गिलोय का पहली बार तैयार हुआ जीनोम अनुक्रम, अब खुलेगा गुणों का राज..

कोरोना महामारी ने वैसे तो हर किसी को गिलोय के फायदे से अवगत करा दिया है, लेकिन अभी भी हम इसके विशिष्ट गुणों को सही तरीके से पहचान नहीं पाए हैं। इस औषधीय पौधे में छुपे कई गुणों को जानने के लिए विज्ञानी भी लंबे समय से प्रयासरत हैं। इसी क्रम में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइसर) के बायोलॉजिकल साइंसेज विभाग के प्रोफेसर विनीत के शर्मा व उनकी टीम ने चिकित्सकीय गुणों से भरपूर इस पौधे का जीनोम अनुक्रम तैयार कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। जीनोम अनुक्रम से अब गिलोय के तत्वों और उनके असर की जानकारी हासिल की जा सकेगी, जो कैंसर जैसे असाध्य रोग के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी।

दरअसल कोरोना वायरस पर गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के अपने विशेष गुण के कारण जनमानस में चर्चा का विषय बनी थी। कोरोना के आयुष उपचार में इसका खूब उपयोग भी हुआ। घर-घर में गिलोय बटी और गिलोय शत की पहुंच बन गई लेकिन गिलोय के अन्य असरकारी गुणों का खुलासा नहीं हुआ। हालांंकि इस औषधीय पौधे के रस का आयुष में कई बीमारियों में उपयोग आरंभ से किया जाता रहा है। आइसर के विज्ञानी प्रो. विनीत शर्मा के अनुसार दुनिया में पहली बार वैज्ञानिक तरीके से गिलोय के जीनोम पर शोध किया गया है। नौ माह तक लगातार विज्ञानियों की टीम ने इसके जीन जानने और उनका अनुक्रम तैयार करने पर मेहनत की, जिससे गिलोय के जीनोमिक और चिकित्सीकीय गुणों के बारे में आरंभिक जानकारी हासिल हुई है। एंटी वायरल, एंटी फंगल, एंटी डायबिटिक, एंटी आक्सीडेंस और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ;ाने के असरकारी गुणों के चलते गिलोय कैंसर और चर्मरोग जैसे रोगों में भी यह अनुक्रम मददगार साबित होगा। उन्होंने बताया कि इस अनुक्रम की मदद से अब इसके गुणों को बेहतर तरीके से पहचानकर वैश्विक स्तर पर कई बड़ी बीमारियों का इलाज संभव हो सकेगा। यह शोध अमेरिका के प्री-प्रिंट सर्वर में प्रकाशित हो चुका है और आयुर्वेद जगत में इस शोध से एक बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही है।

यह है जीनोम अनुक्रम

जीनोम उपक्रम की मदद से हम किसी पौधों में छिपे गुणों का पता लगाते हैं। यह एक प्रकार का कोड होता है, जो चार लेटर का होता है। यह डीएनए के अंदर एडेनीन (ए), गआनीन(जी), सइटोसीन(सी) और थाइमीन(टी) के रूप में रहता है। ये चारों लेटर क्रम बदल-बदलकर डीएनए में सजे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर लें तो एजीसीटी, एसीजीटी, एटीजीसी…..। यह अनुक्रम पौधों में हजारों से लेकर लाखों, करोड;ों तक हो सकते हैं। ये जीनोम अनुक्रम जीन्स बनाते हैं। इसकी मदद से यह भी पता लगाया जाता है कि ये जीन्स कैसे काम करते हैं और इसके बगल में और कौन-कौन से जीन्स हैं। ये आपस में मिलकर किस तरह कारगर हो सकते हैं। विज्ञानी इन्हीं जीन्स का अध्ययन कर किसी भी पौधे का असली गुण पहचानते हैं। जिन गुणों की मदद से बड;ी से बड;ी बीमारियों का इलाज संभव हो पाता है।

गिलोय में हैं 19 हजार जीन

प्रो. शर्मा ने बताया कि सामान्य तौर पर पौधों, प्राणियों और मनुष्यों में 19 से 25 हजार तक जीन पाए जाते हैं। गिलोय में भी 19 हजार जीन पाए गए हैं। आरंभिक शोध के बाद अब इसके अलग-अलग तत्वों को पहचानकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी। जिससे स्पष्ट होगा कि इसके जो मैटाबोलाइट्स हैं वे किस बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में कारगर हैं। जीनोम अनुक्रम किसी पौधे की संरचना को जानने की पहली सीढ;ी है। इसे तैयार करने के बाद आगे के शोधकार्यों में आसानी होती है। किसी पौधे में मेटाबोलाइड कैसे बनते हैं, इस पूरी प्रक्रिया को समझने में जीन अनुक्रम से आसानी होती है। इससे पौधे की और गुणकारी किस्म तैयार करने के साथ ही उसे संरक्षित भी किया जा सकता है।

पंडित खुशीलाल आयुर्वेद कालेज में क्लिनिकल ट्रायल में भी यह मिला है कि गिलोय का उपयोग कोरोना में बहुत लाभकारी रहा है। 40 साल से ऊपर के लोगों के लिए गिलोय का उपयोग ब्रेन टानिक के तौर पर किया जाता है, अन्य मरीजों में उनकी बीमारी के अनुसार मात्रा और दवा लेने का समय डाक्टर ही निर्धारित करते हैं। डाक्टर की सलाह के बिना इसे लंबे समय तक नहीं लेना चाहिए।

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