कैसे करते हैं छत्तीसगढ़ के किसान धान की खेती

कोरबा 5 दिसम्बर (वेदांत समाचार) कृषिप्रधान देश भारत के राज्य छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। हमारे राज्य में लगभग सभी जगह धान की पैदावार की जाती है, जिसमें अलग-अलग जलवायु, मिट्टी, पानी के अनुसार कई प्रकार के धान की पैदावार की जाती है।

विषुन भोग, सोनम, सफरी, दुबराज, लुशरी ये छत्तीसगढ़ के कुछ धान के प्रकार हैं। ये प्रकार अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाए जाते हैं, क्योंकि ये धान पकने में थोड़ा ज़्यादा समय लगता है। कुछ धान ऐसे भी हैं जो जल्दी पक जाते हैं, जैसे एक हज़ार दस, लोंहदी, डाही और भुलव।

आषाढ़-सावन के महीने में जब वर्षा होती है तो किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। इस महीने में धरती, खेतों, खलिहानों में हल चलाना प्रारंभ हो जाता है और किसान अथक परिश्रम से खेती-किसानी करते हैं।

खेती-किसानी के समय किसानों के दिन की शुरुआत जल्दी हो जाती है। किसान हल चलाने के लिए बैलों को खेत ले जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के कृषि कार्य शारीरिक परिश्रम तथा बैल की सहायता से पूर्ण हो पाते हैं। धान की खेती के लिए बीजों को तैयार किया जाता है, जिससे धान की रोपाई-बोआई आसान एवं सरल हो सके।

फसल लगाने के बाद से अंत तक बीच-बीच में इसकी निरंतर देखभाल करनी पड़ती है ताकि फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों का प्रकोप ना हो। कीड़े लगने से फसल बर्बाद होती है और किसानों की समस्या और बढ़ जाती है।

कभी-कभी किसानों को परेशानी और हानी भी उठानी पड़ती है, जिससे धान के पैदावार में कमी आती है।

धान की फसल चार महीने में पूर्ण काटने लायक पक जाती है। इसके बाद फसल को पैराली के साथ काटा जाता है फिर इसकी थोड़ी-थोड़ी करके बैलों द्वारा लंबे समय तक मिसाई की जाती है। इसके बाद उसे घर लाया जाता है। तब जाकर ये धान हमारे पेट तक पहुंचता है।

कृषि कार्य कोई सरल काम नहीं है। जो भी चाहे कृषि कर ले, ऐसी बात नहीं है। इसमें सालों की मेहनत का अनुभव लगता है, तब जाकर किसान खेती में सफल होता है और अपनी आजीविका के लिए अन्न उत्पादन कर पाता है।

हमें किसानों की मदद करनी तो चाहिए ही लेकिन खाना खाते समय उन्हें याद भी करना चाहिए। किसान ही भारत का पालन-पोषण करते हैं।

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