हाईकोर्ट का फैसला : सहमति संबंध में शादी न होने पर पुरुष क्रूरता के लिए दोषी नहीं, 20 साल पहले सुनाई गई सजा रद्द

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि यदि सिर्फ सहमति संबंध हो और शादी नहीं हुई हो तो आईपीसी की धारा 498ए के तहत किसी पुरुष या उसके रिश्तेदारों को किसी महिला के प्रति क्रूरता के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

आईपीसी की धारा 498ए किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार के लिए सजा का प्रावधान करती है जो उसके साथ क्रूरता करता है। जस्टिस सोफी थॉमस ने 20 साल पहले आईपीसी की धारा 498ए और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत अपराध के लिए एक व्यक्ति और उसके भाई की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया। उन्हें तब दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई जब उस व्यक्ति की लिवइन पार्टनर ने 1997 में आत्महत्या कर ली थी।

धारा 498ए के तहत दोषी ठहराना गलती


हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल और अपीलीय अदालतों ने पुनरीक्षण याचिकाकर्ताओं (आदमी और उसके परिवार) को धारा 498ए के तहत दोषी ठहराने और उन्हें अपराध के लिए सजा देने में गलती की।

मौजूदा मामले में जोड़े के बीच विवाह नहीं हुआ था और उन्होंने विवाह समझौते के आधार पर एक साथ रहना शुरू कर दिया था, जिसकी कानून की नजर में कोई कानूनी पवित्रता नहीं है। उन्हें सहमति संबंध में रहने वालों की तरह ही देखा जाना चाहिए। वे पति-पत्नी नहीं थे।