पटना ब्लास्ट फैसलाः किसी को मिली सजा-ए-मौत, किसी को उसका हक, क्या है उस गांव का हाल जहां मिले थे पांच आरोपी..

21 नवंबर (वेदांत समाचार)। बुधवार 17 नवंबर की दोपहर झारखंड पुलिस मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर सिठियो गांव में बच्चे स्कूल से वापस लौट रहे थे. स्थानीय ओवैश आजाद के घर कुछ बच्चे उर्दू पढ़ रहे थे. यहां से लगभग 100 मीटर दूर कुछ युवक 19 नवंबर को इंडिया न्यूजीलैंड के बीच होने वाले दूसरे टी-20 मैच के टिकट की खरीददारी को लेकर बातें कर रहे थे.

वहीं गांव की मस्जिद से सटे एक घर में 32 साल के इफ्तिखार आलम कुर्सी पर बैठे धूप सेक रहे थे. इकहरे बदन, हल्की लंबी दाढ़ी, काला पायजामा और उजली शर्ट में इफ्तिखार काफी कमजोर दिख रहे थे. उन्हें 1 नवंबर को बेल मिली और वो 7 नवंबर को घर लौटे हैं. पूरे साढ़े सात साल के बाद.

उनपर आरोप था कि पटना बम ब्लास्ट में जो लोग शामिल थे, उन्हें सिठियो गांव से रांची के कांटाटोली बस स्टैंड तक ऑटो से छोड़ने गए थे. नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की ओर से किए गए ट्वीट के मुताबिक साल 2013 की 31 दिसंबर को घटी इस घटना में सात लोग मारे गए थे और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे.

ऑटो से बस स्टैंड छोड़ने का लगा आरोप और सात साल तक जेल

इफ्तिखार बताते हैं, घटना के बाद जब अखबारों में उनके गांव के लड़कों के बारे में खबर छपी तो वो चौंक गए. उस वक्त गांव का माहौल काफी अजीब हो गया था. मैं उस वक्त आईटीआई की पढ़ाई कर रहा था और पिता के चाय समोसे के होटल में उनका साथ देता था.

पटना ब्लास्ट को हुए छह महीना बीत गया था. बाकि दिनों की तरह उस दिन भी मैं पिताजी का हाथ बंटाने उनके होटल में था. उसी वक्त NIA के लोग आए और मुझे पूछताछ के लिए ले गए. तीन दिनों तक केवल यही कहते रहे कि स्वीकार करो कि तुम ही ऑटो से उनको बस स्टैंड छोड़ने गए थे. मैं इससे इनकार करता रहा.

ये बात सही है कि मेरे घर में एक ऑटो है. जिसे मेरे बड़े भाई चलाते थे. गांव में मेरे नाम से कुछ और लड़के भी हैं. चूंकि मैं कभी ऑटो लेकर उन्हें पहुंचाने गया ही नहीं, तो स्वीकार कैसे करता. तीसरे दिन NIA वालों ने मुझे एक कागज पर सिग्नेचर करने को कहा. उसपर अंग्रेजी में लिखा था, जिसे मैं समझ नहीं पाया. मेरे हस्ताक्षर करने के बाद मेरे परिवार वालों को खबर भेज दी गई कि मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है.

कौन हैं तबस्सुम और किसका करती रही इंतजार

इस पूरी बाचतीत को एक महिला कमरे के फाटक के पास खड़ी होकर सुन रही थी. उनका आधा चेहरा ही दिख रहा था. ये थी इफ्तिखार की पत्नी तबस्सुम. गिरफ्तारी के वक्त शादी को डेढ़ साल ही हुए थे. उनका छह महीने का एक बच्चा भी था. जिसका नाम वो नहीं बताना चाहती हैं.

कहती हैं, इस दौरान पांच बार पति से मिलने बेऊर जेल गई. गिरफ्तारी से लेकर जेल में पति से पहली बार मुलाकात होने तक मायके वालों और रिश्तेदारों ने जो कहा, उसे सुनती रही. पटना बेऊर जेल में जब मिली तो मैंने बस एक ही सवाल किया, क्या आप इसमें शामिल थे, लोग कह रहे हैं आप आतंकवादी हैं, ये सही है क्या. इन्होंने जवाब दिया नहीं. मुझ पर भरोसा रखो. मेरी ईमानदारी पर भरोसा रखो. अल्लाह सब ठीक करेगा. तब से आज तक केवल इंतजार करती रही.

बीच में टोकते हुए इफ्तिखार कहते हैं, बस इतना समझ लीजिए कि दूसरी बार मेरा जन्म हुआ है. तबस्सुम अगर इंतजार नहीं करती या मुझे छोड़ देती तो मैं टूट जाता. शायद जेल में ही मर जाता.

यही नहीं, इस बीच मेरे बड़े भाई की पत्नी को बच्चा हुआ. बच्चा होने के आधे घंटे बाद ही मेरी भाभी मर गई. तब से आज तक उस बच्चे को भी यही पाल रही है. वो ये भी बताते हैं कि, जो लोग हमसे मिलने आते हो वो इसलिए नहीं आते हैं कि हम जेल से छूटकर आए हैं, वो बस इसलिए आते हैं कि हम जिंदा होकर वापस आए हैं.

चलने में अक्षम, सफेद हो चुकी दाढ़ी और कर्ज से दबे मो. मुस्तफा 71 साल के हो चले हैं. कहते हैं, सात बेटे हैं मेरे. सबसे छोटा बेटा गड्ढा में गिर गया था. निकालना तो मुझे ही था. मात्र 50 डिसमिल जमीन है मेरे पास. इस केस को लड़ने में 20 डिसमिल (15 कट्ठा) जमीन बेचनी पड़ गई. हर महीने रांची से पटना आना-जाना, थोड़े बहुत वकील के खर्चे.

पटना स्टेशन पर सीढ़ियां बहुत हैं. चलने में इतना अक्षम हूं कि कई बार रात में पटना पहुंचने पर आधी सीढ़ी पार करने के बाद हालत ये हो जाती थी कि मुझे वहीं सो जाना पड़ता था.

कहानी उनकी, जिनको फांसी की सजा मिली

फांसी पानेवालों में इम्तियाज और नुमान अंसारी भी इसी गांव के हैं. इम्तियाज के बड़े भाई अख्तर हुसैन हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (HEC) में कंप्रेशर ऑपरेटर हैं. कहते हैं, दरभंगा का हैदर (जिन्हें ब्लैक ब्यूटी के नाम से भी जाना जाता है) कभी कभार गांव आता था. लेकिन हम लोग जानते नहीं थे कि कौन है. कभी यह भी पता लगाने की कोशिश नहीं किए कि किसका रिश्तेदार है, किसके यहां आता है. मेरा भाई इसके प्रभाव में कब आया और या फिर मेरे भाई को फंसाया गया, हमलोग आज तक नहीं जान पाए.

वो कहते हैं, एक दिन इम्तियाज ने कहा कि जलसा में पटना जा रहे हैं. हमलोग समझे कि ये तो अच्छी बात है कि जलसा में जा रहा है. हमलोग भी रांची और उसके आसपास के इलाकों में जलसा में जाते-आते रहे हैं. अख्तर के मुताबिक इस केस को लड़ने में अब तक छह लाख से ज्यादा खर्च हो चुके हैं. पिताजी किराने की दुकान चलाते हैं. छह भाइयों का परिवार है, सभी अलग-अलग रहते हैं.

अख्तर के छोटे भाई तज्जमुल अंसारी की रातों की नींद भी बीते आठ सालों से उड़ी हुई है. उनका एक बेटा तौफीक आलम जो कि उस वक्त 14 साल का था, भी उस तथाकथित जलसे में शामिल होने अपने चाचा इम्तियाज के साथ पटना गया था.

तज्जमुल के तीन बेटे हैं. तौफिक सबसे बड़ा है. उसके अलावा तौहिद अंसारी और तारीक अंसारी हैं. तौहिद आठवीं क्लास में है, जबकि तारीक अभी स्कूल जाना शुरू नहीं किया है. वो बताते हैं, मेरा बेटा उस वक्त 11वीं का छात्र था. पटना ब्लास्ट वाली घटना से एक दिन पहले की बात है. मैं शाम को बच्चों को पढ़ाकर खाना खाने आया. पत्नी से पूछा कि तौफिक कहां है, तो पता चला कि चाचा के साथ प्रोग्राम देखने गया है.

ब्लास्ट के बाद खबरें छपने लगी. उसमें मेरे बेटे के बारे में भी खबर छपी. कहा गया वो आतंकी है. लेकिन वह पकड़ाया नहीं था. हमलोग भी ढूंढ रहे थे, NIA भी ढूंढ रही थी. चार महीने बाद एक दिन अचानक उसका फोन आया. पता चला कि उसे डाल्टनगंज से गिरफ्तार किया गया है. NIA के फोन से उसने ये बातें मुझे बताई.

उसके बाद तो मेरे घर में मातम छा गया. एक हफ्ते तक खाना नहीं बना. चचेरे भाई लोग खाना पहुंचा जाते थे. पहली बार जब उससे मिलने पटना गए तो बेटा से पूछे, अगर सही में तुमलोग शामिल हो तो हमारे पास मत छुपाना. उसने कहा कि हमलोगों को इसमें फंसाया गया है. लेकिन वो ये नहीं बता पाया कि किसने फंसाया, किसकी साजिश है. बच्चा था, उसे क्या मालूम होगा. हमलोग आज तक समझ नहीं पाए कि क्या कहकर उसे पटना ले जाया गया था. फिलहाल वो पटना के गायघाट रिमांड होम मे है.

गांव के एक और युवक नोमान अंसारी को फांसी की सजा हुई है. उनके पिता 76 साल के सुल्तान अंसारी ने बस इतना कहा कि हमलोग हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. बातचीत शुरू ही हुई थी कि उनका एक बेटा आया और कहा कि हमें कोई बात नहीं करना है. और वृद्ध पिता को लेकर वो घर के आगे में चल रही मोबाइल रिचार्ज की दुकान में चले गए.

देश के लिए कुर्बानियां दी है गांव के लोगों ने

गांव के समाजसेवी ओवैश आजाद कहते हैं, इसमें कोई शक नहीं कि इस घटना के बाद गांव की बहुत बदनामी हुई. लेकिन हमारे गांव का इतिहास ऐसा नहीं रहा है. शेख जुम्मन और शेख रमजान, शेख सुदीम (भांजा) दो भाई थे. दोनों ने बिरसा मुंडा के साथ लड़ाई लड़ी थी. गांव के ही अल्फ्रेड केरकेट्टा सन 1962 और सन 1972 की लड़ाई में देश के लिए लड़े थे. अकरम अंसारी कारगिल में शहीद हुए थे. वो राजपुताना राइफल में थे.

लगभग पांच हजार की आबादी वाले इस गांव में आधे मुस्लिम हैं और आधे आदिवासी. ओवैश के मुताबिक पटना ब्लास्ट और गांव की गिरफ्तारी के बाद उनलोगों ने मिलकर गांव में आतंकवादी विरोधी कार्यक्रम भी किया था. गांववालों ने साफ कहा कि हम किसी भी सूरत में आतंकवाद का समर्थन नहीं करते हैं.

इसी गांव के तारीक नाम के युवक की मौत ब्लास्ट के दौरान हो गई थी. उनके पिता अताउल्लाह अंसारी ने उस वक्त शव लेने से इनकार कर दिया था. दोनों ही वृद्ध हो चले हैं, हार्ट के पेशेंट हैं. पूछने पर कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.

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