ओडिशा के कुल्लू सुंदरगढ़ जिले में पिछले 15 सालों से बतौर आशा वर्कर काम करने वाली मतिल्दा कुल्लू को फोर्ब्स ने दुनिया की ताकतवर महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया है. 45 वर्षीय मतिल्दा ने बैंकर अरुंधति भट्टाचार्य और अभिनेत्री रसिका दुग्गल जैसी शख्सियतों के बीच अपनी खास जगह बनाई है.
मतिल्दा यहां की बड़ागाव तहसील के गर्गडबहल गांव में काम कर रही हैं. इनका अब तक का सफर काफी संघर्ष और दिक्कतोंभरा रहा है. कभी लोग इनकी सलाह और इनकी बातों का मजाक उड़ाते थे. वहीं, अब इन्हें सम्मान देते हैं.
मतिल्दा ने ग्रामीणों के लिए क्या किया, गांव में कितना बदलाव लेकर आईं और फोर्ब्स में इन्हें क्यों जगह मिली, जानिए इन सवालों के जवाब…
ग्रामीणों को सेहतमंद रखना इनका लक्ष्य
मतिल्दा के दिन की शुरुआत सुबह 5 बजे से होती है. मवेशियों की देखभाल और घर का चूल्हा-चौका संभालने के बाद गांव के लोगों को सेहतमंद रखने के लिए घर से निकल पड़ती हैं. मतिल्दा साइकिल से गांव के कोने-कोने में पहुंचती हैं.
गांव में घर-घर पर जाकर नवजात और किशोर-किशोरियों को वैक्सीन लगाना, महिलाओं की प्रसव से पहले और बाद की जांच कराना इनके काम का हिस्सा है. इसके अलावा बच्चे के जन्म की तैयारी, हर जरूरी सावधानी की जानकारी देना, एचआईवी और दूसरे संक्रमण से गांव वालों को दूर रखने की सलाह देना भी इनका काम है. यह जिम्मेदारी मतिल्दा पूरी शिद्दत से निभा रही हैं.
कभी लोग उड़ाते थे मजाक
मतिल्दा कहती हैं, शुरुआती सफर संघर्षभरा रहा है क्योंकि बीमार होने पर यहां के लोग अस्पताल नहीं जाते थे. जब मैं उनसे अस्पताल से इलाज कराने के लिए कहती थी तो वो मेरा मजाक उड़ाते थे. जैसे-जैसे समय बीता, लोगों को मेरी बात समझ आई. अब गांव वाले अपनी सेहत के लिए जागरुक हो गए हैं. हर छोटी-छोटी बीमारी का इलाज कराने अस्पताल पहुंचते हैं.
मतिल्दा को गांव में इसलिए भी अधिक संघर्ष करना पड़ा क्योंकि उस दौर में लोग इलाज के लिए अस्पताल जाने की बजाय काले जादू का सहारा लेते थे. लोगों की यह सोच बदलना मतिल्दा के लिए काफी चुनौतीभरा रहा है. मतिल्दा के प्रयास से ही गांव में काले जादू जैसे सामाजिक अभिशाप को जड़ से खत्म किया जा सका. गांव में यह बड़ा बदलाव लाने और लोगों को सेहतमंद रहने के इनके योगदान के कारण ही फोर्ब्स ने इन्हें दुनिया की शक्तिशाली महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया.
फोर्ब्स इंडिया ने ट्वीट करके घोषणा की
ग्रामीणों को वैक्सीन के लिए राजी करना बड़ी चुनौती थी
मतिल्दा कहती हैं, कोरोनाहाल में हालात बिगड़ने के कारण जिम्मेदारी बढ़ गई थी. रोजाना कोरोना के लक्षण वाले 50 से 60 मरीजों की जांच के लिए उनके घर जाती थीं, लेकिन इससे बड़ी चुनौती थी लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए जागरुक करना. गांव में जब वैक्सीन लगाने की शुरुआत हुई तो गांववालों को इसे लगवाने के लिए बमुश्किल राजी किया. धीरे-धीरे लोगों को इसके लिए जागरुक किया. मतिल्दा कहती हैं, मेरे लिए गांव वालों की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं.
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