झीरम घाटी हमले का सच सामने ना आए इसलिए सरकार जांच आगे बढ़ाने पर आमदा : अमर..

बिलासपुर 17 नवंबर (वेदांत समाचार)। झीरम घाटी मामले में जस्टिस मिश्रा न्यायिक आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई की बजाय, बिना पढ़े रिपोर्ट से किनारा कर जांच बढ़ाने और नया आयोग बनाए जाने को सरकार में निर्णयन क्षमता का अभाव बताते हुए लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विपरीत कार्य बताया है। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल का कहना है कि झीरम घाटी मामले की जांच रिपोर्ट पिछले दिनों राजभवन को जांच प्रस्तुत होते हैं बिना पढ़े उसे विवादास्पद बनाने और राज्यपाल के पद की संवैधानिक औचित्यता पर प्रश्न खड़े करना कांग्रेस की कार्यशैली पहचान है।

राजभवन की तरफ से रिपोर्ट सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजने के पूर्व ही कयासों के आधार पर बिना परीक्षण किये दो सदस्यीय आयोग बना कर प्रस्तुत रिपोर्ट को नकार देना और जांच को आगे बढ़ा देने से सरकार की मंशा साफ है कि मामले के सच को सरकार टालना चाहती है।

25 मई 2013 को झीरम घाटी की घटना हुई, उस समय भी केंद्र में यूपीए की सरकार थी, घटनाक्रम के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी छत्तीसगढ़ आये। केंद्रीय गृह मंत्री ने एनआईए की जांच बैठाई, 28 मई को उच्च न्यायालय के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्य आयोग का गठन किया गया। उन दिनों तात्कालिक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल थे, उंस समय उन्होंने शिगूफा छोड़ा घटना के सबूत मेरी जेब में है। मौका ए वारदात पर वर्तमान राज्य मंत्रिमंडल सदस्य भी मौजूद थे।

श्री अग्रवाल का कहना है 2013 से 21 तक पिछले सात वर्षों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबूतों को न तो कभी राष्ट्रीय जांच एजेंसी के हवाले किया न हीं कभी न्यायिक जांच आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री की जेब से झीरम घाटी मामले के सबूत किस पाकिटमार ने उड़ा दिए यह प्रदेश की जनता जानना चाहती है। जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट की वास्तविकता जाने बिना रिपोर्ट को एक सिरे से नकार देने का अभियान और हो हंगामा के पीछे आखिर क्या मकसद है? मामले की जांच में नया जांच आयोग गठित करके जांच के नए बिंदु जोड़ने से साफ जाहिर होता है कि सरकार की मंशा झीरम घाटी का सच सामने ना लाकर घटना का राजनीतिकरण करना है और जिसका लाभ मुख्यमंत्री उठाना चाहते हैं।

कांग्रेस का इतिहास रहा है कि जब भी कोई रिपोर्ट आती है और रिपोर्ट में कांग्रेस से संबंधित लोगों के शामिल होने का अंदेशा हो तो उस रिपोर्ट को विवादित बनाकर हड़कंप मचाना और नई जांच करवाना, मामलों को टालना, सच को सामने ना आने देना कांग्रेस की परिपाटी है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अंतर्विरोधों की सरकार चला रहे हैं। आए दिन वे सहकारी संघवाद के ढांचे पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं, उन्हें न तो केंद्रीय संस्थानों पर विश्वास है, न हीं केंद्रीय जांच एजेंसी पर और न ही हालिया प्रस्तुत जांच रिपोर्ट पर, यह उनकी मानसिकता को दर्शाता है।

वास्तव में अगर उनके पास सबूत है तो सार्वजनिक करना चाहिए था,न कि लाभ लेने के दृष्टिकोण से नए-नए हथकंडे लगाकर भावी राजनीतिक अवसर की दृष्टि से झीरम घाटी मामले की जांच को टालना चाहिए। मालूम हो न्यायिक जांच आयोग ने रिपोर्ट सौंप दी तो उसका कार्यकाल स्वयंमेव समाप्त हो जाता है। मुख्यमंत्री पुराने किसी पत्र का हवाला देकर जबरदस्ती रिपोर्ट को अधूरी बता रहे हैं जबकि रिपोर्ट के आधार पर त्वरित कार्यवाही किए जाने की आवश्यकता थी किन्तु सरकार को जस्टिस मिश्रा कमिशन की रिपोर्ट को लागू नहीं करना चाहती थी।

स्पष्ट है कि सरकार डरी, घबराई हुई है और प्रदेश के मुख्यमंत्री जेब मे झीरम का सबूत होने का ढिढोरा पीट रहे है।क्योंकि वे जानते है झीरम मामले का सच सामने आने से वर्तमान सरकार के दामन पर सवालिया निशान होंगे।वास्तविक में कांग्रेस की सरकार प्रदेश में लोकतांत्रिक मर्यादाओं,प्रक्रियाओं और पंरपराओं को बहुमत की आड़ में कुचलने का कार्य कर रही है,जिसे प्रदेश की जनता भलीभांति समझती है और अब कांग्रेस जन भी इसकी चपेट में आ चुके है।पिछले तीन साल में भूपेश सरकार की गिरती हुई को जनता जान चुकी है,जिसका आभास खुद मुख्यमंत्री को भी है इसलिए वे जनता का ध्यान इस मुद्दों पर भटकाना चाहते हैं जिसमें वे कभी सफल नहीं होंगे।