0. मुर्गीपालन व्यवसाय को बढ़ाने में परिवार बटा रहा श्यामबाई का हाथ
जांजगीर-चांपा 19 जुलाई 2024/ मुर्गी पालन से श्यामबाई प्रति माह मुनाफा कमा रही हैं, और वह सोनाली मुर्गी पालन से घर बैठे आर्थिक रूप से सशक्त हो रही है, अपितु अन्य लोगों को भी अपने कार्य से प्रेरित कर रही हैं। उनके इस कार्य में उनका पूरा परिवार हाथ बटाता है। इससे उन का पूरा परिवार उद्यमी के रूप में आत्मनिर्भर बनकर आगे बढ़ रहा है और उनके इस आत्मनिर्भरता के पीछे खड़ा हुआ है महात्मा गांधी नरेगा, जिससे उनके घर में मुर्गीपालन शेड बनाकर दिया है।
जिला जांजगीर-चांपा से 33 किलोमीटर दूर जनपद पंचायत से 4 किलोमीटर दूर है है ग्राम पंचायत मेऊ। जहां पर रहती है श्यामबाई टंडन। जो अपनी जमीन पर खेती करके अपना एवं अपने परिवार का जीवन यापन कर रही है। अपने विगत दिनों के बारे बात करते हुए श्यामबाई बताती है कि 2004 में उनके पति श्री भारत टंडन की मृत्यु हो जाने के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। उनके पति के रहते ही उन्होंने दोनों लड़कियों की जिम्मेदारी शादी करके पूरी कर दी थी, लेकिन उनके ऊपर अपनी स्वयं की जिम्मेदारी जरूर थी, ऐसे में उन्होंने हौंसला नहीं छोड़ा और मजबूती के साथ ही वह अपने पैरों पर खड़ी हुई। उनके पास महज 92 डिसमिल ही जमीन है जिस पर वर्षा आधारित खेती होने से पर्याप्त मात्रा में उपज नहीं होने के कारण पारिवारिक जरुरतों को पूरा करने में बडी दिक्कत आती थी, और मैं खुद मजदूरी करते हुए पालन पोषण कर रही थी। उनकी तकलीफ को देखते हुए उनकी एक बेटी उनके पास रहने लगी और उनकी जिम्मेदारी उठाई। श्यामबाई जुझारू महिला थी इसलिए उन्होंने अपने परिवार के लिए कुछ नया करने का सोचा। इसके लिए परिवार के साथ उन्होंने मुर्गीपालन का कार्य शुरू किया लेकिन कच्चा घर होने के कारण मुर्गियां मर जाती थी, या फिर उन्हें बिल्लियां खा जाती थी, इस समस्या से जूझ रहीं श्यामबाई के परिवार को ऐसे में एक दिन पता चला कि महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से मुर्गीपालन के लिए शेड बनाकर दिया जाता है, फिर उन्होंने ग्राम रोजगार सहायक के माध्यम से आवेदन तैयार कर ग्राम सभा में अपने प्रस्ताव को दिया। ग्राम सभा से प्रस्ताव की मंजूरी मिलते ही तकनीकी सहायक श्री राकेश लहरे ने तकनीकी प्रस्ताव तैयार करते हुए जनपद से जिला पंचायत भेजा। जिला पंचायत से प्रशासकीय स्वीकृति 92 हजार रूपए की स्वीकृति मिलने के उपरांत बिना देर किये ही काम शुरू किया गया। जैसे-जैसे मुर्गीपालन शेड बनता गया उनकी उम्मीद और हौंसला बढ़ता गया। जिस दिन उनका शेड तैयार हुआ उन्होंने सोनाली मुर्गियों को उस शेड में सुव्यवस्थित तरीके से रखना शुरू किया। श्यामबाई के नाती रोशन भारद्वाज एवं नातिन नीतू बताती हैं नानी ने बहुत संघर्ष किया है अपने जीवन में उम्र के इस पडाव पर भी वह बेहद कर्मठ है। हम सब परिवार मिलकर उनके साथ मुर्गीपालन का कार्य करते हैं, अप्रैल में चूजे लाए थे, जिन्हें अच्छी खुराक दी धीरे-धीरे वह मुर्गी बढ़ी हो गई, जिसे बाजार में बेचकर परिवार को प्रतिमाह 7 से 8 हजार रूपए की आमदनी होने लगी। रोशन बताते हैं कि खेती-किसानी के साथ ही मुर्गीपालन से होने वाली आय से वह अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं और गांव में ही रहते हुए उन्हें रोजगार भी मिला है। महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से मुर्गीपालन शेड ने उनके परिवार को बहुत बल मिला है, जहां पहले मुर्गियां मर जाती थी वहीं अब उन्हें बेहतर शेड मिल गया है, जिसमें अब किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो रही है।
[metaslider id="347522"]