देश की ऊर्जा सुरक्षा और आत्मनिर्भरता में मील का पत्थर साबित हो रहा सिंगरौली का कोयला

सिंगरौली, 25 सितम्बर, 2024: औद्योगिक विकास, तकनीकी उन्नति, जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विस्तार जैसे कारकों के साथ देश में बिजली की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है, और इसे पूरा करने में मध्य प्रदेश स्थित सिंगरौली क्षेत्र का कोयला खदान अहम भूमिका निभा रहा है। क्षेत्र की कोयला खदानों से न केवल औद्योगिक उत्पादन में लक्षित बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि एक प्रत्यक्ष लाभ सरकार को राजस्व के रूप में भी मिल रहा है। इसके अलावा इन खदानों के माध्यम से स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में भारी इजाफा हुआ है और क्षेत्रीय विकास को भी नए पंख लगे हैं। राजस्व वसूली के मामले में सिंगरौली जिला का खनिज विभाग प्रदेश भर में अव्वल रहा, जिससे सरकारी खजाने में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2023-24 में, सिंगरौली ने निर्धारित राजस्व लक्ष्य को पार करते हुए 3445.85 करोड़ रुपये की वसूली की, जो प्रदेश में सर्वाधिक थी। वहीं क्षेत्र की खदानों से कोयले की आपूर्ति ने कोयला आयात पर निर्भरता को भी कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जबकि अब यहां की नई कोयला खदानों से उत्पादन शुरू होने के बाद, आयातित थर्मल कोयले की मांग में भी उल्लेखनीय कमी देखने को मिलेगी, जिससे देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में तेज वृद्धि होने की संभावना है। कोयला मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, घरेलू कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-दिसंबर के बीच 7.14 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 872 अरब यूनिट तक पहुंच गया है। वहीं, इसी अवधि में कोयले के आयात में 40.66 प्रतिशत की कमी आई है, जो देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक संकेत है। सरकार ने 2029-30 तक देश में कोयले का उत्पादन 1.5 बिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जो भविष्य में आयात निर्भरता को और भी कम करेगा।

दरअसल, इस साल के शुरुआती 6 महीनों में ही बिजली की डिमांड पिछली बार के मुकाबले 8 फीसदी से ज्यादा पार कर गई है। अनुमान है कि 2040 तक बिजली उत्पादन लगभग 30,000 करोड़ यूनिट होगा और भारत की ऊर्जा डिमांड दोगुनी हो जाएगी, जिसे पूरा करने के लिए थर्मल कोयले की डिमांड बढ़कर लगभग 150 करोड़ टन पहुंच जाएगी। इसे देखते हुए कोल इंडिया ने 2025-26 में 1 अरब टन उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने की योजना बनाई है। वहीं सिंगरौली जिले के आसपास कोयला आधारित कुल नौ पावर प्लांट हैं जिनकी कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 21,270 मेगावाट है। इस क्षमता का आधे से अधिक (11,180 मेगावाट) अपेक्षाकृत नया है और इसे पिछले 10 वर्षों में जोड़ा गया है। अधिक क्षमता वृद्धि के कारण इस क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में कोयले की खपत हुई है। यही वजह है कि सिंगरौली को उर्जाधानी भी कहा जाता है जो सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों की बिजली की जरूरतों को भी पूरा करता है।

देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के पास अंडरग्राउंड माइनिंग फिलहाल एक बड़ा विकल्प है और निकट भविष्य में सिंगरौली जिला में भी कई परियोजनाएं आने की संभावना है जिससे कोयले की उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और स्थानीय विकास के साथ प्रदेश और देश का विकास होगा। हाल के दिनों में सिंगरौली में काम करने वाली कंपनियों की फेहरिस्त में कई निजी कंपनियां भी शामिल हुई हैं, जिससे कोयला और बिजली के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि के साथ सरकार के राजस्व में इजाफा हुआ है साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं।

हालाँकि देश रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में तेजी से विकास कर रहा है लेकिन फिलहाल कोयले के बिना देश की आर्थिक प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि वर्तमान में यह बिजली उत्पादन और औद्योगिक गतिविधियों का मुख्य आधार है। कोयले की भूमिका को भलीभांति समझते हुए केंद्र सरकार की योजनाओं के अनुसार, 2030 तक कोयला खदानों की नीलामी और उत्पादन के माध्यम से डेढ़ करोड़ लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।