कटघोरा वनमंडल में जारी जंगलराज, जंगलों के भीतर निर्माण में भर्राशाही

कोरबा 04 सितम्बर (वेदांत समाचार) । कोरबा जिले का कटघोरा वन मंडल अपनी विवादित कार्यशैली के कारण सुर्खियों में रहने से उबर नहीं पा रहा। हालिया ताजा मामला चैतमा वन परिक्षेत्र का सामने आया है। यहां शासन के रुपयों की बर्बादी, गुणवत्ता हीन सामग्रियों से घटिया निर्माण और चंद दिनों में निर्माण बह जाने जैसा काम किया जा रहा है।

सूत्र बताते हैं कि चैतमा वन क्षेत्र में जंगल के भीतर डब्ल्यूबीएम सड़क और स्टाप डेम का निर्माण कराया जा रहा है। घने जंगल के अंदर राहा, सपलवा, तेलसरा आदि स्थानों में स्टॉप डेम व सीसी रोड का कार्य कराया जा रहा है जिसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की दरकार है। निर्माण कार्य ठेकेदार द्वारा कराया जा रहा है तो मॉनिटरिंग का जिम्मा विभाग का है। जहां निर्माण कार्य कछुए की चाल की तरह है वही गुणवत्ता की घोर अनदेखी की जा रही है । हमें जो तस्वीर मिली है वह चैतमा रेंज के जंगल में हो रहे निर्माण कार्य की है वहाँ 50 लाख की लागत से डब्ल्यूबीएम और 2 करोड़ रुपये का 4 से 5 स्टाप डेम बन रहा है।

सूत्र बताते हैं कि डब्ल्यूबीएम में 1लेयर गिट्टी और 1लेयर मुरुम बिछा कर काम पूरा कर दिया गया है। इसी तरह स्टॉप डेम निर्माण के लिए उसका आधार(बेस) मजबूत करने 1 मीटर नीचे से खोदना होता है लेकिन यहां तो जमीन के ऊपर से ही स्टॉप डेम बनाना शुरू किया गया। सूत्र बताते हैं कि यह ठेका 40 और 60% के अनुपात में है यानी कि 60% कमीशन में निकल गए और 40% में जो काम होना है उसे सहज ही समझा जा सकता है। ठेकेदार के कार्य मैं गुणवत्ता लाने के लिए जांच कराने की जरूरत है ताकि निर्माण मजबूत और टिकाऊ हो सके। वन विभाग के निर्माण कार्यों से जुड़े अधिकारियों को भी चाहिए कि वे अपने दायित्व के प्रति भी थोड़ा गंभीर होकर सरकार की लाखों-करोड़ों की धनराशि को इस तरह बर्बाद होने से रोकें।


घटनाओं से सबक नहीं, सिर्फ अपने बचाव की कवायद…
यहां काम करने वाले कुछ ठेकेदार हों या सप्लायर, वे या तो आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं या फिर न्यायालय की शरण लेकर अपने रुपए निकलवाने की कोशिश कर रहे हैं। रामराज्य की कल्पना करने वाली सरकारों में विभागीय प्रशासन तंत्र की भ्रष्ट और विवादित कार्यशैली का यह एक बड़ा उदाहरण है। मौजूदा वन मंडल अधिकारी पूर्व अधिकारी के कार्यकाल का निर्माण बता कर अपना पल्ला झाड़ रही हैं तो कागजी खानापूर्ति के नाम पर अधिनस्थ कर्मचारी को नोटिस और अटैच कर,ठेकेदार अभय गर्ग को 4 दिन में भुगतान करा देने का वादा कर एफआईआर करा दिया और स्वयं को किसी भी तरह के पचड़े से बचाने की कवायद की गई।

इस मामले में अक्षय-अभय के विरोधियों ने भी अहम भूमिका निभाकर कटघोरा में व्यापारिक एकता पर भी सवाल उठाये हैं और अपने लाभ के लिए भ्रष्ट कार्यशैली को समर्थन दिया। लग रहा था कि डीएफओ समा फारुकी इन घटनाओं से सबक लेकर कुछ अच्छा करने की कोशिश करेंगी लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा बल्कि कुछ चहेते ठेकेदार और सप्लायर तो इनकी शह पर मैनेजमेन्ट सहित निर्माण और मटेरियल सप्लाई में चमत्कार को अंजाम दे रहे हैं। इनमें कटघोरा के कुछ ठेकेदार और बिलासपुर का एक चमत्कारी सप्लायर शामिल है


0 रुपहले पर्दे की कहानी हकीकत में…

अभी तक फिल्मो में ही देखा गया था कि मंत्री के रिश्तेदार ही अधिकारी या ठेकेदार बन कर भ्रष्टाचार करते हैं। कोरबा में यह हकीकत में देखने को मिल रहा है कि मंत्री का रिश्तेदार होने पर कितने ही भ्रष्टाचार करिये, कोई कार्यवाही नहीं होगी चाहे जहां भी शिकायत कर लो। इनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि जंगल में हाथी मर जाए या दूसरे जानवर या कोई ठेकेदार कार्यशैली से त्रस्त होकर खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाए या कैम्पा मद के करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा कर सरकार के पैसों का दुरुपयोग किया जाय, कार्यवाही तो किसी भी मामले में होना ही नहीं है।

मंत्री के करीबी होने का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा रहा है जबकि कोई और डीएफओ होता तो नि:संदेह तबादला, निलंबन,नोटिस या कोई और कार्यवाही तो अब तक हो ही जाती। विपक्ष की मूकदर्शिता का भी पूरा-पूरा लाभ जिले में वन सहित अन्य विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को मिल रहा है

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