्न कहे जाने वाले सामान्य वर्ग के नेता और प्रतिनिधि इस वर्ग के गरीबों के प्रति उपेक्षा का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। यह उनकी संवेदना पर भी सवाल है। न्यायपालिका से ही उम्मीद है कि वह अपनी निगरानी में सर्वे कराकर वास्तविक स्थिति सामने लाए।