भोरमदेव अभ्यारण का इकोसेंसेटिव जोन होगा संरक्षित, कोई गांव नहीं होगा विस्थापित

कवर्धा ,05 जनवरी । जिले के भोरमदेव अभ्यारण की सीमाओं के दस किलोमीटर के भीतर आने वाले भूमि को इकोसेंसिटिव जोन अर्थात पारिस्थितिकीय सेवदनशील क्षेत्र के रूप में संरक्षित किया जाएगा। इकोसेंसिटिव जोन का उदे्श्य केवल पर्यावरण वन्य प्राणी एवं जैव विविधता के लिए गतिविधियों को विनियमित करना है। 9 अक्टूबर 2023 को भारत के राजपत्र क्र. 4210 से भोरमदेव अभ्यारण्य के लिए भी सीमा से लगे क्षेत्रों को ईएसजेड की घोषित करने के लिए प्रारूप अधिसूचना जारी किया गया हैं जिसका विस्तार 0 से लेकर 8.3 कि.मी. तक है। जनसाधारण को प्रकाशन की तिथि से 60 दिवस की अवधि आपत्ति या सुझाव के लिए दी गई है। ईएसजेड क्षेत्र के अन्दर आने वाली भूमि पर ग्रामीणों द्वारा वर्तमान में की जा रही गतिविधियों पर किसी प्रकार का प्रभाव इस अधिसूचना से नही पड़ने जा रहा है। ईएसजेड का उद्देश्य केवल पर्यावरण वन्यप्राणी एवं जैवविविधता के संरक्षण के लिए गतिविधियों को विनियमित करना है, जिससे कि अभ्यारण्य के जैवविविधिता का संरक्षण एवं संवर्धन अबाध गति से होती रहे।

सुप्रीमकोर्ट एवं एमओईएफसीसी के निर्देशों का पालन करते हुए ईएसजेड के लिए प्रस्ताव तैयार कर भारत सरकार को प्रेषित किया गया था। भारत सरकार द्वारा प्रारूप अधिसूचना 09 अक्टूबर 2023 को प्रकाशित किया गया। उक्त अधिसूचना में 24 ग्रामों को ईएसजेड के अंतर्गत लिया गया है। जिससे जनसाधारण में यह भ्रांति फैल गई कि भोरमदेव अभ्यारण्य को टायगर रिजर्व घोषित करने के लिए इस प्रकार की अधिसूचना जारी की गई है। यह भ्रांति पूर्णतः असत्य है। भोरमदेव अभ्यारण्य को टायगर रिजर्व बनाने के लिए वन विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किसी भी प्रकार का प्रस्ताव वर्तमान में भेजा नही गया है और न ही प्रस्ताव तैयार करने की कोई योजना है। इसी प्रकार ईएसजेड की अधिसूचना में किसी भी ग्राम को विस्थापित करने का कोई प्रावधान नही है और न ही यह टायगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया है।

वनमंडलाअधिकारी चूड़ामणि सिंह ने बताया कि पारिस्थितिकी संवेदी जोन (ईएसजेड) से तात्पर्य यह है कि पर्यावरण एवं जैव विविधता की सुरक्षा के लिए एक ऐसा क्षेत्र जहां विभिन्न गतिविधियों के प्रतिषिद्ध या विनियमित (रेगूलेटड) किया जा सके। जैसे कि वाणिज्यिक खनन, प्रदूषण उत्पन्न करने वाले उद्योग, ईंट भट्टों की स्थापना, आरामिल स्थापना, ठोस अपशिष्ट निपटान स्थल आदि गतिविधि प्रतिषिद्ध है। रिसार्ट की स्थापना, संनिर्माण आदि गतिविधि विनियमित रहेगी जबकि वर्षा जलसंचय कौशल विकास, जैविक खेती आदि गतिविधि की अनुमति रहती है। ईएसजेड क्षेत्र में केवल गतिविधियों को विनियमित किया जाता है ईएसजेड घोषित होने पर अभ्यारण्य के सीमाओं में कोई भी परिवर्तन नही होता है।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) का राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) में निर्धारित किया गया है, कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत राज्य सरकारो को राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यजीव अभ्यारण्य की सीमाओं के 10 किलोमीटर के भीतर आने वाली भूमि को इकोसेंसेटिव जोन या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेर्ड) घोषित किया जाए।

वनमंडलाअधिकारी ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अपने विभिन्न निर्णयों आई.ए.नं. 1000 ऑफ 2003, आई.ए.नं. 1512 ऑफ 2006, आई.ए.नं. 1992 ऑफ 2007 आदि में एमओईएफसीसी के निर्देशों का समर्थन किया है एवं समस्त राज्यों को निर्देशित किया कि सभी राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यप्राणी अभ्यारण्य की सीमाओं से लगे क्षेत्र को ईएसजेड के रूप में नोटिफाईड करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर प्रेषित करें। माननीय सुप्रीमकोर्ट द्वारा वन, वन्यप्राणी एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए अभ्यारण्य की सीमा से लगे 10 किलोमीटर तक के क्षेत्र को ईएसजेड बनाने के लिए निर्देशित किया गया है। राज्य अपने क्षेत्र की उपयुक्तता के आधार पर ईएसजेड की सीमा को 10 किलोमीटर से बढ़ा या घटा सकते है।

भोरमदेव अभ्यारण्य वर्ष 2001 में अधिसूचित हुआ एवं वर्ष 2007 में इसका विस्तार किया गया। इसका नामकरण छत्तीसगढ़ पुरात्तविक, धार्मिक एवं पर्यटन महत्व के ऐतिहासिक महत्व के स्थल भोरमदेव मंदिर के नाम पर किया गया है। अभ्यारण्य क्षेत्र का विस्तार 352 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में है। इसका कोर क्षेत्र 160 वर्ग कि.मी. एवं बफर क्षेत्र 192 कि.मी. है। भोरमदेव अभ्यारण्य क्षेत्र में कुल 29 गांव बसे हुए है। भोरमदेव अभ्यारण्य में मुख्य रूप से तेन्दुआ, भालू, लकड़बग्घा, नीलगाय, जंगली कुत्ता, गौर, भेड़िया, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, चीतल, कोटरी, सांभर, लंगूर, नेवला, खरगोश, मोर, जंगली मुर्गा, उल्लू आदि विविध प्रकार के वन्यप्राणी मौजूद है। भोरमदेव अभ्यारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान एवं अचानकमार टायगर रिजर्व के बीच एक वन्यप्राणी गलियारा के रूप में स्थित है। वन्यप्राणी कान्हा से अचानकमार तक भोरमदेव अभ्यारण्य से होते हुए विचरण करते है।