छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बहुत अलग तरह की एक अदालत लगती है, जिसमें इंसानों को छोड़िए भगवान को भी सजा दी जाती है. ये सजा ‘मौत की सजा’ भी हो सकती है, इसलिए इसको दुनिया की सबसे अनोखी अदालत कहा जा सकता है. देवताओं का सजा दिए जाने की ये प्रक्रिया सालों पुरानी एक अनूठी परंपरा का हिस्सा है, जो आज भी कायम है. इस ईश्वरीय अदालत की हर बात चौंकाने वाली है, आइए उनके बारें में जानते हैं.
सजा से भगवान भी अछूते नहीं
एक इंग्लिश वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी बाहुल्य बस्तर में यह कोर्ट साल में एक बार बैठती है, जो एक मंदिर में लगती है. इसके बारे में सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि इस अदालत की सजा से भगवान भी अछूते नहीं है, अगर देवता अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं करते हैं. वे लोगों की रक्षा नहीं करते हैं, उनके जीवन में खुशहाली नहीं लाते हैं, तो उनको दोषी ठहराया जाता है और उन्हें सजा दी जाती है. इस कोर्ट को ‘जन अदालत’ कहा जाता है.
कोर्ट में पशु-पक्षी देते हैं गवाहीं
यह अदालत हर साल मॉनसून के दौरान भादो जात्रा उत्सव (Bhado Jatra Festival) के दौरान भंगाराम देवी मंदिर (Bhangaram Devi temple) में लगती है. मंदिर की देवी भंगाराम उन मुकदमों की सुनवाई करती हैं, जिनमें देवताओं पर आरोप लगाया है. गवाह के रूप में पशु-पक्षी अक्सर मुर्खियां होती हैं. गवाही के बात इन मुर्खियों को छोड़ दिया जाता है. उनको किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंचाई जाती है.
देवताओं के पास नहीं होते वकील
शिकायतकर्ता गांव के ही लोग होते हैं, जिनकी फसलों की बर्बादी से लेकर बीमारी तक से जुड़ी शिकायतें भगवानों से हो सकती हैं. आरोपी देवताओं के पास अपना पक्ष रखने के लिए वकील नहीं होते हैं. दोषी पाए जाने वाले देवाताओं के लिए कठोर सजा दिए जाने के प्रावधान हैं. यह अदालत तीन तक चलती है. इस आयोजन में गांव के करीब 240 लोग जुटते हैं. उनके खाने और पीने का इंतजाम किया जाता है.
दोषी देवताओं को निर्वासन की सजा
दोषी पाए गए भगवानों को निर्वासन की सजा सुनाई जाती है. ये सजा आजीवन की भी हो सकती है. एक तरह से उन्हें ‘आजीवन कारावास’ के रूप में दंडित किया जाता है जिसका मतलब होता है कि अब ये वे गांव में पूजे नहीं जाएंगे. उन्हें मंदिर से हटा दिया जाएगा, जो कि लोगों की उनमें आस्था टूटने का प्रतीक है. इस कोर्ट को चलाने के पीछे का एक ही विचार है कि भगवान भी लोगों के प्रति जवाबदेह हैं.
गलती सुधारने का भी मिलता है मौका
कोर्ट में देवताओं को गलती सुधारने और खुद को छुड़ाने का मौका भी दिया जाता है. अगर वे व्यवहार सुधारते हैं और लोगों के हितों पर ध्यान देते हैं. जैसे बेहतर वर्षा, अच्छी फसल या गांव में खुशहाली लाना, लोगों को परेशानियों से दूर रखना, तो उनको वापस मंदिर में जगह दी जाती है. लोग उनको फिर से पूजने लगते हैं. लोगों का मानना है कि अगर देवता लोगों की रक्षा करते हैं. उनकी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं, तो उनकी पूजा की जाती है. अगर यह संतुलन बिगड़ता है, तो देवताओं को भी दोषी ठहराया जाता है.
गांव का नेता देता है देवताओं को सजा
इस अनोखी अदालत में गांव के नेता वकील के रूप में काम करते हैं और मुर्गियां गवाह होती हैं. पूरी कार्रवाई के बाद गांव का नेता ही सजा का ऐलान करता है. ऐसा माना जाता है वह देवी का निर्देशों का पालन कर रहा होता है. उसके द्वारा देवताओं जो सजाएं दी जा सकती हैं, वो इस प्रकार हैं–
- निर्वासित करना, जिसमें दंडित देवताओं को प्रतीकात्मक करावास के रूप में मंदिर-घरों से निकाल दिया जाता है. कभी-कभी उनको पेड़ों के नीच रख दिया जाता है. इसके अलावा और भी तरह की सजाएं दंडित देवता को दी जा सकती हैं.
- कोर्ट में एक बहीखाता होता है, जिसमें हर मामले का रिकॉर्ड दर्ज होता है. जैसे- अभियुक्त देवताओं की संख्या, उनके कथित अपराधों की प्रकृति, गवाह और अंतिम निर्णय.
कब हुआ था भंगाराम मंदिर का निर्माण
स्थानीय लोगों को अनुसार, भंगाराम देवी सदियों पहले वर्तमान तेलंगाना के वारंगल से बस्तर आई थीं. मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में राजा भैरमदेव के शासनकाल में हुआ था. जब देवी यहां आईं थी, तब उनके साथ नागपुर से ‘डॉक्टर खान’ भी आए थे. उन्होंने हैजा और चेचक के प्रकोप के दौरान आदिवासी लोगों की रक्षा की थी, इसलिए उनको ‘खान देवता’ (Khaana Devata) का दर्जा प्राप्त है. भंगाराम देवी मंदिर में अन्य देवताओं के साथ ‘खान देवता’ भी विराजमान हैं.
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