बिलासपुर,29 मार्च । छत्तीसगढ़ में चैतुरगढ़ किसी पहचान का मोहताज नहीं है। मन में जब कहीं भ्रमण कर आने का विचार आता है तो सबसे पहले नाम इसी पर्यटन स्थल का आता है। यह दुर्गम स्थल अलौकिक और प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। यह धार्मिक स्थल के साथ-साथ पिकनिक का बड़ा स्पाट बन चुका है। यहीं कारण है कि सप्ताह का कोई भी दिन ऐसा नहीं, जब यहां पर्यटक या श्रद्धालु न पहुंचते हों। यहां प्रसिद्ध महिषासुर मर्दिनी मंदिर भी है, जिसका अपना अलग इतिहास है।
बिलासपुर-कोरबा मार्ग पर स्थित पाली से इसकी दूरी करीब 25 किमी उत्तर की ओर 3060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। इसे राजा पृथ्वीदेव प्रथम द्वारा बनाया गया था। पुरातत्वविदों ने इसे मजबूत प्राकृतिक किलों में शामिल किया गया है, चूंकि यह चारों ओर से मजबूत प्राकृतिक दीवारों से संरक्षित है केवल कुछ स्थानों पर उच्च दीवारों का निर्माण किया गया है। किले के तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं जो मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार नाम से जाने जाते हैं। महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति, 12 हाथों की मूर्ति, गर्भगृह में स्थापित होती है।
चैतुरगढ़ की पहाड़ी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं और यह रोमांचक एहसास का अनुभव प्रदान करती है। पहाड़ी के ऊपर लगभग पांच वर्ग किमी का एक समतल भाग है। मंदिर परिसर के आसपास पर्यटक व श्रद्धालुओं के बैठने के लिए पैगोड़ा जैसा बनाया गया। इसके अलावा सीमेंट की कुर्सिंयां हैं। पहाड़ चढ़कर जब लोग मंदिर परिसर पर पहुंचते हैं तो उन्हें यह सुविधाएं राहत देती हैं। यही कारण है कि लोग दर्शन के साथ पिकनिक बनाने की सोचकर यहां पहुंचते हैं। भोजन व खाने-पीने की चीजें साथ लेकर परिवार के साथ आते हैं। यहां बैठना और वृहंगम दृश्य आंखों की सुकून देता है।
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धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी है। इसकी खास वजह पक्की सड़क भी है, गाड़ियां बड़े आराम से गेट तक पहुंच जाती है। इसके बाद कुछ दूर पैदल चलना पड़ता है। जब लोग इस दूरी को पैदल लांघते हैं तो उन्हें ट्रैकिंग करने का अहसास होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण लोगों की जुबान पर पहला नाम चैतुरगढ़ का आता है। यहां विकास भी हो रहा है। 10 से 12 साल पहले यदि कोई पहुंचा होगा, वह यहीं के विकास को देखकर हैरान रह जाएगा, जबकि एक समय ऐसा था, जब सड़क की नहीं थी। महिषासुर मर्दिनी मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। नवरात्र के समय यहां विशेष पूजा आयोजित की जाती है।
ढाई किमी दूर है प्रसिद्ध गुफा
पहाड़ी पर एक प्राचीन किला है। किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में हैहयवंशी राजा शंकरदेवा ने किया था। महिषासुर मर्दिनी (दुर्गा) मंदिर से लगभग ढाई किमी दूर चैतुरगढ़ की प्रसिद्ध शंकर गुफा है। इसके आसपास प्राकृतिक झरने हैं जो इस स्थल और मनोरम बनाते हैं। गुफा का मुख काफी चौड़ा है जो आगे जाकर दो भागों में विभक्त हो जाता है। इनमें से एक शिवजी को समर्पित है। इसके कारण ही इसे शंकर गुफा कहते हैं। इसकी लंबाई लगभग 25 मीटर है।
एक विशेषता यह भी
पहाड़ के शीर्ष पर पांच वर्ग मीटर का एक समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब हैं। इनमें से तीन तालाब में हमेशा पानी भरा रहता है।
कैसे पहुंचे चैतुरगढ़
सड़क मार्ग-बिलासपुर से 55 किमी और कोरबा से 50 किमी दूरी पर है। बिलासपुर से कोरबा मार्ग पर पाली पड़ता है। जहां से इसकी दूरी लगभग 25 किमी है। यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
ट्रेन मार्ग-बिलासपुर या कोरबा रेलवे स्टेशन में उतरना होगा। यहां से सड़क मार्ग के जरिए पहुंचना होगा। सीधे ट्रेन सुविधा इस जगह के लिए नहीं है।
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