हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के तय मापदंड के अनुसार 3 महीने में आरक्षण नीति को रिफ्रेम करने के निर्देश दिए
रायपुर, 18 अप्रैल । राज्य शासन ने हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन शुरू कर दिया है। तीन माह में सरकार इस मामले को कैसे रीफ्रेम करेगी, यह कुछ दिन में स्पष्ट होगा। लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कई चुनावी सभाओं में ऐलान किया है कि छत्तीसगढ़ में किसी भी वर्ग का आरक्षण न तो खत्म किया जाएगा, और न ही कम किया जाएगा। इस तरह, यह कयास लगाए जा रहे हैं कि जून अंत या जुलाई में सरकार की तरफ से नई जो नया नोटिफिकेशन आएगा, उसमें प्रमोशन में एसटी के लिए 32 और एससी के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रह सकता है।
सरकारी नौकरियों में प्रमोशन पर आरक्षण के मामले में मंगलवार को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया, कुछ प्रचार माध्यमों में उसकी व्याख्या इस तरह की जा रही है, जैसे अदालत ने छत्तीसगढ़ में प्रमोशन पर आरक्षण ही खत्म कर दिया है। हाईकोर्ट के फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ के विधि विशेषज्ञों, पूर्व एडवोकेट जनरल, याचिकाकर्ताओं और अभियोजन से जुड़े लोगों से बातचीत की, तो यह तथ्य सामने आया कि कोर्ट ने वह नोटिफिकेशन ही रद्द किया है, जो भूपेश सरकार 22 अक्टूबर 2019 को लेकर आई थी। प्रमोशन में आरक्षण रद्द नहीं हुआ, बल्कि हाईकोर्ट ने साय सरकार को निर्देश दिए हैं कि इस आदेश की कापी मिलने से तीन महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट की ओर से समय-समय पर जारी मापदंडों के अनुरूप प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर फिर से कार्य करते हुए इसे रीफ्रेम किया जाए। इस तरह, अब यह स्थिति बन रही है कि भूपेश सरकार का नोटिफिकेशन रद्द होने के बाद प्रमोशन में आरक्षण को लेकर गेंद पूरी तरह साय सरकार के पाले में आ गई है। नए नोटिफिकेशन के जरिए सरकार आरक्षण में प्रमोशन को पूरी तरह रद्द करेगी, या फिर भूपेश सरकार के फैसले को जारी रखेगी, यह फैसला अब पूरी तरह से विष्णुदेव साय की भाजपा सरकार को ही करना है।
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश का पैराग्राफ-35 जो पूरी स्थिति को स्पष्ट करता है…
इस मामले की सुनवाई कर रही हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले के पैराग्राफ 31 में 22 अक्टूबर 2019 के नोटिफिकेशन को रद्द किया है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार ये वही नोटिफिकेशन है, जो प्रमोशन में आरक्षण नियम 2003 तथा 2012 को संशोधित करके भूपेश बघेल सरकार लेकर आई थी। इस अधिसूचना में प्रमोशन में अनुसूचित जनजाति ( एसटी) को 32 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति (एससी) को 13 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। वह अधिसूचना 100 बिंदु आरक्षण रोस्टर के साथ लाई गई थी। भूपेश सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान यह नियम लागू रहा। इस मामले में तत्कालीन एडवोकेट जनरल सतीशचंद्र वर्मा ने हाईकोर्ट में शासन का पक्ष इतने ताकतवर तरीके से रखा था। यह बात फैसले में आई है, जिसे हम हूबहू प्रस्तुत कर रहे हैंः-
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने तर्कों के आधार पर तथा एक-एक बिंदु पर बारीके से रोशनी डालते हुए भूपेश सरकार के कार्यकाल में जारी अधिसूचना को रद्द करने का फैसला लिया है। अदालत ने यह निर्देश भी दिए कि सुप्रीम कोर्ट में जरनैल सिंह-2 के कैडर वाइज डाटा के आधार पर मत व्यक्त किया है। गौरतलब है, कैडर वाइज डाटा पर सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2022 में फैसला दिया था। तब छत्तीसगढ़ शासन ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 में बीके पवित्रा-2 और 2018 में जरनैल सिंह-1 फैसले के आधार पर डाटा कलेक्ट करवाया तथा इसे जवाब7 के तौर पर अक्टूबर-2021 में कोर्ट में फाइल किया गया था। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के हेड नोट में हिंदी में साफ व्याख्या की गई है कि पदोन्नति में एसटी और एससी के लिए आरक्षण नीति सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग निर्देशों के आधार पर निर्धारित मापदंडों में मात्रात्मक डाटा एकत्र करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 164-ए और 164-बी के निहित प्रावधानों के आधार पर बनाई जा सकती है।
संविधान के आर्टिकल 16(4) के अनुसार प्रमोशन में आरक्षण खत्म नहीं हो सकता…
द स्तंभ ने इस मामले में विनोद कोसले तथा कुछ याचिकाकर्ताओं से भी बात की। उनका कहना है कि देश के संविधान में आर्टिकल 16(4) के जीवित रहने तक केंद्र या राज्य सरकारें पदोन्नति में आरक्षण खत्म नही कर सकेंगी। इसका कारण यह है कि 2006 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 77वें और 85वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा है। आर्टिकल 16(4) के मुताबिक इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य की सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर परिणामिक वरिष्ठता सहित प्रोन्नति के मामले में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
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