ग्लोबल कैंसर स्टैटिसटिक्स के अनुसार पूरी दुनिया में हर साल कैंसर के 13.9 मिलिसन नए केसेज आते हैं और उनमें से 10 मिलियिन केस ऐसे होते हैं, जो रिकवरी की सीमा पार चुके होते हैं. कैंसर के कुल मामलों में मॉरटैलिटी रेट 68 पर्सेंट है.
1902 में पहली बार म्यूनिख, जर्मनी के एक डॉक्टर को शरीर की कैंसरस सेल्स के बनने की प्रक्रिया को समझने में सफलता मिली. हालांकि कैंसर नाम के बगैर शरीर के अंदर बनने वाली मेलिगनेंट सेल्स का जिक्र पहली बार 1600 ईसा पूर्व में इजिप्ट में मिलता है, जिसमें ब्रेस्ट लंप का जिक्र आता है. महिलाओं के स्तन के भीतर बनने वाली एक ऐसी गांठ, जो धीरे-धीरे पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले लेती है और उसका अंत मृत्यु में ही होता है.
जब मेडिकल साइंस मेलिगनेंट सेल्स के बारे में कुछ नहीं जानता था, मेलिगनेंसी तब भी होती होगी, लेकिन अमेरिकन कैंसर सोसायटी की एक स्टडी कहती है कि पिछले 20 सालों में कैंसर का ग्राफ 30 फीसदी बढ़ गया है और इसका संबंध सिर्फ ऑन्कोलॉजी (कैंसर विज्ञान) के क्षेत्र में मेडिकल साइंस को मिली सफलता नहीं है.
कैंसर, जो एक ऑटोइम्यून बीमारी है, उसके बढ़ने की एक बड़ी वजह हमारे इम्यून सिस्टम का लगातार कमजोर होना, वातावरण में फैल रहा प्रदूषण, शरीर में केमिकल्स की मौजूदगी और तनावपूर्ण जिंदगी है.
1902 से पहले मेडिसिन ये जानने में अक्षम था कि कैंसर बाहर से शरीर पर हुए किसी वायरस के हमले का परिणाम है या शरीर के भीतर ही ऐसे आंतरिक बदलाव हो रहे हैं, जो कोशिकाओं की संरचना को बदल रहे हैं. परिणामस्वरूप जिन कोशिकाओं को शरीर का दोस्त होना चाहिए था, वही कोशिकाएं शरीर की दुश्मन बनकर उसे भीतर से खाने लगती हैं.
1902 में जिस जर्मन डॉक्टर थिओडोर ने पहली बार मेलिगनेंसी के फंक्शन को समझा, उन्होंने पाया कि कैंसर केस में शरीर के अंदर मौजूद किलिंग सेल्स ने मेलिगनेंट सेल को खाना बंद कर दिया है. आसान भाषा में इसे ऐसे समझें कि शरीर के भीतर पुरानी कोशिकाओं के टूटने और नई कोशिकाएं के निर्माण की प्रक्रिया सतत चलती रहती है. शरीर में कुछ ऐसी फ्रेंडली कोशिकाएं होती हैं, जो पुरानी, निष्क्रिय और नष्ट हो चुकी कोशिकाओं को स्वत: ही खाकर खत्म कर देती हैं. यानि वो लगातार खुद ही शरीर की सफाई कर रही होती हैं.
लेकिन किन्हीं कारणों से जब वो किलर कोशिकाएं अपना काम करना बंद कर देती हैं तो पुरानी और नष्ट हो चुकी कोशिकाएं शरीर के भीतर ही जमा होने लगती हैं. यही प्रक्रिया मेलिगनेंसी कहलाती है. अगर एक भी सेल मेलिगनेंट हो तो वो अपने आसपास की तमाम कोशिकाओं को भी निष्क्रिय और मेलिगनेंट करना शुरू कर देती है.
कैंसर के हर केस में यही होता है कि हमारा शरीर जो कि हमारी दोस्त है और लगातार हमें सुरक्षित और स्वस्थ रखने के लिए काम कर है, वही हमारा दुश्मन बन जाता है.
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जर्मन डॉक्टर थिओडोर बोवरी की खोज कैंसर के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई. मेडिसिन ने पहली बार जाना कि यह कहीं बाहर से आई बीमारी नहीं है, बल्कि शरीर के भीतर ही पैदा हुई और फैली है.
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