नारायणपुर. 19 सितम्बर (वेदांत समाचार) कांकेर जिले के अंतिम छोर में बसे 58 गांव के आदिवासी ग्रामीण नारायणपुर जिले में सम्मिलित होने के लिए बेमियादी हड़ताल में हैं। पिछले 11 दिनों से धरने पर बैठे लोगों ने कपड़े उतार कर प्रदर्शन किया। 65 आदिवासियों ने अपना सिर मुंडवा कर पारंपरिक हथियार तीर-कमान-टंगिया लेकर प्रशासन का ध्यान अपनी और आकर्षित करने का प्रयास किया। प्रशासन ने तो अब तक उनकी सुध नहीं ली पर कांग्रेस व भाजपा के पदाधिकारियों ने आकर उनकी मांग को समर्थन प्रदान किया।
ग्रामीणों का कहना है की वर्ष 2007 से उनके द्वारा नारायणपुर जिले में शामिल करने की मांग की जा रही है, क्योंकि कांकेर जिला मुख्यालय से उनके गांव की दूरी बहुत अधिक है, जबकि नारायणपुर जिला मुख्यालय बहुत नजदीक है। कांकेर जिला मुख्यालय होने के चलते उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, स्कूल, आंगनबाड़ी जैसे सुविधा भी इन गांवों में सुचारू रुप से संचालित नहीं होते हैं। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति और दैनिक उपयोगी कार्यो के लिए भी नारायणपुर जिले पर आश्रित होना पड़ता है। रावघाट लौह अयस्क परियोजना के रावघाट की पहाड़ी नारायणपुर जिला मुख्यालय से समीप है।
चक्काजाम की तैयारी
आदिवासी अब आगामी दिनों में चक्का जाम और उग्र आंदोलन करने की बात कह रहे हैं। वहीं नारायणपुर जिला कांग्रेस एवं जिला भाजपा द्वारा समर्थन मिलने के बाद रावघाट संघर्ष समिति नारायणपुर अब अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलने की रणनीति बना रहे हैं।
राजनीति नफा-नुकसान में पिस रहे आदिवासी
ग्रामीणों का कहना है कि रावघाट परियोजना के चलते और राजनैतिक नफा नुकसान के चलते ग्रामीणों के धरने पर सरकार द्वारा बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आदिवासियों का कहना है कि नारायणपुर अबूझमाड़ की संस्कृति और देवी परगना से उनके रीति रिवाज जुड़े हुए हैं।
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