Rava Idli: पहली बार करीब 100 साल पहले बनाई गई थी रवा इडली, सेकंड वर्ल्ड वॉर से जुड़ा है इसका दिलचस्प इतिहास

अनेकता में एकता का संदेश देता हमारा देश भारत दुनियाभर में अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां का विविधता वर्षों से पूरी दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित करती आई है। यहां हर राज्य की अपनी अलग बोली, पहनावा और खानपान है। भारत हमेशा से ही अपनी पाक कला के लिए पूरे विश्व में जाना जाता रहा है। यहां कई ऐसे पकवान मिलते हैं, जिनका स्वाद चखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।

वैसे तो यहां के हर एक व्यंजन की अपनी अलग खासियत है, लेकिन दक्षिण भारतीय व्यंजन अपने समृद्ध इतिहास के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इसका स्वाद लोगों को इतना पसंद है कि अब यह सिर्फ दक्षिण भारत ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और अन्य देशों में भी बड़े चाव से खाया जाता है। यूं तो साउथ इंडियन खाने में कई सारी डिशेज शामिल रहती है, लेकिन रवा इडली का अपना अलग स्वाद और क्रेज है। यह साउथ में एक लोकप्रिय नाश्ता है, जिसे अब पूरे भारत में बड़े चाव से खाया जाता है।

रवा इडली का इतिहास

हम में से कई लोग रवा इडली खाने के शौकीन होंगे। यह स्वाद से भरपूर होने के साथ ही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस रवा इडली को आप बड़े चाव से खाते हैं, उसकी शुरुआत कैसे हुई। बेहद कम लोग ही यह जानते होंगे कि स्वादिष्ट और हेल्दी रवा इडली का इतिहास वर्ल्ड वॉर 2 से जुड़ा हुआ है। करीब सौ साल पहले बेंगलुरु के प्रतिष्ठित मावल्ली टिफिन रूम में इस लोकप्रिय व्यंजन को बनाया गया था। आइए जानते हैं क्या है इस स्वादिष्ट नाश्ते का दिलचस्प इतिहास-

वर्ल्ड वॉर 2 से जुड़ा इतिहास

सेकंड वर्ल्ड वॉर आधुनिक इतिहास के सबसे भयानक अध्यायों में से एक है। इस युध्द के दौरान अनगिनत लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। लाखों लोग बेघर हो गए, बेरोजगारी चरम पर थी और खाने के लिए लोगोंं का हाल बेहाल हो रखा था। युद्ध के दौरान उस दौर में चावल के बड़े उत्पादक बर्मा पर जापान के आक्रमण के कारण चावल की कमी हो गई और आक्रमण के कारण इसकी कीमतों में भी भारी बढ़ोतरी हो गई। ऐसे में इस, कर्नाटक को भी चावल की भारी कमी का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से चावल की इडली संभव नहीं होने पर, लोगों ने विकल्प तलाशना शुरू कर दिया।

पहली बार कब बनी रवा इडली

चावल की कमी का असर एमटीआर के इडली के उत्पादन पर भी पड़ा। मावल्ली टिफिन रूम, जिसे एमटीआर के नाम से भी जाना जाता है, की स्थापना 1924 में परमपल्ली यज्ञनारायण मैया और उनके भाइयों ने की थी। ऐसे में अपने व्यवसाय को बनाए रखने के लिए एकमात्र तरीका यह था कि कुछ प्रयोग किया जाए और ऐसे में प्रयोग करते हुए उन्होंने इडली के पारंपरिक चावल के घोल को सूजी के घोल से बदल दिया गया और इस रवा इडली का जन्म हुआ।

सेहत के लिए फायदेमंद 

रवा इडली, सामान्य इडली की तरह, फूले हुए और भाप में पकाए हुए केक होते हैं। हालांकि, वे ज्यादा मोटे होते हैं और मेवे, सरसों के बीज और करी पत्ते मिलाने से और भी ज्यादा स्वादिष्ट बन जाते हैं। आप इसे सांभर और मनपसंद चटनी के साथ सर्व कर सकते हैं। साथ ही यह चावल की इडली से भी ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक होता हैं। इसलिए अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो रवा इडली एक बढ़िया विकल्प साबित होगा।