जब स्वामी विवेकानंद ने क्रिकेट में छुड़ाए अंग्रेजों के छक्के, ईडन गार्डन में घातक गेंदबाजी कर गिराए थे 7 विकेट

Swami Vivekananda Jayanti 2022: उठो, जागो और तब तक संघर्ष करो, जब तक मंजिल मिल न जाए… जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी… हजारों ठोकरें खाने के बाद ही एक अच्छे चरित्र का निर्माण होता है… स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के ऐसे कई सारे कोट्स हैं, विचार हैं, जो हमें प्रेरित करते हैं. आज उनकी जयंती है और इस अवसर पर देशभर में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाया जाता है.स्वामी विवेकानंद देश और दुनिया के लिए आदर्श माने जाते हैं. एक प्रखर वक्ता, विद्वान, प्रेरक व्यक्तित्व, लेखक, गीतकार, राष्ट्रभक्त… और न जाने कितने ही रूपों में दुनिया उन्हें जानती है और फॉलो करती है. लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि एक खिलाड़ी के तौर पर विवेकानंद कैसे थे?

तब वे युवक नरेंद्रनाथ दत्त (Narendra Nath Datta) हुआ करते थे. युवावस्था में न केवल क्रिकेट, बल्कि फुटबॉल, बॉक्सिंग और फेंसिंग में भी विवेकानंद की दिलचस्पी रही. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वामी विवेकानंद एक अच्छे क्रिकेटर रहे हैं. क्रिकेट में वे ऑलराउंडर हुआ करते थे. जीवन में उनके आदर्शों से प्रभावित होने वाली युवा पीढ़ी भी उनके जीवन के इस पहलू से अनजान रहे हैं. तो आइए जानते हैं, क्रिकेटर नरेंद्रनाथ के रूप में स्वामी विवेकानंद के एक शानदार प्रदर्शन के बारे में.

देश की राजधानी ‘कलकत्ता’ में हुआ था मैच

रिपोर्ट के अनुसार, स्वामी विवेकानंद क्रिकेट में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा चुके हैं. उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) के इडेन गार्डन में 7 अंग्रेज बल्लेबाजों को क्रीज से वापस पवेलियन भेजा था. करीब 135 साल पहले उन्होंने यह कमाल किया था. तब कलकत्ता ही देश की राजधानी हुआ करता था. यह बात है कि 1880 के दशक के मध्य की, जब ईडन गार्डन को बने करीब 20 वर्ष हुए थे. तब नरेंद्र नाथ टाउन क्रिकेट क्लब के सदस्य हुआ करते थे और शा​रीरिक ग​तिविधियों पर बहुत ध्यान दिया करते थे.

ब्रिटिश इंडिया में क्रिकेट अंग्रेजों के लिए मनोरंजन का विषय था. अंग्रेजों का यह खेल समय के साथ भारत में भी पसंद किया जाने लगा और देश के विभिन्न हिस्सों में खेला जाने लगा. कलकत्ता में भी क्रिकेट के कई क्लब खुल गए और बड़ी संख्या में युवा इस खेल में भागीदारी करने लगे. कलकत्ता के ईडन गार्डन में ही हुए एक मैच में नरेंद्र नाथ ने अंग्रेज क्रिकेटर्स वाली टीम के खिलाफ 7 विकेट लिए थे.

कैसे क्रिकेट में आए विवेकानंद?

इस मैच के बारे में जानने से पहले थोड़ा और पीछे चलते हैं. अंग्रेजों ने 1792 में कलकत्ता क्रिकेट क्लब बनाया था. यह ब्रिटेन के बाहर बना सबसे पुराना क्रिकेट क्लब है. The Bridge की रिपोर्ट के मुताबिक, कलकत्ता का दूसरा क्रिकेट क्लब 1884 में बना, जिसे बंगालियों ने बनाया था और इसे नाम दिया टाउन क्लब. गणित के प्रोफेसर शरद रंजन रे भी इसमें शामिल थे. वह सत्यजीत रे के दादा उपेंद्रकिशोर के बड़े भाई थे और एक सक्षम खिलाड़ी भी थे. उन्होंने अंग्रेजों को उन्हीं के पारंपरिक खेल में हराने की चाहत से यह क्लब बनाया था.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस क्रिकेट क्लब में समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी थी. ब्रिटिश इंडिया में तब युवाओं के दिलों में राष्ट्रीय भावनाएं हिलोर मार रही थीं. विवेकानंद राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत युवा थे और अन्य युवाओं को भी प्रभावित करने का माद्दा रखते थे. तब स्वतंत्रता सेनानी रहे हेमचंद्र घोष ने जब नरेंद्र नाथ दत्त यानी स्वामी विवेकानंद से क्रिकेट खेलने के लिए पूछा तो वे खुशी-खुशी राजी हो गए. इसके बाद उन्हीं के मार्गदर्शन में वे एक अच्छे गेंदबाज बने. उनकी बै​टिंग भी अच्छी थी.

नरेंद्रनाथ की घातक गेंदबाजी, 7 अंग्रेजों को भेजा पवेलियन

कलकत्ता क्रिकेट क्लब (Calcutta Cricket Club) और टाउन क्लब (Town Club) के बीच ईडन गार्डन में मुकाबला तय हुआ. उस ऐतिहासिक मैच में नरेंद्र नाथ ने टाउन क्लब टीम की ओर से ब्रिटिश खिलाड़ियों वाली कलकत्ता क्रिकेट क्लब के खिलाफ मैदान पर उतरे. इस मैच के दौरान घोष ने विवेकानंद से कहा कि वह अपनी गेंदबाजी पर फोकस्ड रहें. इसके बाद तो नरेंद्रनाथ ने मैदान पर कहर बरपा दिया. उन्होंने एक के बाद एक कर 7 विकेट लिए.

खास बात ये कि अंग्रेज उस वक्त तक स्कोर बोर्ड पर 20 रन ही टांग पाए थे. 20 रन पर 7 ब्रिटिश खिलाड़ियों के वापस पवेलियन पहुंच जाने के बाद अंग्रेजी पारी बिल्कुल ही लड़खड़ा गई. इस मैच के परिणाम के बारे में स्पष्ट विवरण तो नहीं मिलता, लेकिन बताया जाता है कि टाउन क्लब ने इस मैच में नरेंद्र नाथ की घातक गेंदबाजी की बदौलत शानदार प्रदर्शन किया था.

​हालांकि क्रिकेटर के तौर पर तो नरेंद्र नाथ ने अपनी पारी आगे नहीं बढ़ाई, लेकिन अपने जीवन की आगे की पूरी पारी उन्होंने राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दी और जनजागरण में लग गए. आदर्शों का पालन करते हुए वे एक महान विचारक बने, युवाओं को जगाया और दुनियाभर में मानवीयता का संदेश फैलाया.

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