समझौता लागू करने योग्य नहीं, पक्षकारों को भी नहीं मिल सकता कोई अधिकार : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दो पक्ष के बीच किए गए करार कानूनी रूप से वैध नहीं है तो समझौता लागू करने योग्य नहीं रह जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में पक्षकारों को भी कोई अधिकार प्रदान नहीं किया जा सकता है। उपरोक्त निर्णय से यह स्पष्ट है कि ऐसी प्रार्थना पर विचार नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यह विशेष लागू करने योग्य नहीं है।

डिवीजन बेंच ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा है कि अपील में कोई तथ्य नहीं मिला। निचली अदालत का आदेश न्यायसंगत और उचित है। इसमें इस न्यायालय के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। मालूम हो कि डिवीजन बेंच का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है। षष्ठम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश दुर्ग द्वारा 31 जुलाई 2023 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए एसपी बिल्डकान प्राइवेट लिमिटेड ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

निचली अदालत ने संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत शक्ति का प्रयोग किया गया था। सिविल प्रक्रिया 1908 के तहत कार्रवाई के कारण के अभाव में मुकदमा खारिज कर दिया था। ग्राम कुम्हारी, तहसील धमधा, जिला दुर्ग में 15 एकड़ भूमि नवनीत गुप्ता अपने माता-पिता चंद्र गुप्ता और नीलम गुप्ता, जिन्हें प्रतिवादी नंबर एक और दो के रूप में रखा गया है ने याचिकाकर्ता के साथ एक समझौता किया। याचिका के अनुसार नवनीत गुप्ता ने कंपनी के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि प्रतिवादी 15 एकड़ भूमि के मालिक हैं और उनकी सद्भावना के बारे में सुनकर वे उक्त भूमि को एक संयुक्त उद्यम समझौते के माध्यम से प्लाट पर विकसित करना चाहते हैं।

उद्यान, पार्किंग, मंदिर, आदि। इसमें 15.08 एकड़ भूमि को संयुक्त उद्यम समझौते के तहत आगे बढ़ाकर विकसित करने पर सहमति बनी। वादपत्र के अनुसार 23 अक्टूबर 2022 को भूमि का कब्जा याचिकाकर्ता कंपनी को सौंप दिया गया और उसके बाद याचिकाकर्ता ने उक्त भूमि के विकास के लिए अपना काम शुरू कर दिया। 51 लाख की राशि नवनीत गुप्ता के खाते में स्थानांतरित की गई थी।

याचिका के अनुसार, प्रतिवादी संयुक्त उद्यम समझौते में प्रवेश करने के लिए बाध्य थे और साझेदारी फर्म बनाने के लिए भूमि हस्तांतरित करने के लिए भी बाध्य थे। साझेदारी के अनुसार याचिकाकर्ता के कंपनी की हिस्सेदारी 45.5 फीसद होगी और प्रतिवादी की हिस्सेदारी 54.5 प्रतिशत होगी। संयुक्त उद्यम समझौते का मुख्य उद्देश्य था जिसके तहत प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के माध्यम से भूमि विकसित करना सुनिश्चित किया गया था। भूमि की जांच के बाद भूमि के संबंध में कुछ विसंगतियां पाई गईं, इसलिए, प्रतिवादी नंबर तीन को स्वामित्व में ऐसे दोष को ठीक करने के लिए कहा गया था और दो दिसंबर 2022 और आगे नोटिस दिया गया था। दिसंबर 2022 में स्मरण पत्र भी भेजा गया था।

जवाब देने के बजाय, समझौता रद करने दिया नोटिस

चंद्रगुप्ता और नवनीत गुप्ता ने ऐसे नोटिस का जवाब दिए बिना उन्हें नौ फरवरी 2023 को एक नोटिस दिया, जिससे अनुबंध रद कर दिया गया। उसने प्रतिवादियों को 51 लाख की राशि का भुगतान किया है और इस तरह प्रतिवादी साझेदारी फर्म में प्रवेश करने के लिए बाध्य थे, जिसे शुरू किया गया होता और समझौते के समय पांच करोड़ का भुगतान किया जाना था, लेकिन वही निष्पादित नहीं किया गया. इसलिए, पांच करोड़ 51लाख रुपये मूल्य के अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुकदमा दायर किया गया था।

ये था समझौता नियम में

समझौते का हवाला देते हुए वकील का कहना था कि समझौते के निष्पादन के बाद 45 दिनों की अवधि के भीतर दूसरा पक्ष स्वामित्व का सत्यापन कराएगा और यदि ऐसा कोई दोष पाया जाता है तो दूसरा पक्ष यानी कंपनी अनुबंध से बाहर हो सकती है। उनका कहना था कि अनुबंध की धारा 7 एवं 8 के अनुसार पांच करोड़ का भुगतान केवल इस शर्त पर निर्भर करता है कि भूमि बिना किसी दोष के पाई जाए।

नियमों का हवाला देते हुए कहा कि स्टाम्प अधिनियम की धारा 35 में प्रविधान है कि जिन दस्तावेजों पर विधिवत मुहर नहीं लगाई गई है, वे साक्ष्य में अस्वीकार्य हैं और उन पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। अधिनियम की धारा 35 मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में प्रासंगिक होगी जिसे यहां बताया गया है।

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