अंबिकापुर, छत्तीसगढ़ – 2 फ़रवरी 2024 हसदेव अरण्य को बचाने के नाम पर शुरू हुई पदयात्रा आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले एक राजनीतिक हथियार बन के उभर रही है। पर्यावरण के नाम पर आदिवासी समुदाय को भ्रमित करके, आंदोलनजीवी वर्ग राजनीतिक रोटियां सेक कर, अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति कर रहा है। कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहलुओं को छुपा कर और तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
दरअसल आदिवासी समुदाय के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में आरआरवीयूएनएल द्वारा निरंतर कार्य किये जाने से स्थानीय समुदायों का जीवन समृद्धि की अग्रसर हो रहा है। इसके अलावा सरगुजा क्षेत्र की एकमात्र चालू खदान से यहां निवासरत लगभग 5000 आदिवासियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार की प्राप्ति हो रही है और उनके जीवन में विकास की नई धारा बह रही है जिससे ये आधुनिक समाज का सुदृढ़ हिस्सा बनकर आगे बढ़ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि हसदेव अरण्य में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए पुरस्कृत पांच सितारा, परसा ईस्ट कांता बासन (पीईकेबी) खदान के रेकलैम्ड क्षेत्र में अक्टूबर 2023 तक लगभग 1100 एकड़ से ज्यादा भूमि को ‘साल’ के वृक्षों का रीजनरेशन की कठिन प्रक्रिया के साथ अन्य पौधों सहित कुल 11.50 लाख से अधिक का रोपण कर एक नया घना और मिश्रित जंगल तैयार किया है। जिनमें से 4 लाख पौधे तो अब बड़े पेड़ बनकर विकसित भी हो चुके हैं। यह भारत के खनन उद्योग में अब तक का सबसे बड़ा वृक्षारोपण अभियान का दावा है। इसके अलावा ट्रांसप्लांटर मशीन द्वारा नौ हजार से अधिक साल के वृक्षों का सफल प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) भी किया है। साथ ही सघन वन बनाने के लिए मियावाकी तकनीक से 85000 पेड़ लगाए गए हैं। वन विभाग द्वारा भी अपने संभाग में 40 लाख पेड़ों को लगा कर इसे संरक्षित किया जा रहा है। इस प्रक्रिया से अब जंगली पशुओं तथा पक्षीयों की वापसी से इसकी जैवविविधिता भी पुनः स्थापित होने लगी है।
राजनीतिकरण और विरोध के चलते देश के लिए बिजली उत्पादन में पहले से ही काफी नुकसान आयातित महंगे कोयले के कारण बिजली उपभोक्ताओं को चुकाना पड़ रहा है। आरआरवीयूएनएल के सीएमडी श्री आर के शर्मा ने अपनी हाल ही में रायपुर में हुई पत्रकार वार्ता में बताया की “राजस्थान पिछले दो सालों से लगातार कोयले और बिजली की किल्लत से परेशान हो रहा है। आज भी स्थितियाँ बहुत गंभीर हैं, विद्युत उत्पादन प्लांट्स में हमारे पास में कोयले की भारी कमी है, उसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ही यहाँ (छत्तीसगढ़ में) मेरी यह छटवीं या सातवीं विज़िट है।” इससे जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण और वास्तविक तथ्य निम्न लिखित हैं,
पहली बात, सरगुजा स्थित पीईकेबी खदान राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम (आरआरवीयूएनएल) को वर्ष 2007 में कोयला मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल में ताप विद्युत् उत्पादन संयंत्रों हेतु कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सभी अनिवार्य पर्यावरणीय एवं वन स्वीकृतियां के पश्चात आबंटित किया गया था। बाद में भारत सरकार द्वारा राजस्थान के विद्युत उत्पादन निगम को सरगुजा क्षेत्र में दो और खदानों का आवंटन किया गया। पीईकेबी खदान में वर्ष 2013 से उत्पादन चालू हुआ जो पिछले 10 वर्षों से चल रहा है लेकिन विरोध 2024 में हो रहा है। यहां तक की इन स्वीकृतियों को सुप्रीम कोर्ट में भी चेलेंज किया गया और हर बार फैसला खदान के पक्ष में मिला है।
दूसरी बात, राजस्थान सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने में माल और सेवा कर, रॉयल्टी, जिला खनिज निधि, वन कर और मुआवजा उपकर इत्यादि के रूप में सालाना 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है। पीईकेबी खदान द्वारा राज्य सरकार को अभी तक लगभग 7000 करोड़ रूपए का राजस्व विभिन्न करो की अदायगी के रूप में प्रदान किये जा चुका हैं। जो की भविष्य में बाकी की दोनो खदानें शुरू हो जाने से यह राशि दो से तीन गुना और बढ़ जाएगी ।
तीसरी बात, राजस्थान की तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने कई बार अपनी ही पार्टी के समकक्ष छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर इसके निर्बाध संचालन के लिए अनुरोध कर चुकी हैं। लेकिन अब राज्य में सरकारे बदलते ही विरोध के नाम पर राजनीति की जा रही है। वहीं आम आदमी पार्टी भी अपनी मुफ़्त बिजली के वादों दम पर चुनाव जीतती रही है लेकिन चुनाव के नाम पर कोयला खनन का विरोध कर रही हैं तो ये बिना कोयले के बिजली कहाँ से लाएंगे? जबकि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों द्वारा बिजली की मांग पूरा ने होने से आज भी देश की 70% जरूरी ऊर्जा कोयले से ही पूरी की जा रही हैं। इसके अलावा वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन महंगा होने से संप्रेषण का भार सिर्फ उपभोक्ताओं की जेब पर भारी पड़ेगा, जो किसी भी तरह से देश और जनता के हित में नहीं है।
‘हसदेव अरण्य बचाओ’ के मुद्दे का सहारा लेकर हो रही राजनीति लोगों को भ्रमित ही कर रही है, साथ ही वे क्षेत्र के इन आदिवासियों जो की विकास की मुख्य धारा से जुड़कर विकसित भारत के लिए अपना योगदान दे रहे हैं का अहित भी कर रही हैं। इसके बजाय इन्हें ऊर्जा संबंधी नीतियों में सही दिशा में बदलाव के लिए सरकार और जनता के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
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