“हर क्लिक और पोस्ट का असर असल जीवन पर होता है, साइबर बुलिंग को रोकने के लिए हमें अपने डिजिटल व्यवहार को सजग और संवेदनशील बनाना होगा” – डॉक्टर संजय गुप्ता

कोरबा, 21 अगस्त (वेदांत सामाचार)। साइबर बुलिंग में दूसरों को परेशान करने, धमकाने या डराने के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करना शामिल है। यह सोशल मीडिया, टेक्स्ट मैसेज, ईमेल या ऑनलाइन गेम के ज़रिए हो सकता है। पारंपरिक बुलिंग के विपरीत, साइबर बुलिंग कभी भी पीड़ितों तक पहुँच सकती है और इंटरनेट की सार्वजनिक प्रकृति के कारण अक्सर इसमें व्यापक दर्शक शामिल होते हैं।


इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के प्राचार्य एवं शिक्षाविद डॉक्टर संजय गुप्ता ने उक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि साइबर बुलिंग एक तरह से ऑनलाइन रैगिंग है। यह इंटरनेट के माध्यम से होने वाला शोषण है। इसमें किसी को धमकी देना, उसके खिलाफ अफवाह फैलाना, भद्दे कमेंट व घृणास्पद बयानबाजी करना, अश्लील भाषा, फोटो का गलत इस्तेमाल आदि काम किया जाते हैं। ऑनलाइन गेम के जाल में फंसा कर रुपये ऐंठना भी बुलिंग नया प्रचलित तरीका है। साइबर बुलिंग के शिकार गंभीर भावनात्मक संकट का अनुभव कर सकते हैं, जिसमें चिंता, अवसाद और कम आत्मसम्मान शामिल है। ऑनलाइन उत्पीड़न की निरंतर प्रकृति दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक प्रभावों को जन्म दे सकती है। साइबर बुलिंग को संबोधित करने में शिक्षा, जागरूकता और हस्तक्षेप का संयोजन शामिल है। डिजिटल शिष्टाचार सिखाने और ऑनलाइन व्यवहार की निगरानी करने में स्कूल, माता-पिता और समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पीड़ितों को सुरक्षा और संसाधन प्रदान करने के लिए कानूनी ढाँचे भी विकसित हो रहे हैं। पीड़ितों को विश्वसनीय व्यक्तियों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से सहायता लेनी चाहिए। साइबरबुलिंग के प्रभावों को संबोधित करने और कम करने के लिए उचित प्लेटफ़ॉर्म और अधिकारियों को घटनाओं की रिपोर्ट करना भी आवश्यक है।


डॉक्टर संजय गुप्ता ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि साइबरबुलिंग डिजिटल युग में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो सभी आयु समूहों के व्यक्तियों को प्रभावित करता है। इसका मुकाबला करने के लिए व्यक्तियों, समुदायों और नीति निर्माताओं के सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है ताकि एक सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण को बढ़ावा दिया जा सके।


डॉक्टर संजय गुप्ता ने साइबर बुलिंग के मुख्य पहलू के बारे में बताया कि इसमें झूठी अफ़वाहें फैलाना, धमकी भरे संदेश भेजना, आहत करने वाली टिप्पणियाँ पोस्ट करना और सहमति के बिना निजी जानकारी साझा करना जैसे विभिन्न रूप शामिल हैं। इससे पीड़ितों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि साइबर बुलिंग के शिकार गंभीर भावनात्मक संकट का अनुभव कर सकते हैं, जिसमें चिंता, अवसाद और कम आत्मसम्मान शामिल है। ऑनलाइन उत्पीड़न की निरंतर प्रकृति दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक प्रभावों को जन्म दे सकती है। साइबर बुलिंग की रोकथाम और प्रतिक्रिया के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी देते हुए बताया कि साइबर बुलिंग को संबोधित करने में शिक्षा, जागरूकता और हस्तक्षेप का संयोजन शामिल है। डिजिटल शिष्टाचार सिखाने और ऑनलाइन व्यवहार की निगरानी करने में स्कूल, माता-पिता और समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पीड़ितों को सुरक्षा और संसाधन प्रदान करने के लिए कानूनी ढाँचे भी विकसित हो रहे हैं।


पीड़ितों को विश्वसनीय व्यक्तियों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से सहायता लेनी चाहिए। साइबरबुलिंग के प्रभावों को संबोधित करने और कम करने के लिए उचित प्लेटफ़ॉर्म और अधिकारियों को घटनाओं की रिपोर्ट करना भी आवश्यक है।साइबरबुलिंग डिजिटल युग में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो सभी आयु समूहों के व्यक्तियों को प्रभावित करता है। इसका मुकाबला करने के लिए व्यक्तियों, समुदायों और नीति निर्माताओं के सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है ताकि एक सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण को बढ़ावा दिया जा सके ।


साइबर बुलिंग, यानी ऑनलाइन हिंसा और उत्पीड़न, एक गंभीर और बढ़ती हुई समस्या है जो डिजिटल युग में बहुत आम हो गई है। इसके बारे में मेरे विचार इस प्रकार हैं:


साइबर बुलिंग की पहचान:
साइबर बुलिंग तब होती है जब कोई व्यक्ति इंटरनेट, सोशल मीडिया, या अन्य डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके किसी को मानसिक या भावनात्मक रूप से चोट पहुँचाता है। इसमें ताना मारना, गाली-गलौज, असभ्य टिप्पणियाँ, या झूठी जानकारी फैलाना शामिल हो सकता है।

भावनात्मक प्रभाव:
साइबर बुलिंग पीड़ितों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकती है। इससे व्यक्ति में आत्म-संस्कार, चिंता, अवसाद, और आत्महत्या के विचार उत्पन्न हो सकते हैं। यह युवा लोगों के बीच विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि वे मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत संवेदनशील होते हैं।

नियंत्रण की कमी:
ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर उत्पीड़न की निगरानी और नियंत्रण मुश्किल होता है। यह अज्ञात या छिपे हुए व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है, जिससे पीड़ित को पहचानना और उनका सामना करना कठिन हो जाता है।

प्रभावी समाधान की आवश्यकता:
साइबर बुलिंग को रोकने के लिए स्कूलों, परिवारों, और समुदायों को एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसके साथ ही, डिजिटल शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना जरूरी है, ताकि लोग साइबर बुलिंग के दुष्परिणामों और उसके खिलाफ कदम उठाने के तरीकों को समझ सकें।

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