‘भारत’ ब्रांड के तहत खुदरा बिक्री की जाने वाली सरकार द्वारा खरीदी गई चना दाल की हिस्सेदारी बढ़ गई है। उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि भारत ब्रांडके चना दाल की बिक्री में तेजी आई है। भारत ब्रांड 4 महीने पहले लॉन्च हुआ था। अभी बाजार में इसकी हिस्सेदारी 1/4 हो गई है। अब भारत ब्रांड रेलू उपभोक्ताओं के बीच सबसे अधिक बिकने वाला ब्रांड बनकर उभरा है। रोहित कहते हैं कि अक्टूबर 2023 में लॉन्च की गई भारत-ब्रांडेड ‘चना दाल’ को बढ़त हासिल है। इसकी वजह है कि इसकी कीमत अन्य ब्रांडों के लगभग 80 रुपये प्रति किलोग्राम की तुलना में 60 रुपये प्रति किलोग्राम कम है।
सिंह ने पीटीआई एजेंसी को बताया कि लोगों द्वारा अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। देश में परिवारों के बीच चना दाल (सभी ब्रांड शामिल) की 1.8 लाख टन मासिक खपत में से एक-चौथाई ‘भारत’ ब्रांड चना दाल है। अक्टूबर 2023 से लगभग 2.28 लाख टन भारत ब्रांड चना दाल बेची गई है। इसकी मासिक औसत बिक्री लगभग 45,000 टन थी।
यहां मिल रही है भारत ब्रांड की दाल
भारत ब्रांड दाल की शुरुआत में बिक्री 100 खुदरा केंद्रों के माध्यम से शुरू हुई। अब इसकी बिक्री 21 राज्यों के 139 शहरों को कवर करते हुए 13,000 तक पहुंच गई है। अब यह मोबाइल और फिक्स्ड खुदरा स्टोर दोनों में मिल रहा है। इस ब्रांड ने दालों की महंगाई को कम करने में मदद मिली है। चने की कीमतों को नीचे लाने के लिए बफर स्टॉक का उपयोग करने से अन्य दालों की कीमतों पर भी इसका असर पड़ा है।
सरकार घरेलू उपलब्धता को बढ़ावा देने और कीमतों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से पिछले कुछ वर्षों से चना सहित कई प्रकार की दालों का बफर स्टॉक बनाए रख रही है। यह पहली बार है, सरकार नेफेड, एनसीसीएफ, केंद्रीय भंडार और पांच राज्य सहकारी समितियों के माध्यम से भारत ब्रांड के तहत चना दाल की खुदरा बिक्री कर रही है।
इन एजेंसियों को बफर स्टॉक से कच्चा चना 47.83 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर इस शर्त के साथ दिया जा रहा है कि उन्हें खुदरा कीमत 60 रुपये प्रति किलोग्राम से कम नहीं होनी चाहिए। एजेंसियां सरकार से कच्चा चना खरीदती हैं, उसकी मिलिंग करती हैं और भारत ब्रांड के तहत खुदरा बिक्री करने से पहले उसे पॉलिश करती हैं। वर्तमान में 15 लाख टन चना सरकारी बफर स्टॉक में है।
चना दाल के अलावा, सरकार भारत ब्रांड के तहत भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) का गेहूं का आटा भी बेच रही है। इसके अलावा सरकार एफसीआई चावल की बिक्री पर भी विचार कर रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में देश में दालों का घरेलू उत्पादन बढ़ा है, लेकिन अभी भी इसकी खपत कम है और इस अंतर को पूरा करने के लिए यह आयात पर निर्भर है। देश अकेले चना और मूंग में आत्मनिर्भर है और कमी को पूरा करने के लिए अन्य प्रकार की दालों का आयात किया जाता है।
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