उम्रकैद में कितने साल की होती है सजा? जानिए क्या कहता है कानून

नई दिल्ली. हाल ही में केरल की कोल्लम सेशन कोर्ट ने सांप से कटवाकर हत्या करने के आरोप में एक शख्स को दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई. कोर्ट के इस फैसले के बाद उम्र कैद या आजीवन कारावास को लेकर फिर से एक बार लोगों के मन में सवाल पैदा होने लगे.

लोगों के मन में एक धारणा बन गई है कि उम्र कैद की सजा का मतलब 14 साल की सजा होता है. लेकिन असल सच्चाई कुछ और ही है. आज हम आपको उम्र कैद की सजा का असली मतलब बताने जा रहे हैं.

उम्र कैद का मतलब जीवन भर रहना होगा जेल में

आमतौर पर लोगों को लगता है कि आजीवन कारावास 14 साल या 20 साल का होता है. बता दें, यह सब गलतफहमी है, आजीवन कारावास का मतलब है कि सजा पाने वाला व्यक्ति अपने बचे हुए जीवनकाल तक जेल में रहेगा. जब भी कोई कोर्ट किसी अपराधी को आजीवन कारावास की सजा सुनाती है तो इसका यही मतलब है कि आरोपी अपनी अंतिम सांस तक जेल की चारदीवारी के अंदर ही सजा काटेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में इसकी व्याख्या की है.

कई लोग हो जाते हैं 14 या 20 साल में रिहा

लोगों के मन में ये गलत धारणा इस वजह से बन गई है, क्योंकि कई बार देखा गया है कि आजीवन कारावास पाए गए व्यक्ति को 14 साल या 20 साल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया जाता है. आपको बता दें कि इसके पीछे की वजह कुछ और है. दरअसल, राज्य सरकारें एक निश्चित मापदंड के आधार पर किसी व्यक्ति की सजा कम करने की शक्ति रखती है. यही वजह है कि हम कई बार ये सुनते हैं कि आजीवन कारावास की सजा काट रहा व्यक्ति 14 साल बाद या 20 साल बाद रिहा हो गया. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 55 और 57 में सरकारों को सजा को कम करने का अधिकार दिया गया है।

इस वजह से होता है कंफ्यूजन

IPC की धारा 57 उम्र कैद की सजा के समय के संबंध में है. इस धारा के मुताबिक, कारावास के सालों को गिनने के लिए इसे बीस साल के कारावास के बराबर गिना जाएगा. लेकिन इसका ये बिल्कुल मतलब नहीं है कि आजीवन कारावास 20 साल का ही होता है. अगर कोई गणना करनी हो तो ही आजीवन कारावास को 20 साल के बराबर माना जाता है. गणना करने की जरूरत तब पड़ती है, जब किसी को दोहरी सजा सुनाई गई हो या किसी को जुर्माना न भरने की स्थिति में ज्यादा समय के लिए कारावास में रखा जाता है.

इन 5 तरह की सजा के हैं प्रावधान

आजीवन कारावास या उम्रकैद की सजा गंभीर अपराधियों को दी जाती है. IPC 1860 में अपराधों के दंड के विषय में विस्तार से बताया गया है. इसी प्रकार IPC की धारा 53 में दंड कितने प्रकार के होते हैं इसके बारे में बताया गया है. IPC कुल पांच तरह के दंड का प्रावधान करती है. इसमें मृत्युदंड, आजीवन कारावास, कारावास, संपत्ति का समपहरण और जुर्माना शामिल हैं.

सरकारों को है सजा करने का आदेश

आजीवन कारावास का मतलब है कि जब तक अपराधी जिंदा है तब तक वह जेल में ही रहेगा. लेकिन सरकार इस सजा को कम कर सकती है. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CRPC) की धारा 433 के तहत सरकार को अपराधी की सजा को कम करने का अधिकार है. सरकार CRPC की धारा 433 के तहत इन चार तरह की सजा को कम करा सकती है.

  1. सजा ए मौत की सजा को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के तहत किसी अन्य सजा के रूप में कम कर सकती है.
  2. आजीवन कारावास की सजा को 14 साल के बाद जुर्माने के रूप में कम कर सकती है.
  3. कठिन कारावास की सजा को एक समय के बाद जुर्माने या जेल के रूप में कम कर सकती है.
  4. सादा कारावास की सजा को जुर्माने के रूप में कम कर सकती है.

इन प्रावधानों के तहत सरकार अपराधी की सजा कम करा सकती है. इसके अलावा अच्छे आचरण के आधार पर आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कई लोगों को एक रिहा कर दिया जाता है.