-प्रमोद भार्गव
बांग्लादेश में वर्तमान संकट के दौर में हिंदू समुदाय पहले की तरह पिटता हुआ नहीं, बल्कि अब हुंकार भरता हुआ दिखाई दे रहा है। हिंदुओं का यह बदला हुआ रुख न केवल उनके लिए उनके राष्ट्र का नागरिक बने रहने का अभिमान है, बल्कि शरणार्थी या घुसपैठिए की स्थिति से मुक्त बने रहने का स्वाभिमान भी है। उनकी इस भावना को सम्मान देते हुए मुहम्मद यूनुस को कहना पड़ा है कि हिंदू देश के नागरिक हैं, अतएव उनके प्रति हर प्रकार की हिंसा तत्काल बंद होनी चाहिए। उन्होंने कहा भी कि हम ऐसी सरकार का गठन करेंगे, जो नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए यह भी कहा कि अगर आपको मुझ पर भरोसा है, तो यह तय करना होगा कि देशभर में कहीं भी किसी पर कोई हमला नहीं किया जाए। यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि आप मेरी बात नहीं सुनते हैं, तो यहां मेरी कोई आवश्यकता नहीं है। यह कथन इस बात का संकेत है कि यूनुस अब देश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव एवं अन्याय नहीं देखेंगे। दरअसल, यूनुस एक बुद्धिजीवी होते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, इसलिए उन्हें शेख हसीना या खालिदा जिया की तरह वोट-बैंक के लिए बहुसंख्यक हित साधने की जरूरत नहीं रह गई है।
बांग्लादेश में एकाएक तख्तापलट के बाद हालात बद से बदतर होते दिखाई दिए हैं। नतीजतन, पुलिस बलों ने हड़ताल करके 650 थानों में ताला बंदी कर दी थी। इस कारण अराजकतावादी तत्वों को खुली छूट मिल गई और वे बांग्लादेश में रहने वाली लगभग 1 करोड़ 30 लाख की हिंदू आबादी वाले क्षेत्रों में आक्रामक होते दिखाई दिए। अतएव हिंदुओं को अपनी रक्षा के लिए स्वयं आगे आना पड़ा। एक हिंदू महिला के हाथ में हंसिया भी दिखा। यह हंसिया इस बात का प्रतीक था कि यदि किसी महिला से दुराचार की कोशिश की जाती है, तो हिंदू स्त्री देवी दुर्गा की प्रतीक बनकर प्रतिहिंसक अवतार में आ जाएगी। अपनी संगठन क्षमता दिखाने की दृष्टि से बांग्लादेश में हिंदू जागरण मंच के नेतृत्व में हिंदू व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय राजधानी ढाका के शाहबाग में एकत्रित हुए और आगजनी, लूटपाट व हमलों के विरोध में बड़ा प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में केवल हिंदू ही नहीं थे, बल्कि ईसाई और बौद्ध भी थे। इन लोगों ने हुंकार भरी कि “हम यहीं पैदा हुए हैं, यहीं मरेंगे। हम अपना देश (जन्मभूमि) छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे और अपने पर हो रहे जुल्मों व बर्बर हिंसा का साहस के साथ प्रतिकार करेंगे।”
बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद 64 जिलों में से 52 जिलों में हिंदुओं के खिलाफ 205 हिंसक घटनाएं घट चुकी हैं। कई हिंदुओं के गांव जला दिए गए, जिसके परिणामस्वरूप लोगों को पलायन करना पड़ा। इस घटना को लेकर बांग्लादेश हिंदू, बौद्ध, ईसाई एकता परिषद ने अंतरिम सरकार के नेता मुहम्मद यूनुस को खुला पत्र लिखकर कहा है कि “अल्पसंख्यकों में गहरी चिंता और अनिश्चितता है। सरकार को तत्काल ऐसे हालातों का संज्ञान लेना चाहिए।” संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने कहा कि “हम बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों के खिलाफ हैं। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तुरंत बांग्लादेश में चल रही हिंसा को नियंत्रित किया जाए। हम किसी भी नस्ल आधारित हमले या हिंसा भड़काने के उपायों के विरुद्ध खड़े हैं।” हालांकि बांग्लादेश में विद्रोही इतने उग्र हैं कि वहां की सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल हसन को प्रदर्शनकारियों के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा है। लोग अदालत में घुसते चले गए थे।
इस बीच देखने में आया है कि संयुक्त राष्ट्र और मुहम्मद यूनुस तो हिंदुओं की सुरक्षा की पैरवी कर रहे हैं, लेकिन भारत में कांग्रेस और विपक्षी दलों के ओंठ सिले हुए हैं। प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी की चुप्पी दुर्भाग्यपूर्ण है। राहुल और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने वक्तव्य में बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा की न तो कोई बात की और न ही उनका कहीं कोई उल्लेख किया। कांग्रेस की इस मनस्थिति पर कटाक्ष करते हुए भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि “कांग्रेस गाजा और फिलिस्तीन को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करती है, वहां के हालात पर समय-समय पर चिंता जताती है, मगर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपना मुंह नहीं खोलती है। आखिर कांग्रेस की ऐसी क्या मजबूरी है कि राहुल गांधी को गाजा की तो चिंता है, लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की कोई चिंता दिखाई नहीं दे रही है।” याद रहे, कांग्रेस व विपक्ष की इस वोट-बैंक की राजनीति के चलते कश्मीर में आतंक और अलगाववाद बढ़ा, नतीजतन वहां से पांच लाख से भी ज्यादा हिंदू, सिख और बौद्धों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा। क्या कांग्रेस बांग्लादेश में भी हिंदुओं की यही दुर्दशा देखने की इच्छुक है?
हिंदुओं पर हमले, मंदिरों और दुर्गा पंडालों में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं पाकिस्तान और बांग्लादेश में आम बात रही हैं। इन सबके बीच बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू समाज की आवाज को मुखर ढंग से उठाया नहीं जा सका है। इसका बड़ा कारण है कि पिछले चार दशकों के दौरान वहां से हिंदुओं की आबादी पांच फीसदी घटकर 13.5 से मात्र 8.5 फीसदी रह गई है। बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन भारत में होता रहा है। बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के लिए सबसे बड़ा खतरा है, राजनीतिक रूप से हाशिए पर चला जाना। परंपरागत रूप से हिंदू वोटर बांग्लादेश में सत्तारूढ़ आवामी लीग के समर्थक रहे हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना खुद को धर्मनिरपेक्ष बताकर हिंदुओं को सुरक्षा मुहैया कराने का वादा तो करती रही हैं, लेकिन हमले की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश अपने कार्यकाल में कभी नहीं लगा पाईं। हिंदू बांग्लादेश में इसलिए कमजोर हुए, क्योंकि पलायन करके भारत का रुख करते गए। यह पहली बार हुआ है कि बांग्लादेश के सभी अल्पसंख्यकों ने मिलकर विरोध प्रदर्शन किया और वहां की सरकार को देश का नागरिक होने के अधिकार को जताया। यदि हिंदू इसी दृढ़ता से पेश आते रहे तो उन्हें पलायन करके किसी अन्य देश का शरणार्थी बने रहने की जरूरत शायद नहीं रह जाएगी।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले एक निश्चित पद्धति के अनुसार होते रहे हैं। दंगों के पहले कुछ सामग्री सोशल मीडिया पर पोस्ट की जाती है और इसे इस्लाम के खिलाफ करार दे दिया जाता है। फिर कट्टरपंथी संगठन हिंदुओं पर हमले का फरमान जारी कर देते हैं। इसके बाद हमलों का दौर शुरू हो जाता है। उधर सरकार बस बयानबाजियां करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। यह बात अब अल्पसंख्यक, खासकर हिंदू समुदाय भी समझ चुका है, लेकिन राजनीतिक रूप से हाशिए पर होने के कारण कुछ नहीं कर पाता। हिंदू, बौद्ध व सिख अल्पसंख्यकों के निरंतर पाकिस्तान, बांग्लादेश और कश्मीर में संख्यात्मक रूप से कम होते जाने से स्थिति बिगड़ती जा रही है। अफगानिस्तान में भी यही हाल है। कुछ सालों के भीतर अफगानिस्तान से हिंदू और सिख लगभग पूरी तरह पलायन कर गए।
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