करनाल13 दिसम्बर(वेदांत समाचार)। किसान आंदोलन के कारण बंद चल रहे बसताड़ा टोल प्लाजा 354 दिनों के बाद आज से शुरू हो गया, इसकी शुरूआत भी किसानों ने रिबन काटकर की, अब जो भी दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग पर बसताडा से हाईवे क्रॉस करेगा, उसे बढ़ा हुआ शुल्क अदा करने के बाद ही क्रॉसिंग मिलेगी, इस दौरान दिल्ली की तरफ से आने वाले किसानों को अभी राहत दी जाएगी।
25 दिसंबर 2020 से टोल बंद था, जो आज से फिर शुरू हो गया, 10 दिसंबर को घोषणा के बाद बसताड़ा टोल को शुरू करने के लिए टोल कंपनी एक्टिव हो गई थी, टोल प्लाजा के सभी बूथों पर कंप्यूटर सिस्टम ऑन करके कर्मचारी तैनात हो चुके हैं, टोल की सभी लाइनों, साफ सफाई व मरम्मत के बाद तैयार कर दी गई, फास्टैग व कैश लेन की व्यवस्था को दुरुस्त जारी हो गई, टोल प्लाजा पर बढ़ी वार्षिक दरें भी लागू हो गई हैं, मंथली पास की दरों में इज़ाफ़ा किया गया है।
वहीं फ़ास्ट टैग और मंथली पास बनवाने वाली जगह पर लम्बी लम्बी लाइन लगी हुई नजर आ रही हैं, टोल से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार बसताड़ा टोल से रोजाना 30 से 35 हजार छोटे वाहन गुजरते है जिनमें कार व जीप जैसे व्हीकल शामिल है, वही प्रतिदिन 8 से 10 हजार बड़े व भारी वाहनों की क्रासिंग होती है, टोल फ्री होने से पहले बसताड़ा टोल से सरकार को प्रतिदिन करीब 70 लाख का नुकसान हो रहा था, 25 दिसंबर 2020 से टोल फ्री चल रहा हैं, NHAI प्रोजेक्ट डायरेक्ट वीरेंद्र सिंह ने बताया कि पहले तो हम किसानों को बधाई देना चाहेंगे।
किसानों की मांगे पूरी हुई है, जो किसान यहां पर थे, उन्होंने किसी भी प्रकार की असामाजिक गतिविधि नहीं की, शांतिपूर्वक तरीके से आंदोलन पूरा किया। सरकार की व्यवस्था दोबारा से कायम हो रही है, टोल की व्यवस्था पूरी तरह से तैयार है, किसानों ने अपनी सहमति जता दी है, वहीं NHAI के निर्देश भी मिल चुके हैं, अब टोल टैक्स लेना शुरू हो गया।
आंदोलन के कारण शुल्क में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, सालाना वृ्द्धि के हिसाब से शुल्क तय किया है, जगदीप ओलख ने कहा कि आंदोलन में जीत दर्ज करने और जश्न मनाने के बाद आज बसताडा टोल पर आंदोलन का समाप्त किया है, केवल एक जत्था दिल्ली से चला हुआ है, एक साल तक आंदोलन चलवाया।
किसान भवन में किसान बैठते हैं, यहां के किसानों ने कैमला में सीएम का जाहज नहीं उतरने दिया, नेताओं को विरोध किया। प्रशासन की लाठियां खाई, कुलमिलाकर आंदोलन में अहम योगदान दिया, किसान नेता बहादुर मैहला का कहना है, कि पिछले 1 साल से यहां बैठे, लंगर लगाया, लाठीचार्ज में एक किसान भाई सुशील काजल की मौत हुई, संघर्ष की चिंगारी यहां से उठी थी और पूरे साल के त्योहार यहीं पर मनाए इतिहास में टोल का नाम दर्ज रहेगा।
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