जगदलपुर 1 नवम्बर ( वेदांत समाचार )। बस्तर में इमली की प्रोसेसिंग के माध्यम से लगभग 12 हजार महिलाएं जुड़ी हैं इन्हें हर माह ढाई हजार से 3 हजार रूपए की आय हो रही है। चिरौंजी, रंगीली लाख, कुसमी लाख, शहद, महुआ बीज संग्रहण और प्रोसेसिंग के माध्यम से 8580 महिलाओं को काम मिला है। वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत रोपित पौधों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बस्तर के मुख्य वन संरक्षक मोहम्मद शाहिद ने विशेष निर्देश दिऐ है। बस्तर में वन विभाग आदिवासियों का हितों का पूरा ध्यान रखेंगा। साथ राज्य सरकार के निर्देश पर बस्तर के बीजापुर, सुकमा, दण्तेवाड़ा एवं बस्तर वन मंडल में पौधों के लिए नर्सरियों में लाखों पौधें तैयार किये जा रहे है। इसी तरह एनएमडीसी से प्राप्त सीएसआर मत्स्य एवं भारत सरकार के द्वारा मंजूर किये गये प्रोजेक्ट के तहत दंतेवाड़ा वन विभाग द्वारा व्यापक पैमाने पर वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए कार्य किए जा रहे है।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रदेश के जंगलों का विकास किया जाएगा। जंगलों में ऐसे पेड़ लगाए जाएंगे जो पर्यावरण के अनुकूल होंगे, आदिवासियों के पोषण और जीविकोपार्जन में सहायक होंगे। पौध रोपण के दौरान इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए। वन क्षेत्रों के विकास में इस कार्य को प्राथमिकता से शामिल किया जायेगा जिससे वनवासियों के जीवन में सुधार और उनके जीवकोपार्जन में मदद मिले। प्रदेश में वन विभाग द्वारा इस वर्ष विभिन्न मदों के अंतर्गत पांच करोड़ एक लाख पौधे के रोपण का लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने कहा कि जिन हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टे दिए जा रहे हैं उन्हें वृक्षारोपण के साथ जोड़ा जाना चाहिए और इन हितग्राहियों की जमीन पर मनरेगा और वन विभाग की योजनाओं के तहत अभियान चलाकर महुआ, हर्रा, बहेरा, आंवला, आम, इमली, चिरौंजी जैसे अलग-अलग प्रजातियों के फलदार वृक्ष लगाए जाएं, इससे भी जंगल बचेगा और हितग्राही को आमदनी भी होगी। इन हितग्राहियों को तत्काल आय का साधन उपलब्ध कराने के लिए उनकी जमीन पर तीखुर, हल्दी और जिमीकांदा भी लगाया जाना चाहिए, जिससे उन्हें इन उत्पादों के जरिए जल्द आय का साधन मिल सके। आज आदिवासी जंगलों से विमुख हो रहे हैं क्योंकि जंगल उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। हमें जंगलों को वनवासियों के लिए रोजगार और आय का जरिया बनाना होगा। फलदार वृक्ष लगाने के साथ-साथ लघु वनोपजों के संग्रहण और उनकी मार्केटिंग तथा वैल्यू एडिशन का भी एक सिस्टम तैयार किया जाना चाहिए, जिससे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सके। जंगलों, सड़कों के किनारे और राम वन गमन पथ के किनारे आम, बरगद, पीपल, नीम जैसी प्रजातियों के पौधे भी लगाए जाएं। उन्होंने बताते हुए निर्देश दिए कि वृक्षारोपण कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए स्थानीय लोगों और वनवासियों को अधिकाधिक जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान वन विभाग द्वारा अब तक विकास कार्यों के माध्यम से जरूरतमंदों को तत्परता पूर्वक रोजगार उपलब्ध कराया गया है। बस्तर में वनों में अग्नि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए वन विभाग द्वारा अग्नि रक्षक लगाकर रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा। इसके अलावा 241 नर्सरियों में पौधा तैयार करने तथा संयुक्त वन प्रबंधक के अंतर्गत वर्मी कम्पोस्ट, मशरूम उत्पादन, मछली पालन, तालाब गहरीकरण, बांस ट्री गार्ड निर्माण, लाख चूड़ी उत्पादन और भू-जल संरक्षण कार्य तथा नरवा विकास कार्यों के माध्यम से काफी तादाद में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।
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