कोरबा जिले में बेलगाम बने हुए रेत माफियाओं द्वारा जोर-शोर से रेत की चोरी करने के साथ स्टॉक करना शुरू कर दिया

कोरबा,02 जून 2024। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की व्यवस्था के अंतर्गत 15 जून से 15 अक्टूबर तक देश भर में नदी नालों से रेत खनन और परिवहन जैसी गतिविधियां प्रतिबंधित हो जाएगी। यह तारीख काफी नजदीक है। कोरबा जिले में पहले से ही बेलगाम बने हुए रेत माफियाओं और उनके लिए काम करने वाले चेहरों ने अब जोर-शोर से रेत की चोरी करने के साथ स्टॉक करना शुरू कर दिया है ताकि आने वाले समय में इसके जरिए भरपूर कमाई की जा सके।


कोरबा जिले में रेत के काले कारोबार में आम से लेकर खास तक शामिल हैं। जिले का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां पर रेत का अवैध कारोबार न हो रहा हो। जिले में अब तो आधी रात रेत माफिया सक्रिय हो गए है। शहर और गांव की गलियों में रात भर रेत से भरे टैक्टर दौड़ रहै है। रेत से लोड ट्रैक्टर रात 12 बजे हसदेव नदी के किनारे सर्वमंगला नगर, नदियाखार, ढेंगुरनाला, धवईपुर, जुराली, पौडी उपरौड़ा में तान नदी से और कटघोरा में अहिरन नदी से रेत भरकर धमाचौकड़ी मचाते हुए निकलते हैं। रात के सन्नाटे के बीच रेत की चोरी करने के लिए रेत माफिया सक्रिय हो जाते है । ट्रैक्टरों के माध्यम से मध्य रात से सुबह 5 बजे तक बेखौफ तरीके से रेत का परिवहन आसपास के क्षेत्रो में की जाती है। रेत माफिया को अब न तो पुलिस का खौफ है और न खनिज और राजस्व विभाग के अधिकारियों का। क्योंकि रेत माफिया इन विभागों के अधिकारियो से सांठगांठ कर अपना काम चला रहे है तभी तो आधी रात बेधडक़ सप्लाई हो रही है। यह बात अलग है कि कोरबा जिले में कुछ मौका पर रेत तस्करों के विरुद्ध प्रशासन की ओर से कार्रवाई जरूर हुई है लेकिन वह ना के बराबर है।

ऐसे मामलों में काफी कम पेनल्टी किए जाने से माफियाओं के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। खनिज विभाग और प्रशासन की ढीली पकड़ के कारण रेट तस्कर काली कमाई करने में व्यस्त है।
सफेदपोश भी इस काम में शामिल

कोरबा जिले की विभिन्न क्षेत्रों में रेत की तस्करी काफी समय से चलती रही हैं और इस पर अलग-अलग कारण से सवाल भी खड़े होते रहे हैं। अनुमान है कि हर महीने लाखों की रेत की चोरी करने के साथ सरकार को चपत लगाने का काम तस्करी करने वाला वर्ग कर रहा है। सूचनाओं के अनुसार रेत की तस्करी के इस काम में प्रमुख राजनीतिक दलों से जुड़े हुए चेहरे अपनी भूमिका निभा रहे हैं। शायद यही कारण है कि चाह कर भी बड़ी कार्रवाई नहीं हो पा रही है।

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