मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल

मुख्य सूचना आयुक्त का पद एक महीने से खाली पड़ा हुआ था. सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हीरालाल समारिया को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई, लेकिन इसके बाद चौधरी ने मुर्मू को एक चिट्ठी लिखकर इस नियुक्ति का कड़ा विरोध किया.

चौधरी का आरोप है कि नियुक्ति के बारे में उन्हें “पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया”. उनकी शिकायत है कि सरकार ने ना उनसे सलाह ली और ना ही नियुक्ति के बारे में जानकारी दी.

कैसे होती है नियुक्ति

सूचना का अधिकार कानून, 2005 के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त और सभी सूचना आयुक्तों को राष्ट्रपति नियुक्त करती हैं. लेकिन यह नियुक्ति एक समिति की अनुशंसा पर आधारित होती है.।इस समिति का नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं और इसमें एक केंद्रीय मंत्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता भी होते हैं.

कांग्रेस इस समय लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और चौधरी सदन में पार्टी के नेता. लिहाजा उन्हें इस समिति में होना चाहिए था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने राष्ट्रपति को लिखा है कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में उनके कार्यालय से समिति की बैठक के लिए उनकी उपलब्धता जाननी चाही थी.

चौधरी के दफ्तर ने विभाग को जानकारी दी थी कि वह दो नवंबर तक दिल्ली में रहेंगे, लेकिन समिति ने उन्हें बस यह जानकारी दे दी की समिति की बैठक तीन नवंबर को होगी. उसके बाद उन्होंने विभाग से अनुरोध किया कि बैठक की तारीख बदल दी जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सरकार ने बिना उन्हें कोई जानकारी दिए समारिया को नियुक्त कर दिया.

सिमटता सूचना आयोग

समारिया सेवानिवृत्त आईएस अधिकारी हैं. सरकार में अपने कार्यकाल के दौरान वह श्रम और रोजगार सचिव रह चुके हैं. उन्हें 2020 में सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया था.

सोमवार को उन्हें शपथ दिलाए जाने की वजह से आयोग एक तरह से मृत होने से बाल बाल बचा. उनके पूर्ववर्ती मुख्य आयुक्त वाई के सिंहा का कार्यकाल पूरा हुए एक महीना बीत चुका है. यानी एक महीने से आयोग बिना प्रमुख के काम कर रहा था.

उसके ऊपर से तीनों सूचना आयुक्तों का कार्यकाल भी मंगलवार को खत्म होने वाला है. यानी अगर समारिया को आखिरी समय में नियुक्त नहीं किया जाता तो आयोग पूरी तरह से खाली हो जाता. समारिया ने अपनी नियक्ति के बाद दो सूचना आयुक्तों को भी शपथ दिलाई.

अधीर रंजन चौधरी के साथ इससे मिलती जुलती घटना पहले भी घटी है. 2020 में भी आयोग में नियुक्तियों के समय चौधरी ने अनियमितताओं का आरोप लगाया था. उनका कहना था कि सरकार ने नियुक्ति की प्रक्रिया के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया था. उनका आरोप था कि नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं बरती गई थी और ना शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम प्रकाशित किए गए थे, ना उन्हें चुनने के मानदंड.

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