PEKB कोयला खदान के सुचारु रूप से संचालन और पीसीबी खदान को शुरू कराने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन

  • कहा 104 हे० वन भूमि उपलब्ध करायें नहीं तो 10000 लोगों की नौकरी जाने से रोजी-रोटी छिन जायेगी
  • पीसीबी खदान को जमीन देने के बाद रोजी-रोटी व आय का कोई साधन नहीं बचा

अंबिकापुर; 13 जुलाई 2024: जिले के उदयपुर प्रखण्ड में स्थित परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी) कोयला खदान के सुचारु संचालन और सूरजपुर जिले के प्रेमनगर प्रखण्ड में स्थित परसा कोल ब्लॉक (पीसीबी) को शुरू कराने के लिए गुरुवार को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा है। इन दोनों जिलों के ग्राम साल्ही से चंदरकेश्वर पोर्ते, रघुनन्दन पोर्ते, ग्राम घाटबर्रा से मुकेश यादव , मुन्ना यादव, हरिश्चंद्र व अन्य, फतेहपुर से समल सिंह पोर्ते, केश्वर पोंर्ते, धनश्याम पोर्ते, तारा से रंगीलाल मरकम, शिवरतन,बाबूलाल यादव, हरिहरपुर के राजेश्वर दास, नेमसाय कोर्राम सहित लगभग 20 आदिवासी ग्रामीणों का एक समूह 13 जुलाई 24 को रायपुर पहुँचा। यहां इन्होंने मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में उनके क्षेत्र में चल रही पीईकेबी कोयला खदान और पीसीबी के समर्थन में ज्ञापन जमा कराया।

लगभग 400 से अधिक ग्रामीणों के हस्ताक्षर युक्त इस ज्ञापन में लिखा है कि, “राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोयला खदान विगत 12 वर्षों से संचालित है। इस खदान में आसपास के दर्जनों गांवों के हजारों स्थानीय लोग नौकरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। किन्तु वर्तमान में पीईकेबी कोयला खदान के निरंतर संचालन आवश्यक भूमि उपलब्ध नहीं है जिससे खनन का कार्य प्रभावित हो रहा है। अतः इसके सुचारु रूप से संचालन के लिए जरूरी 104 हे० वन भूमि उपलब्ध कराया जाना अति आवश्यक है। क्योंकि इसके न होने से खदान में उत्पादन प्रभावित होगा जिससे यहां कार्यरत हम ग्रामवासियों के साथ-साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग आसपास के 10000 लोगों की नौकरी समाप्त हो जायेगी और हमारी रोजी रोटी छिन जायेगी।“

वहीं परसा कोल ब्लाक के प्रभावित, ग्राम तारा के रंगीलाल मरकम, शिवरतन,बाबूलाल यादव तथा साल्ही के मोहरसाय पोर्ते, राहुल दास, बुद्धिमान सिंह व अन्य ग्रामीणों ने ज्ञापन में लिखा कि “ग्राम साल्ही, घाटबर्रा एवं जनार्दनपुर में अधिग्रहीत भूमि के मुआवजा वितरण का कार्य लगभग समाप्त हो गया है एवं शेष तीन ग्राम हरिहरपुर, फतेपुर एवं तारा में अधिग्रहीत भूमि के मुआवजा वितरण की कार्यवाही चल रही है। इस कोल ब्लाक से प्रभावित भूमि का मुआवजा भी परसा कोल ब्लाक प्रबंधन के द्वारा हमें प्रदान किया जा चुका है। मुआवजा राशि को स्वीकार करने के बाद पुनर्वास योजना के तहत मिलने वाले लाभों को प्राप्त करने के लिए हम निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। ग्राम हरिहरपुर के आदिवासी ग्रामीण राजेश्वर दास, नेमसाय कोर्राम, फतेहपुर के समल सिंह पोर्ते, केश्वर पोंर्ते, धनश्याम पोर्ते ने बताया कि “परसा कोल ब्लाक के संचालन को शुरू करने के लिए प्रबंधन द्वारा शासन से सभी वांछित अनुमतियां प्राप्त की जा चुकी है किन्तु अब तक खदान का संचालन शुरू नही किया गया है। पिछले वर्ष उक्त कोयला खदान का संचालन प्रारम्भ करने हेतु प्रयास किया गया था किन्तु कुछ बाहरी तत्वों द्वारा परियोजना मे व्यवधान उत्पन्न कर परसा कोल ब्लाक को बन्द करा दिया गया। इससे योजना से प्राप्त होने वाली सुविधाएं जैसे कि नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क आदि की सुविधा नहीं प्राप्त हो रही है। जबकि पीईकेबी खदान के ग्रामों में विकास के कई कार्य चल रहे हैं जिससे हम सभी लोग अभी अछूते हैं। हमें रोजगार नहीं मिलने से अब बेघर और बेरोजगार हो गये हैं और जमीन देने के बाद अब न ही रोजी-रोटी व आय का कोई साधन बचा है।“

ग्राम साल्ही के चंदरकेश्वर पोर्ते, रघुनन्दन पोर्ते, ग्राम घाटबर्रा से मुकेश यादव ने बताया कि, “पीईकेबी कोयला खदान खुलने के पूर्व वे सभी ग्रामवासियों की स्थिति काफी दयनीय थी तथा यहां पर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव था। किन्तु जब से कोयला खदान शुरू होने से कोयला खदान प्रबंधन द्वारा इन गांवों के विकास के लिए कई प्रयास किये गए हैं। जिनमें बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था के लिए केन्द्रीय बोर्ड का स्कूल खोला गया है जिसमें हमारे बच्चों निःशुल्क शिक्षा, बस सेवा, पुस्तकें, गणवेश, स्कूल में बच्चों को नाश्ता तथा खाने की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा ग्राम गुमगा में अस्पताल से ग्रामवासियों का निः शुल्क उपचार, 24 घंटे एम्बुलेन्स सेवा तथा गांवों में मेडिकल कैम्पों से वृद्धों को बेहतर उपचार दिया जा रहा हैं। अतः खदान संचालन से इन सभी के जीवन स्तर में सुधार हुआ है। वहीं क्षेत्र की जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए खदान प्रबंधन द्वारा खनन के पश्चात 1100 एकड़ से अधिक भूमि को समतल 11.50 लाख से अधिक वृक्षारोपण किया गया है जिनमें मुख्यतः साल, हर्रा, बहेरा, खैर, सीशम, सागौन इत्यादि के जंगली और आम, जामुन, कटहल, तेंदू, इत्यादि के फलदार पौधों का रोपण किया गया है जो अब पेड़ बनकर एक घना जंगल बन चुका है।“

इस तरह एक ओर जहां पीईकेबी खदान को आवश्यक जमीन ने मिलने से यहां नौकरी कर रहे हजारों लोगों के सामने नौकरी जाने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं दूसरी ओर जमीन देने के बावजूद पीसीबी खदान के शुरू न हो पाने से नौकरी और विकास की उम्मीद लिए ग्रामीणों ने एक बार फिर प्रदेश के नए और आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से गुहार लगाई है। अब देखना है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री इन आदिवासी ग्रामीणों की पुकार सुनकर इन्हें उनकी रोजी-रोटी की चिंता पर कितनी तेजी से अमल करते हैं?