समस्या है पर कोई गंभीरता से लेता नहीं है…

सुनील दास

देश व राज्य में कई समस्याएं ऐसी भी होती है, जिससे लोगों को परेेशानी होती है, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है लेकिन कोई गंभीरता से लेता नहीं है। इससे वह समस्या बारहों महीने बनी रहती है और लोग परेशान भी बारहों महीने रहते हैं। आवारा घुमंतू मवेशी ऐसी ही समस्या है। इऩके सड़क पर बैठे रहने के कारण हर साल राज्य व शहर में बड़ी संख्या में हादसे होते है, कई लोग मारे भी जाते है, कई लोग घायल भी होते हैं। आंकड़ो के मुताबिक हर साल १५ लोग आवारा मवेेशियों के कारण मारे जाते हैं तथा घायल होने वाले लोगों की संख्या इससे कही ज्यादा होती है।

यह आंकड़ा सरकार को कम लगता है, इसलिए वह इसे गभीर समस्या ही नहीं मानती है। इसके निराकरण के लिए कोई ठोस याेजना ही नहीं बनाई जाती है।योजना नहीं बनाई जाती है, इसलिए इसके लिए कोई फंड भी नहीं दिया जाता है। जनहित याचिका के कारण मामला हाईकोर्ट भी जा चुका है, हाईकोर्ट ने सभी नपा, निगम आयुक्त सहित ग्राम पंचायतों के निर्देश दिए कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि सड़क व राजमार्ग पर आवारा मवेेशी न आ सकें। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इसके लिए जवाबदेही भी तय की जाए और कार्रवाई भी की जाए। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात।

इसी तरह मुख्य सचिव कई बार कलेक्टरों से कह चुके हैं कि आवारा मवेशी सड़कों पर नहीं दिखन चाहिए। रायपुर कलेक्टर ने इस मामले में अधिकारियों की डयूटी भी लगाई थी कि सड़क पर आवारा मवेशी दिखे तो पकड़कर गोठान या कांजी हाउस भेज दिया जाए। यह सिलसिला भी कुछ दिन चला फिर बंद हो गया। निगम अफसरो व कर्मचारियों को औऱ भी काम रहते हैं, इसलिए वह कुछ दिन के लिए तो यह काम करते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद बंद कर देते हैं।

भूपेश बघेल सरका के समय तो आवारा मवेशियों को रखने के लिए गौठान भी बनाए गए थे लेकिन ज्यादातर गौठान गांवों में बनाए गए, शहरों में बहुत ही कम गौठान बनाए गए इसलिए गौठान बनने के बाद भी शहरों मेे ंआवारा मवेशियों की समस्या बनी रही। अब तो हाल यह बताया जाता है कि नगर निगम व पालिका के कर्मचारियों को आवारा मवेशियो को सड़क पर दिखने पर पकड़ने को कहा जाता और गौठान भेजने को कहा जाता है तो वह गौठान भी नहीं भेज पाते हैं क्योंकि गोठान में जगह नहीं है,आदेश ही इसलिए काम करते दिखना है तो निगम के कर्मचारी आवारा मवेशियों को सड़़क से भगाते जरूर है इससे समस्या का समाधान नही होता है। एक जगह से हटाने पर वह दूसरी जगह जाकर बैठ जाता हैं।

इस समस्या के मूल मेें मवेशी के मालिक ही है। वह घर में मवेशी पालते तो शौक से हैं लेकिन उसे भर पेट आहार देने की बात आती है तो नही देते हैं और पेट भरने के लिए खुला छोड़ देते है। यही मवेशी शहर की सड़कों पर बैठे दिखते हैं। इन्ही के कारण हादसे होते हैं, इन्ही के कारण लोग घायल होते हैं। कई बार हादसों में मवेशियों की भी मौत होती है। यह समस्या बनी रहती है। इस समस्या के समाधान के लिए मवेशियों के मालिकों पर जुर्माना लगाने की बात की गई लेकिन इस पर अमल करना आसान नहीं था। क्योंकि मवेशी मालिक का पता लगाने का कोई उपाय नहीं है।

नगर पालिका व निगम को एक काम करना चाहिए कि नगरवासी अपने घर में कोई भी पशु पालते हैं तो पालिका व निगम में उसका पंजीयन अनिवार्य करे। साथ ही ंमवेशी को खुला छोड़े तो उसके गले में ऐसा कार्ड होना चाहिए जिससे मालिक के घर का पता चल सके। किसी मवेशी के कारण कोई हादसा हो तो सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे हादसे में मृत या घायल व्यक्ति को वाजिब मुआवजा निगम व मवेशी मालिक से मिल सके।मवेशियों के कारण साल में १५ लोगों की मौत कम लग सकती है लेकिन सरकार व निगम एक एक आदमी की जिंदगी के महत्व को समझेंगे यह बहुत ही गंभीर बात है. जरूरत आवारा मवेशियों की समस्या को गंभीर समझने की है।

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]