वनमण्डल के कामकाज से सरकार की बदनामी, मजदूरी के लिए एक साल से चक्कर, लाखों की योजनाओं का भी बंटाधार

0 पलीता लगाने में पीछे नहीं वन अधिकारी और रेन्जर

लखन गोस्वामी

कोरबा, करतला 3 नवम्बर (वेदांत समाचार) । रामराज्य की कल्पना तब साकार हो जब किसी मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसके हाथ में उसके मेहनत का पैसा आ जाए, जब सरकार की योजनाओं का धरातल पर शत-प्रतिशत क्रियान्वयन हो। इन दोनों मामलों में कोरबा जिले के वन अधिकारी और अधिनस्थ रेंजरों की कार्यशैली से सरकार की बदनामी हो रही है। सरकारी तौर पर भुगतान नहीं रुकता लेकिन डीएफओ से रेंजर के दफ्तर तक यह पैसा आते-आते गायब हो जाता है और मजदूर अपना खून-पसीना बहाने के बाद भी हाथ मलते राह ताकते रह जाता है।


कोरबा वन मंडल के करतला वन परिक्षेत्र में ऐसा मामला एक साल से लंबित है। पूर्व और वर्तमान डीएफओ भी निराकरण में रुचि नहीं ले रहे जिसका लाभ बहुचर्चित रेन्जर जीवनलाल भारती व अन्य भ्रष्ट कर्मी सह ठेकेदार उठा रहे हैं। करतला रेंज अंतर्गत ग्राम पीडिया से तुर्रीकटरा मार्ग पर छुरीपाठ में एक वर्ष पूर्व नेचर बाड़ी निर्माण का कार्य किया गया। इस कार्य में दर्जनों ग्रामीणों ने मनरेगा ।में मजदूरी की। करतला रेन्जर ने मजदूरी तो करवा ली परंतु मजदूरी भुगतान के लिए घुमा रहे हैं। नए रेंजर जीवन लाल भारती के आने बाद भुगतान लटक रहे हैं वहीं लाखों की नेचर बाड़ी योजना भूतल पर सफल नहीं हो सकी और न लाभ मिला बल्कि शासकीय राशि की बंदरबांट हो गई। योजना के तहत जैविक खाद बनाकर जंगली जानवरों के लिए घास और चारागाह निर्माण कराया जाना था। कई एकड़ जमीन इसके लिए आबंटित की गई थी जहां आज कुछ भी नही बना है। ग्रामीणों के अनुसार करतला रेंज ने ऐसे कुल 3 नेचर बाड़ी बनवाये हैं जो वर्तमान में व्यर्थ हैं। बड़ी बात तो यह है कि जिम्मेदार वन अधिकारी मौके पर जाकर योजनाओं का क्रियान्वयन और निर्माण की हकीकत देखना जरूरी नहीं समझते। वर्तमान में भी यही हो रहा है। जंगल में रेंजर को मंगल करने की छूट दे दी गई है जिससे मजदूरों में रोष व्याप्त है।

बोर खोदा पर नहीं लगाया मोटर


विभाग ने नेचर बाड़ी योजना के क्रियान्वयन में उस स्थान पर बोर खोदाई कराया था जिस पर अभी तक मोटर नहीं लग सका है। जिस योजना से विभाग को फायदा होना था उस योजना के लाखों रुपये विभाग ने बर्बाद कर दिए और योजना बिना शुरू हुए ही बंद हो गयी।

कोटमेर में भी दर्जनों मजदूरों को भुगतान नहीं


ग्राम कोटमेर में भी करतला रेंज ने दर्जनों मजदूरों को बांध, तालाब सहित कई कार्यो का मजदूरी भुगतान नहीं किया है। करीब दो वर्ष बीत जाने के बाद भी भुगतान से वंचित मजदूरों में काफी रोष है पर मजबूर भी हैं। रेजर जीवन लाल भारती ने मजदूरों से दुर्व्यवहार कर गाली-गलौच किया था जिसकी शिकायत को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

9 महीने काम लेकर एक सप्ताह की मजदूरी


ग्राम पीडिया निवासी जयपाल सिंह ने बताया कि नेचर बाड़ी योजना के तहत वन विभाग ने सीपीटी, खोदाई, रात्रि निगरानी और गोबर खरीदी सहित कई कार्य कराए परंतु वन विभाग करतला द्वारा मजदूरी भुगतान अभी तक नहीं किया गया है। एक वर्ष से ज्यादा समय बीत चुका है, उस समय सिर्फ एक हफ्ते का मजदूरी भुगतान किया गया था। मजदूरी भुगतान के नाम पर घोटाला हो रहा है। आशंका है कि हमारा पैसा निकालकर हड़प लिए हैं।

दीपावली में भी उम्मीद टूटी : देवनारायण


ग्राम पीडिया निवासी देवनारायण राठिया ने बताया कि वन अधिकारियों को कई बार मजदूरी भुगतान कराने से संबंधी निवेदन किया गया परंतु आश्वासन देकर हमें जाने को कह देते हैं। दीपावली में मजदूरी मिलने की उम्मीद थी जिसे भी वन विभाग ने तोड़ दिया। भुगतान नहीं होने से परिवार के समक्ष आर्थिक समस्या है।

9 महीने काम का आज तक नहीं दिया मजदूरी : कीर्ति


ग्राम पीडिया निवासी कीर्ति सिंह सारथी करतला रेन्जर के निर्देशानुसार 9 महीने मजदूरी कार्य किया परंतु विभाग ने मजदूरी आज तक नहीं दिया। एक वर्ष बीत गया फिर भी विभाग ध्यान नहीं दे रहा है।

मशीन से काम और मजदूरों का नाम


वन विभाग में यह भी एक बड़ा विचित्र कारनामा हो रहा है कि सरकार जहां एक और मनरेगा से ग्रामीणों को उनके ही गांव में विभिन्न योजनाओं में मजदूरी पर लगाकर आर्थिक लाभ देने की मंशा रखती है तो दूसरी ओर जिला अधिकारियों की शह पर रेंजर के द्वारा जेसीबी, मशीन लगाकर खुदाई, पेड़ कटाई आदि के कार्य कराए जाते हैं। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि जिन कार्यों में मजदूर लगाये ही नहीं गए उनमें भी फर्जी नाम, अपने परिजनों/रिश्तेदारों/परिचितों के नाम दर्ज कर मजदूरी की मोटी रकम निकालकर हड़प किये गए हैं/हड़प किये जा रहे हैं। जंगल में मोर नाचा, किसने देखा…की तर्ज पर डीएफओ से लेकर रेन्जर, प्रभारी रेन्जर बने डिप्टी रेंजर, ठेकेदार मिलीभगत से काम कर रहे हैं और सरकार इन पर आंख मूंदकर विश्वास कर रही है।
(डीएफओ और रेन्जर से पूर्व में समाचार संबंधी चर्चा पर प्राप्त कटु अनुभव के कारण उनका पक्ष लेना जरूरी नहीं समझा गया।)