महात्मा गांधी के बेटों ने क्यों की थी नाथूराम गोडसे की फांसी माफ करने की मांग

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के हत्यारे नाथूराम गोडसे (Narayan Godse) और नारायण आप्टे (Narayan Apte) को अंबाला जेल (Ambala Jail) में 15 नवंबर 1949 के दिन तड़के फांसी (Execution) दे दी गई थी. हालांकि गांधीजी खुद इस प्रकार की न्यायिक सजाओं से घृणा करते थे. यही वजह थी कि गांधीजी के दो बेटों ने भी उनकी फांसी माफ करने की मांग भी की थी

15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में सुबह तड़के महात्मा गांधी की हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी दे दी गई. गांधीजी चूंकि कभी इस तरह की सजाओं के पक्ष में नहीं रहते थे लिहाजा उनके दो बेटों ने फांसी की सजा को माफ करने की गुजारिश भी की थी.

महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब विशेष अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई तो गांधी के दो बेटों ने उनकी फांसी की सजा को माफ करने की गुजारिश प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल से की थी.

इसका रहस्योदघाटन बंगाल के राज्यपाल रहे गोपाल कृष्ण गांधी ने वर्ष 2017 में किया था. ब्रितानी लेखक राबर्ट पेन की बेहद चर्चित पुस्तक “द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी” में भी इसका जिक्र आया है.

लाल किले में लगी विशेष अदालत में गांधी हत्या के आरोप में करीब आठ महीने तक सुनवाई चली. इसके बाद जज आत्मचरण ने 10 फरवरी 1949 को अपना फैसला सुनाया. इस दौरान अदालत के सामने 149 प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही हुई. इस मामले में कोई भी गवाह आरोपियों के पक्ष में सामने नहीं आया.

कोर्ट ने क्या सजा सुनाई थी


कोर्ट ने सावरकर को बरी कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे. आठ लोगों को हत्या की साजिश रचने का दोषी पाया गया. इसमें नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा हुई जबकि शेष छह को आजीवन कारावास.

नाथूराम गोडसे को छोड़कर अन्य सभी ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. 02 मई 1949 को हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बहाल रखा.

ये है नारायण आप्टे, जिसे गांधीजी की हत्या की साजिश रचने के लिए अदालत ने दोषी पाया था. उसे भी गोडसे के साथ फांसी दी गई थी

गांधीजी के बेटों ने नेहरू और पटेल से की अपील 


अब ये तय हो गया था कि गोडसे और आप्टे को फांसी की सजा होगी. इसका दिन तय हुआ 08 नवंबर 1949. इसी बीच गांधीजी के दो बेटों मणिलाल और रामदास ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ गर्वनर जनरल सी. राजगोपालाचारी के पास अपील भेजी.

क्या कहा था गांधीजी के बेटों ने 


गांधीजी के दोनों बेटों का कहना था कि गोडसे और आप्टे को फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए. गांधीजी खुद मृत्युदंड के खिलाफ थे. दोनों को माफ कर दिया जाए. हालांकि गांधीजी के तीसरे बेटे देवदास गांधी ने खुद को इससे दूर रखा जबकि सबसे बड़े हरिलाल का तब तक निधन हो चुका था. हालांकि गांधीजी की हत्या की खबर सुनते ही हरिलाल ने हत्यारों से बदला लेने की कसम खाई थी.

रामदास गांधी ने गांधीजी को मुखाग्नि दी थी. वो गोड्से से जेल में मिले थे और फिर उनका उससे पत्र व्यवहार भी हुआ

एक हफ्ते के लिए रोक दी गई फांसी की सजा


रामदास और देवदास जेल में जाकर गोडसे से मिल चुके थे. रामदास और गोडसे के बीच पत्र व्यवहार भी हुआ था. जब मणिलाल और रामदास की माफी की अपील पहुंची तो 08 नवंबर को मुकर्रर फांसी की सजा रोक दी गई. गोडसे और आप्टे उस समय अंबाला जेल में थे. नेहरू, पटेल और गोपालाचारी ने मंत्रणा की. वो इस मामले में एकराय थे कि इस सजा में माफ करने का सवाल ही नहीं उठता है. लिहाजा गांधीजी के दोनों बेटों की माफी की अपील ठुकरा दी गई.

इसके बाद 15 नवंबर 1949 में अंबाला जेल में ही दोनों को फांसी की सजा दी गई. फांसी के दौरान आप्टे की तुरंत मौत हो गई जबकि गोड्से का निधन होने में करीब 15 मिनट लगे.

गोपालकृष्ण गांधी ने क्या कहा था


बाद में गोपाल गांधी ने वर्ष 2017 में विपक्ष द्वारा उन्हें उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मैं तो उस सिद्धांत को मानने वाला शख्स हूं, जहां गांधीवादी विचारधारा सबसे ऊपर है. ये विचारधारा मानवता और सहिष्णुता की बात करती है. उनका कहना था कि महात्मा गांधी खुद फांसी की सजा का विरोध करते थे. ये मध्यकाल की क्रूरता के प्रतीक हैं.