Garuda Purana : इन कर्मों को करने वाले लोगों को मृत्यु के बाद मिलती है प्रेत योनि !

आपने बचपन में स्वर्ग और नर्क की कहानियां जरूर सुनी होंगी. गरुड़ पुराण में भी कर्मों के हिसाब से मृत्यु के बाद आत्मा की स्थितियों और स्वर्ग व नर्क लोक के बारे में बताया गया है. गरुड़ पुराण की मानें तो व्यक्ति अपने कर्म के हिसाब से ही स्वर्गलोक, नर्कलोक, पितृलोक या मुक्ति प्राप्त करता है. लेकिन कुछ कर्म इतने खराब होते है जो व्यक्ति को मृत्यु के बाद प्रेत योनि में ले जाते हैं. प्रेत योनि को सबसे भयावह माना जाता है. बड़े से बड़ा पापी भी इस योनि को प्राप्त नहीं करना चाहता. यहां जानिए गरुड़ पुराण में किन कर्मों को प्रेत योनि में ले जाने वाला बताया गया है.

1. अपने पूर्वजों की श्राद्ध करते समय भोजन हमेशा पंडित को खिलाने के बाद ही करना चाहिए. यदि आप पहले भोजन कर लेते हैं, तो उसे जूठा भोजन माना जाता है. ये भूल व्यक्ति को प्रेत योनि में पहुंचाती है. गरुड़ पुराण में कथा के माध्यम से बताया गया है कि एक बार श्राद्ध के समय एक ब्राह्मण ने एक बुजुर्ग व्यक्ति को घर पर आमंत्रित किया. बुढ़ापे की वजह से उन्हें आने में देरी हो गई, तो ब्राह्मण ने चुपके से श्राद्ध के लिए बना भोजन खा लिया. बाद में जब बुजुर्ग व्यक्ति आए तो उन्हें भोजन कराया. मृत्यु के पश्चात उस ब्राह्मण को अपने इस कुकृत्य की वजह से प्रेत योनि में हिस्सा लेना पड़ा.

2. चोरी और छीना झपटी करने को गरुड़ पुराण में महापाप माना गया है, क्योंकि इससे दूसरा व्यक्ति का ऐसा नुकसान होता है कि उसकी भरपाई नहीं की जा सकती. ऐसे में उसके अंदर से आह निकलती है और वो पल पल चोरी करने वाले को कोसता रहता है. इस तर​ह का कष्ट पहुंचाने वाले चोर को प्रेत योनि भुगतनी पड़ती है.

3. प्यासे को पानी पिलाना शास्त्रों में बहुत बड़ा पुण्य माना गया है और प्यासे को पानी न देना या उसके हाथों से पानी छीन लेना, महापाप माना गया है. ऐसे व्यक्ति को भी प्रेत योनि प्राप्त होती है.

4. लालच और छल को भी महापाप की श्रेणी में रखा गया है. इसके चक्कर में लोग अपनों का ही अहित कर देते हैं. ऐसे लोगों को मृत्यु के बाद प्रेत योनि मिलती है.

5. जो लोग अपने माता पिता और भाई बहन के साथ बुरा बर्ताव करते हैं. उन्हें भूखा प्यासा रखते हैं, दिल दुखाते हैं, ऐसे लोगों को मृत्यु के बाद प्रेत योनि में जन्म लेना पड़ता है.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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