IPS डांगी को मिली डॉक्टर की उपाधि, इस विषय पर किया शोध…

रायपुर,20 जून 2024। आईपीएस रतन लाल डांगी को दुर्ग के हेमचंद यादव विश्वविद्यालय ने डॉक्टर की उपाधि प्रदान की है। इसके लिए शोधार्थी रतन लाल डांगी ने विश्वविद्यालय के टैगोर हॉल में अपने शोध-प्रबंध का प्रस्तुतिकरण दिया। डांगी ने अपना शोध कार्य निर्देशक डॉ. सुनीता मिश्रा, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान शासकीय नवीन महाविद्यालय, खुर्सीपार, भिलाई एवं सहायक निर्देशक डॉ. प्रमोद यादव विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान, सेठ आरसीएस कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, दुर्ग के निर्देशन में पूर्ण किया है।

आईपीएस डांगी के शोध का टॉपिक था “छत्तीसगढ़ में माओवादी समस्या के उन्मूलन में सहायक पुलिस आरक्षकों की भूमिका (जिला बीजापुर के संदर्भ में)” रही। उल्लेखनीय है कि, रतन डांगी ने अपने कैरियर की शुरुआत देश के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर संभाग से ही की थी। वे एसडीओपी उत्तर बस्तर कांकेर, एसपी पश्चिम बस्तर बीजापुर, एसपी उत्तर बस्तर कांकेर, एसपी बस्तर, डीआईजी उत्तर बस्तर कांकेर एवं दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा में पदस्थ रहे हैं। इन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरी समस्या माओवाद को नजदीक से देखा है एवं इसका मुकाबला भी किया है। जिला बीजापुर में पुलिस अधीक्षक रहते हुए नक्सलियों के विरुद्ध अभियानों का नेतृत्व करने से उनको महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा दो बार पुलिस वीरता पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है।

माओवादियों के विरुद्ध आदिवासियों के स्वस्फूर्त जन आंदोलन सलवा जुडूम के समय डांगी बीजापुर जिले के पुलिस अधीक्षक थे। उस दौरान माओवादियों द्वारा आदिवासियों के राहत शिविरों एवं सलवा- जुडूम नेताओं पर लगातार हमले किए जा रहे थे। उनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने स्थानीय युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त किया। इन युवाओं (एसपीओ) के सहयोग से पुलिस ने सघन नक्सल विरोधी अभियान चलाए जिससे नक्सलियों के बस्तर से पैर उखड़ने लगे।

नक्सलियों के पैर उखाड़ने में एसपीओ की बड़ी भूमिका
आईपीएस डांगी ने अपने शोध में भी यह पाया कि 99 प्रतिशत युवाओं ने एसपीओ/सहायक पुलिस आरक्षक बनने के पीछे नक्सलियों को खत्म करने एवं क्षेत्र के विकास करने को बताया है। 90 प्रतिशत युवाओं ने यह माना कि उनके सहायक पुलिस आरक्षक बनने से स्वयं के साथ ही परिवार ने प्रगति की है। 85 प्रतिशत युवाओं ने माना कि उनके सहायक पुलिस आरक्षक बनने के बाद से उनके गाँव में विकास कार्य हुए है। 92 प्रतिशत युवाओं ने माना है कि उनके सहायक पुलिस आरक्षक बनने से नक्सली वारदातों में कमी आई है। 94 प्रतिशत का कहना है कि नक्सल विरोधी अभियानों में तेजी आई है। शोध के दौरान 96 प्रतिशत युवाओं ने बताया कि उनके पारिवारिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि में भी सुधार आया है। 91 प्रतिशत सहायक पुलिस आरक्षकों का कहना है कि उनके इस पद पर नियुक्ति से क्षेत्र के युवाओं का नक्सलियों से मोहभंग हुआ है। साथ ही 91 प्रतिशत का कहना है कि इससे उनके क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं।

रतन लाल डांगी वर्तमान में राज्य पुलिस अकादमी में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। शोध प्रस्तुतीकरण कर समय दुर्ग विश्वविद्यालय की कुलपति पलटा मेडम, भूपेन्द्र कुलदीप कुलसचिव, डॉ. सुनीता मिश्रा, डॉ. प्रमोद यादव एवं विश्वविद्यालय के स्टाफ के साथ-साथ बड़ी संख्या में शोधार्थी भी उपस्थित रहे।