Bollywood News: ‘जिम्मेदारी लेना, आत्मनिर्भर होना मेरे लिए अब जरूरी है’, अनन्या पांडे ने खोले अपने दिल के राज

फिल्म इंडस्ट्री में महज चार साल पुरानी अभिनेत्री अनन्या पांडे अपनी पहचान स्थापित कर चुकी हैं। इसके साथ ही वह अब अपनी जिम्मेदारियां भी खुद उठाने लगी हैं। अपने माता-पिता और बहन के साथ रह रहीं अनन्या ने इस साल मुंबई में अपना खुद का एक घर भी खरीद लिया है। 26 दिसंबर को उनकी फिल्म ‘खो गए हम कहां’नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।

1.आप हमेशा कहती आई हैं कि आप अपने माता-पिता पर बहुत निर्भर हैं। ऐसे में खुद का घर लेने का ख्याल कैसे आया?

– यह घर मेरे लिए बहुत अहम है, क्योंकि जिम्मेदारी लेना, आत्मनिर्भर होना मेरे लिए अब जरूरी है। यह बात सच है कि मैं अपने माता-पिता पर बहुत निर्भर हूं। मैं लकी हूं कि मुझे अपने माता-पिता के साथ रहने का अवसर मिला है। वह मुझे इतना कुछ दे चुके है, ऐसे में अब मुझे अपने पैरों पर खड़े होना है। मैं इस बात को लेकर जागरूक हूं कि मेरे पास विशेषाधिकार है। मैं उस बुलबुले में भी रही हूं, अपने उसी घर में अपने पापा (चंकी पांडे) का भी स्टारडम देखा है। मेरे लिए घर उठाने का कदम उठाना जरूरी रहा, ताकि मैं कुछ सीख सकूं। मैंने अब अहसास किया है कि मेरा व्यक्तित्व वास्तव में कैसा है। क्या पसंद है, क्या नहीं। मेरे लिए यह सफर सिखाने वाला होगा। अभी तो शुरुआत है, देखते हैं आगे क्या होता है। पता चला कि मैं फिर से अपने माता-पिता के साथ ही रहने चली आई। सच कहूं, तो लोगों को कुछ साबित करने से ज्यादा मुझे खुद के लिए साबित करना है कि मेरे लिए अब जीवन में क्या अहम है।

2.आपने जब अपनी मां से कहा कि आप अपना आशियाना खुद बनाना चाहती हैं, तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?

-हमेशा की तरह मेरी मां बहुत ड्रमैटिक हुईं कि तुम घर तोड़ना चाह रही हो। मैंने उनसे कहां कि एक ही बिल्डिंग में तीन फ्लोर ऊपर जाकर रहने वाली हूं। कोई घर नहीं तोड़ रहा है। समय के साथ माता-पिता भी समझ गए हैं और खुश हैं कि मैं अपनी नई जिम्मेदारियां उठाना चाहती हूं। उन्हें मुझ पर गर्व रहा है, तब से जब से मैं स्कूल के वार्षिक समारोह में भाग लिया करती थी।

3.आपने पिछले दिनों कहा था कि आप अब भावनात्मक तौर पर काफी परिपक्व हो गई हैं। क्या वाकई ऐसा है?

-हां, मैंने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि मैंने बहुत कम उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। मेरे आसपास जो दोस्त थे, उनके साथ मैं बहुत ज्यादा जुड़ नहीं पा रही थी। वह सब कालेज में थे। सबके शौक अलग थे, जो वह कर रहे थे, वह चीजें मेरी चीजों से बहुत अलग थी। कई चीजें थीं, जो मुझसे छूट गई थीं। उसकी वजह से मुझे लगा कि मैं अपने आसपास के दोस्तों से जल्दी बड़ी हो गई। सच कहूं, तो कई दिन ऐसे होते हैं, जब मुझे लगता है कि मैं बहुत मेच्योर हूं, सब कुछ संभाल सकती हूं। वहीं कई बार ऐसा लगता है कि मैं कुछ संभाल नहीं पाऊंगी। सेट पर होने के कारण, आसपास जब बहुत सारे लोग मौजूद रहते हैं, तो उनसे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है। शायद भावनात्मक परिपक्वता लोगों से मिलजुल कर आई है। उनके अनुभवों से सीखना, जो सेट के अनुभव रहे हैं, उसने परिपक्व बनाने में योगदान दिया है।

4. आप कमर्शियल फिल्मों की रेस में बहुत ज्यादा नहीं नजर आ रही हैं…

-मुझे लगता है कि कलाकार अपनी पहली फिल्म खुद नहीं चुनते हैं। फिल्में कलाकारों को चुनती है। उसके बाद आपकी अपनी पसंद बहुत मायने रखती है। मैं वह फिल्में करना चाहती हूं, जो खुद एक दर्शक की तरह देख पाऊं। गहराइयां फिल्म के बाद अभिनय के क्षेत्र में मेरे लिए बहुत कुछ बदल गया है। पहले मैं अभिनय के बारे में नहीं सोचती थी। मुझे सिर्फ हीरोइन बनना था। नाचना-गाना था, खुद को बड़े पर्दे पर देखना था। लेकिन जो गहराइयां फिल्म को बनाने की प्रक्रिया रही, उसमें मुझे अभिनय से प्यार हो गया। इस पेशे की बारीकियां और जो मैथेड होता है, वह उसी फिल्म के बाद मेरे भीतर विकसित हुआ। मुझे कमर्शियल फिल्में भी करनी है, क्योंकि मैं उस तरह की फिल्में देखते हुए ही बड़ी हुई हूं। वहीं ऐसी फिल्में भी करनी हैं, जिससे कुछ सीखने को मिले। ऐसी कहानियां, जिसमें मैं भारत की वास्तविक महिलाओं की झलक को प्रस्तुत कर पाऊं। मुझे खुद को अब सीमित नहीं करना है।

5.खो गए हम कहां फिल्म सोशल मीडिया को लेकर जरूरी बातें कहती है। क्या यह जरूरी है कि जिन कहानियों का आप हिस्सा बन रही हैं, उसमें कुछ सिखाने वाली बात हो?

-मैं यह सोचती हूं कि उस कहानी और उसके पात्र से क्या सीख सकती हूं। खो गए हम कहां फिल्म की कहानी मुझे, मेरी छोटी बहन और मां तीनों को पसंद आई। हम तीनों इस कहानी से जुड़ पाए। फिर मुझे लगा कि यह केवल हमारी उम्र की ही कहानी नहीं है। इससे हर वह शख्स जुड़ेगा, जो सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं। मेरी चुनी कहानियां का प्रभाव लोगों पर कैसा पड़ेगा, मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचती हूं। अगर कुछ अच्छा मिल जाए तो ठीक है। नहीं तो दूसरों पर ज्ञान थोपना मुझे पसंद नहीं है। अच्छा तब लगता है, जब लोगों को खुद इस बात का अहसास हो कि फिल्म देखने के बाद वह अपनी जिंदगी में क्या बदलाव लाना चाहते हैं। हम इसमें यह नहीं दिखा रहे हैं कि सोशल मीडिया बुरा है। यह इसके बारे में है कि लोग आसपास के अपने रिश्तों में कैसे रह सकते हैं, उससे क्या सीख सकते हैं।

6. स्टारडम के बाद क्या काम आसानी से मिलता है?

-काम देखने के बाद ही च्वाइसेस मिलती हैं। आपकी पहली फिल्म के बाद एक लेवल सेट हो जाता है, जिसके बाद दर्शक और निर्देशक ही तय करते हैं। आखिरकार यह एक बिजनेस है, लोगों को इसमें पैसे लगाने होते हैं। वह उसी पर पैसे लगाएंगे, जिस पर उन्हें भरोसा हो कि वह कर पाएंगे। हर फिल्म के साथ मेरी पसंद बदल रही हैं। हर फिल्म के बाद जो मुझे आफर हो रहा है, वह बहुत अलग है। गहराइयां के बाद ज्यादा मेच्योर पात्र के आफर आ रहे हैं। लोगों को लगा कि मैं ऐसी भूमिकाए निभा सकती हूं। इसके बाद जो विक्रमादित्य मोटवाणी सर के साथ फिल्म कर रही हूं। उन्होंने गहराइयां फिल्म देखकर उनकी फिल्म का आफर दिया था। हर फिल्म के साथ च्वाइसेस बदल रही हैं, बेहतर हो रही हैं, ज्यादा वेराइटी भी आ गई है।