सार्वजनिक किए जाएंगे पराली जलाने वाले किसानों के नाम, 3 साल तक नहीं मिलेगा किसी योजना का लाभ

उत्तर भारत के अलग-अलग इलाकों में धान की कटाई के बाद खेतों में बची पराली को जला दिया जाता है. पराली जलाने की वजह से वायु प्रदूषण में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई है और हवा की गुणवत्ता भी काफी खराब हो चुकी है. पराली जलाने की वजह से हो रहे प्रदूषण को देखते हुए बिहार सरकार काफी सख्त हो गई है. प्रशासन ऐसे किसानों के खिलाफ सख्त कदम उठाने जा रहे है जो अपने खेतों में पराली को जला रहे हैं.

प्रशासन ने फैसला लिया है कि बिहार में पुआल (पराली) जलाने वाले किसानों के नाम सार्वजनिक किए जाएंगे. पंचायत भवन और कृषि विभाग के कार्यालय में ऐसे किसानों के नाम बताए जाएंगे, जो पुआल जलाकर खेतों की उर्वरता ही खत्म नहीं कर रहे बल्कि प्रदूषण भी फैला रहे हैं. इतना ही नहीं, पराली जलाने वाले किसानों को अगले तीन साल तक कृषि की विभिन्न योजनाओं का लाभ भी नहीं दिया जाएगा.

कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई के लिए लेनी होगी इजाजत

धान काटने में कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग करने वाले किसानों को जिला प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसे किसानों को शपथ पत्र भरकर देना होगा कि कंबाइन हार्वेस्टर से धान की फसल काटने के बाद खेतों में पुआल नहीं जलाएंगे. शुक्रवार को विकास आयुक्त आमिर सुबहानी ने सभी जिलाधिकारियों को विडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक कर निर्देश दिया कि किसानों को खेतों में पुआल नहीं जलाने के लिए जागरूक करें.

बैठक में शामिल कृषि सचिव डॉ. एन. सरवण कुमार ने बताया कि सभी डीएम को निर्देश दिए गए हैं कि कृषि और प्रशासनिक अधिकारी पुआल जलाने वाले किसानों के नाम बताएंगे. इनका नाम पंचायत भवन में सार्वजनिक किया जाएगा और योजना लाभ से भी वंचित रखा जाएगा.

1 टन पुआल जलाने से निकलती है 1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड

एक टन पुआल जलाने से 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड, 60 किलो कार्बन मोनो ऑक्साइड और 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलती है. यह पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ ही मनुष्य और जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालता है. इससे प्रदूषण ही नहीं बल्कि खेतों की उर्वरता भी खत्म होती है. मिट्टी में मौजूद जैविक कार्बन जलकर नष्ट हो जाता है. इसके साथ ही जरूरी पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है, जिससे फसलों का उत्पादन घटता है.

पुआल जलाने के बजाए खाद के रूप में यूज करें किसान

कृषि सचिव सरवन कुमार ने कहा कि पुआल जलाने के बदले, किसान इसे खाद के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं. पूसा वेस्ट डीकंपोजर को पानी में मिला कर छिड़काव करने से 15 दिनों के अंदर पुआल गलकर कंपोस्ट बन जाता है. ये डीकंपोजर कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किसानों को वितरित कराया जा रहा है.

पटना और मगध में पुआल जलाने के मामले अधिक

पटना और मगध प्रमंडल के अधिकांश जिलों में ज्यादातर किसान कंबाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई कराते हैं. कटाई के बाद धान के तने के अधिकांश भाग खेतों में रह जाते हैं. रबी फसल लगाने के लिए किसान खेतों में मौजूद पुआल को जला देते हैं. पिछले दो साल में लगभग 500 किसानों पर कार्रवाई की गई है।

समस्तीपुर से किसान रमन चौधरी बताते हैं कि इस साल भयानक बारिश और बाढ़ की वजह से बिहार में ज्यादातर जिलों में अभी तक धान की कटाई नहीं हो सकी है. इसके अलावा जहां कटाई हो भी रही है, वहां का पुआल जानवरों के खाने लायक भी नहीं है. ऐसे में किसान भी काफी परेशान हैं. अब प्रशासन की सख्ती से किसानों की परेशानियों में इजाफा हो रहा है. इस मुसीबत से सरकार ही हम लोगों को बचा सकती है.

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