आई.पी.एस. दीपका में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य की धुनों पर झूमने को विविश हुए दर्शक,एमरल्ड, सफायर, रुबी एवं टोपाज सदन के विद्यार्थियों ने दी छत्तीसगढ़ी गीतों पर रंगारंग प्रस्तुति । अपनी ओजस्वी एवं शानदार प्रस्तुति से बना सफायर हाउस विजेता एवं उपविजेता का खिताब दिया गया टोपाज हाउस को । छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य एवं छत्तीसगढ़ी नाटक का भरपूर आनंद लिया आई0पी0एस0 दीपका के विद्यार्थियों ने ।
कोरबा,04 नवंबर (वेदांत समाचार)। इंडस पब्लिक स्कूल, दीपका में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में एक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर श्रीमती ज्योति नरवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। कार्यक्रम का शुभारंभ सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलन एवं छत्तीसगढ़ के राजकीय गीत-‘अरपा पैरी के धार’ से हुआ। विद्यालय के विद्यार्थियों ने छत्तीसगढ़ी लोक कला का बखान करने वाली सुआ, करमा, राउत नाचा, पंथी, जस गीत आदि रमणीय एवं मनमोहक गीतों पर अपनी मनभावन नृत्य से समां बाँध दिया।
छत्तीसगढ़ भारत का 26 वां राज्य है जो कि प्राचीन काल में दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था। कुछ विद्वानों ने इसका नाम कोसल तथा महाकोसल भी बताया है, और प्राचीन ग्रंथों में छत्तीसगढ़ का नाम महाकान्तर भी पाया गया है। 1 नवम्बर 2000 कों यह मध्य प्रदेश से विभाजित कर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण कर लिया गया।6 वी एवं 12 वी शताब्दी में शरभपुरीय, पन्दुवंशी, नागवंशी और सोमवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। कलचुरियों ने इस क्षेत्र पर वर्ष 875 ई० से लेकर 1741 ई० तक राज्य किया। 1741 ई० से 1854 ई० में यह क्षेत्र मराठों के शासन आधीन रहा। फिर 1854 ई० में जब अंग्रेजों के आक्रमण के बाद ब्रिटिश शासन काल में राजधानी रतनगढ़ के बजाय रायपुर का महत्त्व बढ़ गया।
मध्य प्रदेश का हिस्सा निकालकर बनाया गया यह राज्य भारतीय संघ के 26वें राज्य के रूप में 1 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया। यह राज्य यहां के आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करता है। प्राचीनकाल में इस क्षेत्र को दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है। छठी और बारहवीं शताब्दियों के बीच सरभपूरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरी और नागवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ पर सन 980 से लेकर 1791 तक राज किया। सन 1854 में अंग्रजों के आक्रमण के बाद ब्रिटिश शासनकाल में राजधानी रतनगढ़ के बजाय रायपुर का महत्व बढ़ गया। सन 1904 में संबलपुर, ओडिशा में चला गया और सरगुजा रियासत बंगाल से छत्तीसगढ़ के पास आ गई।
सफायर हाउस के विद्यार्थियों ने जसगीत की ओजस्वी प्रस्तुति देते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया, जबकि टोपाज हाउस के विद्यार्थियों ने सुवा, करमा एवं राउत नाचा जैसे विभिन्न नृत्य कलाओं की प्रस्तुति कर दूसरा स्थान प्राप्त किया।श्रीमती ज्योति नरवाल ने कहा कि लोक कला एवं संस्कृति जो हमें विरासत में मिली है इसका संरक्षण एवं आने वाली पीढ़ियों को उसका हस्तांतरण हमारा नैतिक जिम्मेदारी है।
श्रीमती सोमा सरकार (शैक्षणिक प्रभारी प्री प्राईमरी एवं प्राईमरी) ने कहा कि इंडस पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने हुनर की कोई कमी नहीं है इस बात को यहाँ के विद्यार्थियों ने समय-समय पर साबित कर दिखाया है आज कि इस छत्तीसगढ़ लोकनृत्य प्रस्तुति को देखकर मैं इन होनहार विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं कि ये भविष्य में अपने परिश्रम एवं लगन के बलबूते अपने लक्ष्य को प्राप्त करें ।
मंच संचालन सुश्री पारुल पदवार एवं श्री हेमलाल श्रीवास ने किया साथ कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न करने में पूरे विद्यालय परिवार का भरपूर सहयोग रहा। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापित सुश्री पारुल पदवार ने किया एवं राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया । विद्यालय प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने सभी को राज्य स्थापना दिवस की शुभकामनाएँ दी और कहा कि हम जहाँ रहते हैं वहाँ की संस्कृति व परंपरा को हमें आत्मसात करना चाहिए।
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