कोरबा,07 नवंबर 2024। इस वर्ष अत्यधिक वर्षा होने की वजह से एसईसीएल की खदानों में उत्पादन पर असर पड़ा है। अधिक वर्षा की वजह से कुसमुंडा खदान में जलभराव की स्थिति बनी, इससे खदान में उत्पादन प्रभावित हुआ और वर्तमान में लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है। जिससे ताप विद्युत केंद्रों में कोयले का स्टाक कम हो गया है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में स्थित कई विद्युत संयंत्रों में कोयले का अभाव है। स्थिति यह है कि कुछ संयंत्रों में तो महज तीन दिन का ही स्टाक शेष रह गया है। जितना कोयला खदान से संयंत्र पहुंच रहा, वह खप जा रहा है। वर्षाकाल के बाद जिला समेत छत्तीसगढ़ के अन्य संयंत्रों में कोयला स्टाक बढऩा था, पर ऐसा नहीं हो सका। बात एनटीपीसी के संयंत्रों से की जाए, तो 2600 मेगावाट के कोरबा सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट में आठ दिन का ही कोयला है।
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जबकि बिलासपुर जिला स्थित 2900 मेगावाट के सीपत सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट में केवल तीन दिन का ही कोयला शेष रह गया है। उधर छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी के जांजगीर-चांपा जिले स्थित एक हजार मेगावाट के मड़वा संयंत्र में कोयले के पांच दिन का स्टाक बचा है। इस संयंत्र के लिए कैप्टिव कोल ब्लाक रायगढ़ जिले के गारे-पेलमा कोल ब्लाक आबंटित है, यहां से उत्पादित कोयले की आपूर्ति रेल लाइन से संयंत्र तक की जाती है। खपत के अनुरूप कोयला उत्पादन यहां से नहीं हो पा रहा है, इसलिए एसईसीएल की खदान से भी लिकेंज का कोयला दिया जा रहा। इसके बाद भी यहां कोयले की संकट बनी हुई है। 1340 मेगावाट हसदेव ताप विद्युत संयंत्र में एक लाख 60 हजार टन कोयला है। एक इकाई बंद थी, जो सोमवार से रखरखाव के बाद बंद इकाई को शुरू कर लिया गया। इसके साथ ही अब यहां कोयले की खपत और बढ़ जाएगी। कुसमुंडा खदान से प्रतिदिन 20 से 21 हजार टन कोयला पहुंच रहा है। 500 मेगावाट क्षमता के डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत संयंत्र (डीएसपीएम) में वर्तमान में पर्याप्त कोयला है। यहां बताना होगा कि विद्युत संयंत्रों में न्यूनतम 15 दिन का कोयला स्टाक उपलब्ध रहना चाहिए। जानकारों का कहना है कि नियमित कोयला आपूर्ति बाधित होने पर विद्युत उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
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