रायपुर: बिलासपुर हाईकोर्ट ने कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी के साथ उसकी इच्छा के खिलाफ यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना है। इस मसले पर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पति को अनाचार के आरोप से मुक्त कर दिया है। अधिवक्ता वायसी शर्मा ने गुरुवार को बताया कि न्यायमूर्ति एनके चंद्रवंशी की एकल पीठ ने कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी के साथ बलपूर्वक अथवा उसकी इच्छा के खिलाफ यौन संबंध या यौन क्रिया को बलात्कार नहीं माना है।हालाँकि पति पर अप्राकृतिक संबंध और दहेज प्रताड़ना के बाक़ी आरोप पर निचली अदालत विचारण करेगी।
शर्मा ने बताया कि राज्य के बेमेतरा जिले के एक प्रकरण में शिकायतकर्ता पत्नी ने अपने पति पर बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था, जिसे उसके पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
दरअसल, 8 जुलाई 2011 को बेमेतरा थाने में वैवाहिक जीवन के बाद दिलीप पांडेय पर उनकी पत्नी यौन संबंध और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था। पत्नी की ओर से इसमें पति के साथ जेठ और जेठानी भी दहेज प्रताड़ना के आरोपी बने थे। पुलिस ने विवेचना के दौरान केस डायरी में बलात्कार की धारा भी जोड़ी थी।
इस मामले में ससुराल पक्ष को अग्रिम ज़मानत मिल गई थी। निचली अदालत में विचारण के दौरान जबकि धाराओं पर बहस हुई जिसे अक्सर चार्ज पर बहस कहा जाता है, तब धारा 376 और 377 के विरुद्ध मामला हाईकोर्ट पहुँच गया।
क़रीब ढाई महिने पहले हाईकोर्ट में विचारण के लिये पहुँचे इस मामले में सेक्शन का ब्यौरा देते हुए धारा 376 और 377 को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता योगेश शर्मा ने न्यायालय में पैरवी करते हुए रेप की परिभाषा/ परिस्थितियों का ब्यौरा पेश किया जिसके तहत यह निर्धारण होता है कि कब किसे अनाचार माना जाए या नहीं माना जाएगा।
विदित हो कि दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मैरेटेरियल रेप के मामले आए जरुर हैं पर इसे लेकर कोई क़ानून का स्थापन भारत में पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं है।
हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर जस्टिस एन के चंद्रवंशी ने सुनवाई की, इस मामले में बहस 10 और 11 अगस्त को हुई थी और दोनों ही दिन क़रीब चार घंटे बहस हुई। अदालत ने इस पर फ़ैसला रिज़र्व कर लिया था, जिसे 23 अगस्त को सार्वजनिक किया। अदालत ने यह माना कि विवाहिता के साथ यदि पति संबंध बनाता है तो वह रेप नहीं माना जा सकता है।हालाँकि अदालत ने अप्राकृतिक यौन संबंध के मामले में कोई राहत नहीं दी है। प्रकरण अब वापस निचली अदालत को जाएगा और धारा 377,498A, और 34 के तहत मामले का विचारण होगा।
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