कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाने के बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है. इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया. छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है. इस बार सोमवार, 8 नवंबर की दोपहर 1:16 बजे से पंचमी तिथि लग रही है. इस दिन से ही कार्तिकी छठ पर्व प्रारंभ हो रहा है, जो 11 नवंबर तक चलेगा. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है. इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में. चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है. पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है.
छठ पर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता हैं, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं. सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है. सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है. मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा. वह भगवान कार्तिकेय की पत्नी भी हैं. षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है. तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है. छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं. शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है. पुराणों में इन्हें मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है. षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है.
छठ पर्व परंपरा
छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है. भैया दूज के तीसरे दिन से छठ पर्व आरंभ हो जाता है. पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में लिया जाता है. अगले दिन से उपवास आरंभ होता है. इस दिन, रात में खीर बनती है. व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं. तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं. अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस पूजा में पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है, लिहाजा इस दौरान लहसून-प्याज का सेवन भी नहीं किया जाता.
जिन घरों में छठ पूजा की जाती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं. आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्य देवता की मूर्ति की स्थापना करना. छठ पूजा पर बच्चे पटाखे भी जलाते हैं.
छठ व्रत विधि
छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है. यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं. व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है. चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है. भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है. पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं. इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं. व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गई होती है. महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ पूजा करते हैं. छठ पूजा शुरू करने के बाद इसे कभी नहीं छोड़ा जाता. ये त्योहार पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहती है. घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है.
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं. किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं.
छठ पूजा विधि
छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें.
- बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूंप, थाली, दूध और गिलास.
- चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी.
- नाशपाती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई.
- प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें.
- सूर्य को अर्घ्य देने की विधि
बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें. सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूंप में रखें और सूंप में ही दीपक जलाएं. फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.
छठ पूजा तिथि
पहला दिन: नहाय-खाय, सोमवार, 8 नवंबर
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है. सबसे पहले घर की साफ-सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है. इसके पश्चात छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं. घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं. भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है. यह दाल चने की होती है.
दूसरा दिन: खरना, मंगलवार, 9 नवंबर
छठ महापर्व का दूसरा दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को पड़ता है. इस दिन व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं. इसे ‘खरना’ कहा जाता है. खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित भी किया जाता है. प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है. इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है.
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य, बुधवार, 10 नवंबर
कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन छठ महापर्व का तीसरा दिन होता है. इस दिन सुबह के समय छठ का प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते हैं. इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है.
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूंप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं. सभी छठ व्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं. सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूंप से पूजा की जाती है. इस दौरान छठ घाटों पर कुछ घंटे के लिए मेले जैसा दृश्य बन जाता है.
चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य, गुरुवार, 11 नवंबर
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती, छठ घाट पर बनाए गए अपने बेदी पर पुनः पहुंचते हैं, जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था. जिसके बाद भोर में पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है. अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं.
छठ पूजा अर्घ्य मन्त्र समय
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं.
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ..
[metaslider id="347522"]