केन्द्र की मोदी सरकार के द्वारा सरकारी संपत्तियों को बेचने के निर्णय का कोरबा कांग्रेस परिवार ने विरोध किया

कोरबा 06 सितम्बर (वेदांत समाचार) – केन्द्र की मोदी सरकार के द्वारा सरकारी संपत्तियों को बेचने के निर्णय का कोरबा कांग्रेस परिवार ने विरोध किया है।
जिला कांग्रेस के शहर अध्यक्ष सपना चौहान ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि जनता की कमाई से पिछले 70 साल में बनाए गये सार्वजनिक उपक्रमों को कौड़ियों के दाम में कुछ चंद उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के नियत से केन्द्र की मोदी सरकार बेचने पर आमादा है। जिसका हम विरोध करते हैं। उन्होने आगे कहा कि कोई भी सार्वजनिक उपक्रमों का निर्माण उस समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए निर्माण कराये गये थे जिसे समय समय पर बेहतर से बेहतरीन करने के लिए भी आवश्यकतानुसार कदम उठाए गये थे। इन उपक्रमों के निर्माण के लिए विभिन्न विभागीय मद की राशि का उपयोग किया गया। ये सभी सरकारी उपक्रमों का निर्माण कांग्रेस सरकार के द्वारा कराये गये थे।


जिसे केन्द्र की वर्तमान सरकार द्वारा कौड़ियों के दाम पर बेचा जा रहा है। हमने पेड़ लगाए लालन पालन कर बड़ा किया। सबकुछ पक्का पकाया मिला तो फल के साथ साथ पेड़ को भी बेच देने के लिए उतावला है मोदी सरकार। जिसका हम विरोध करते हैं।
प्रदेश कार्यकारणी सदस्य सुरेन्द्र प्रताप जायसवाल ने बताया कि गुपचुप तरिके से एकाएक घोषणा कर सरकारी सार्वजनिक उपक्रमों को सेल करने का निर्णय से मोदी सरकार के नियत पर संदेह उत्पन्न होना लाजमी है। जायसवाल जी ने कहा कि कोई भी उपक्रम या सम्पत्ति अगर लाभ में है तो सरकार क्यों बेच रही है और हानि में है तो खरीददार क्यों खरीद रहे हैं। केन्द्र की मोदी सरकार सिर्फ उन उपक्रमों को बेच रही है जो फायदे में है ये फायदे पहुंचाने वाली संस्थान अगर निजी हाथों को बेच दिया गया तो आने वाले समय में आम आदमी के लिए बेहद महंगा साबित होगा।


वर्तमान में मोदी सरकार का मुख्य मुद्दा ढांचागत आधार को बेहतर करना नही है बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य कुछ चुनिंदा उद्योगपति दोस्तों को उनके कारोबार और व्यापार में एकाधिकार का अवसर प्रदान करना है।


कोरबा ब्लॉक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष संतोष राठौर ने बताया कि सार्वजनिक उपक्रमों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने जमीन दी थी, जमीन राज्यों का विषय होता है ऐसे में राज्य सरकार से सलाह लेना या उन्हे भरोसे में लेना, चर्चा करना उचित नही समझा गया इससे प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार के नियत में खोट है।


उन्होने आगे कहा कि किसी भी सरकारी सम्पत्ति को 30 या 60 वर्ष के लीज पर देना भी एक प्रकार से बेच देना जैसा ही साबित होगा, इतने लम्बे अवधि के दौरान उस सरकारी संपत्ति का कोई भी लाभ देश के नागरिक को नही मिलेगा जबकि इस अवधि में निजी क्षेत्र को ही लाभ मिलते रहेगा। इसमें आम नागरिकों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ से सामना करना पड़ेगा। जिसका हम विरोध करते हैं।