कड़ाके की ठंड में उत्तराखंड के इन गांवों में चार महीने नहीं होती कोई भी शादी, प्यास बुझाने के लिए भी नहीं मिलता पानी..

अप्रैल-मई के महीने में जब तेज धूप शरीर को जला रही होती है उस समय इच्छा होती है कि ठंड के लिए पहाड़ों पर जाया जाए. लेकिन ठंड का मौसम पहाड़ों पर रहने वालों के लिए उतना ही मुश्किल हो जाता है. तापमान भी कई बार शून्य से नीचे चला जाता है. बर्फबारी के दौरान सभी तालाब, झील भी जम जाते हैं. सर्दियों के मौसम में पहाड़ के लोग सिर्फ गर्मियों के आने का इंतजार करते हैं. इसी कारण पहाड़ के इलाकों में सर्दी के दौरान किसी भी तरह का आयोजन नहीं किया जाता है.

पिथौरागढ़ के खरतोली, गुंजी, दर, कूटी, नाभी, मिलम जैसे इलाकों में ठंड के कारण पानी भी बर्फ बन जाता है. तालाब और झील भी यहां पूरी तरह बर्फ में बदल जाते हैं. सर्दियों में वैसे तो प्यास कम ही लगती है लेकिन अगर इन इलाकों में किसी को पानी पीना हो तो उसे बर्फ को गलाना पड़ता है.

ठंड के चार महीनों में इन गांवों में किसी भी तरह की शादी ब्याह के सामूहिक कार्यक्रम आयोजित नहीं होते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि ठंड इतनी ज्यादा हो जाती है कि थोड़ी देर में ही पानी बर्फ बन जाता है. इस सीजन में कार्यक्रम का आयोजन न कराने का सबसे बड़ा काराण पानी है. क्योंकि ऐसे आयोजनों में ज्यादा पानी की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने के लिए 13 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ेगा.

निचले इलाके में चले जाते हैं लोग

गुंजी के रहने वाले ग्रामीणों ने कहा कि ठंड में सिर्फ वही लोग इन इलाकों में बचते हैं जिनके पास कोई चारा नहीं है. जिनके पास सुविधाएं हैं वह लोग ठंड के मौसम में निचले इलाकों में चले जाते हैं. कई लोगों के दोनों जगहों पर घर हैं. गर्मी में वह ऊपरी और सर्दियों में निचले इलाकों में चले जाते हैं.

जम गई झील

देश भर में लगातार कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मैदानी इलाकों में लगातार पारा गिर रही है, तो वहीं पहाड़ी इलाकों में भी ठंड से पानी जमने लगा है. उत्तराखंड के औली में कृत्रिम झील पूरी तरह जम गई. झील के जमने के बाद लगातार लोग उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं.