कोरबा,24 नवंबर । साऊथ ईस्टर्न कोलफिल़्डस लिमिटेड (एसईसीएल) के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) डा प्रेम सागर मिश्रा की विवादित कार्यशैली की वजह से मेगा प्रोजेक्ट के भू-विस्थापित बेहद नाराज हैं। कोल इंडिया के चेयरमैन के गेवरा आगमन पर भू-विस्थापितों के घेराव करने की आशंका से ग्रसित सीएमडी ने शस्त्र बल के जवानों की छावनी तैयार की गई थी। भू-विस्थापितों की शोषण की पोल खुले न इसलिए उन्हें चेयरमैन के आसपास फटकने नहीं दिया गया।
कोल इंडिया के चेयरमैन पीएम प्रसाद व वन महानिदेशक चंद्र प्रकाश गोयल गुरूवार को एसईसीएल की गेवरा, कुसमुंडा व दीपका खदान के दौरे पर रहे। हेलीकाप्टर से सुबह 10 बजे गेवरा स्थित हेलीपेड पर अधिकारी उतरे और वहां से सीधे गेवरा हाऊस पहुंचे। यहां एसईसीएल के अधिकारियों के साथ चर्चा किए और खदानों का निरीक्षण करने रवाना हो गए। चेयरमैन व वन महानिदेशक के प्रवास को लेकर स्थानीय स्तर पर व्यापक तैयारियां की गई थी और भू-विस्थापितों के विरोध को देखते हुए काफी संख्या में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) के जवानों को जगह- जगह तैनात किया गया था। ताकि कोई भी चेयरमैन व वन महानिदेशक के समीप पहुंच न सके। दरअसल नौकरी, रोजगार, मुआवजा समेत अन्य समस्या को लेकर पिछले दो साल से भू- विस्थापितों के विभिन्न संगठन आंदोलन कर रहे हैं।
खदान बंदी, आर्थिक नाकेबंदी कर लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। बावजूद इसके भू-विस्थापितों की समस्या का निदान एसईसीएल प्रबंधन नहीं कर रही। भू-विस्थापित नौकरी पाने भटक रहे हैं। अकेले दीपका खदान की बात करें तो तीन गांव सुआभोड़ी, मलगांव व रेंकी के 614 भू-विस्थापितों में अब तक 384 को मुआवजा नहीं मिला है। कुसमुंडा व गेवरा की बात की जाए, तो लगभग दो हजार भू-विस्थापित अपनी समस्याओं को लेकर आक्रोशित हैं। प्रबंधन केवल आश्वासन का झुनझुना थमा समस्या निदान करने में कोताही बरत रही। शीर्ष स्तर के अधिकारियों के साथ बैठक कराने का आश्वासन स्थानीय अधिकारी देते हैं, पर सीएमडी भू-विस्थापितों के साथ चर्चा करने के लिए तैयार नहीं हैं।
प्रबंधन की लापरवाही से 5.39 करोड़ का नुकसान
एसईसीएल कुसमुंडा महाप्रबंधक ने न्यायालय में लगातार चल रहे आंदोलन पर रोक लगाए जाने की याचिका दायर की है। इसमें यह बात स्वीकार किया गया है कि 11- 12 सितंबर को छत्तीसगढ़ किसान सभा के दो दिवसीय आर्थिक आर्थिक नाकेबंदी से एसईसीएल को 5.39 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है। सवाल यह उठता है कि जिन मसलों को आपसी चर्चा से निपटाया जा सकता है, उसे आखिर न्यायालय में ले जाने की नौबत क्यों आई। अधिकारियों व आंदोलनकारी भू-विस्थापितों के बीच बढ़ते फासले से अंतत: नुकसान कंपनी को ही उठाना पड़ेगा।
लापरवाही की वजह से 25 गांव में विवाद की स्थिति
कोरबा के भू-विस्थापितों में बेहद असंतोष है। खदानों में आए दिन होने वाले हड़ताल से उत्पादन व डिस्पैच पर भी प्रभाव पड़ रहा है। गेवरा समेत तीनों मेगा प्रोजेक्टों का विस्तार किया जाना है. इसके लिए भिलाईबाजार, रलिया, मुड़ियानार, पाली (कुसमुंडा), नरईबोध, पड़निया, वनभाठा, मनगांव, भठोरा, बाम्हनपाठ समेत 25 गांव की अधिग्रहित भूमि पर कब्जा लिया जाना है, पर एसईसीएल के कुप्रबंधन की वजह से लगभग सभी गांव में विवाद की स्थिति बनी हुई है। मामलों को संवेदनशीलता से नहीं निपटाया गया तो कोयला उत्पादन पर असर पड़ेगा।
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