बिलासपुर में युवक की मौत के मामले में पुलिस ने पहली बार अपोलो अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। मेडिको लीगल संस्थान की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई है। मामला सरकंडा थाना क्षेत्र का है। दरअसल, 7 साल पहले अपोलो अस्पताल में इलाज के दौरान गोल्डी छाबड़ा की मौत हो गई थी।
परिजन ने अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया था। जबकि अस्पताल प्रबंधन ने अपनी रिपोर्ट में जहर खाने से मौत होना बताया था। पुलिस की जांच से असंतुष्ट परिजन की याचिका पर हाईकोर्ट ने नए सिरे से जांच और मेडिको लीगल संस्थानी से राय लेने का आदेश दिया था। जिसके बाद पुलिस ने दोबारा जांच कराई।
गोल्डी छाबड़ा की मौत के बाद परिजन ने अपोलो अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही के आरोप लगाए थे।
क्या है पूरा मामला
जानकारी के मुताबिक सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र के दयालबंद के आदर्श कॉलोनी निवासी गोल्डी उर्फ गुरवीन छाबड़ा (29 वर्ष) को 25 दिसंबर 2016 को पेट में दर्द हुआ। जिस पर परिजन इलाज के लिए उसे अपोलो अस्पताल ले गए।
दूसरे दिन 26 दिसंबर को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से मौत के आरोप लगाए और सिटी कोतवाली पुलिस से शिकायत की। लेकिन पुलिस ने जांच के बाद कोई कार्रवाई नहीं की।
परिजन ने HC में लगाई याचिका
पुलिस की जांच के बाद परिजन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई। अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की। इस केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस अफसरों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।
HC के नए सिरे से जांच के आदेश
बिलासपुर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान पुलिस ने बताया कि अपोलो अस्पताल प्रबंधन ने अपनी रिपोर्ट में सल्फास पॉइजनिंग केस बताया। जिस पर सिम्स के डॉक्टर ने शव का पोस्टमॉर्टम किया। लेकिन पीएम रिपोर्ट में मौत के कारणों का स्पष्ट जिक्र नहीं किया गया और बिसरा प्रिजर्व किया गया था।
इस पर बिसरा परीक्षण के लिए राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर भेजा गया था। परीक्षण रिपोर्ट में जहर नहीं होने की बात सामने आई। सभी पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने 2019 में पुलिस को नए सिरे से जांच करने और मेडिकोलीगल संस्थान से राय लेकर कार्रवाई करने का आदेश दिया था।
मेडिकोलीगल संस्थान ने मानी लापरवाही, केस दर्ज
हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने नए सिरे से जांच की। जिसमें संभागीय मेडिकल बोर्ड से केस की हिस्ट्री के साथ रिपोर्ट मांगी गई। मेडिकल बोर्ड ने 2 फरवरी 2023 को पांच बिंदुओं पर जांच रिपोर्ट सौंपी। इसमें अपोलो अस्पताल के रिकॉर्ड में अज्ञात सबस्टेंस पॉइजनिंग का जिक्र था लेकिन इलाज के रिकॉर्ड में पाया गया कि इसे पॉइजनिंग केस की तरह हैंडल नहीं किया गया है।
मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के साथ ही पुलिस ने मेडिको लीगल संस्थान से राय ली। इस पर 27 सितंबर 2023 को मेडिको लीगल संस्थान ने अपनी राय में इलाज में लापरवाही बरतने की बात कही। इसके आधार पर पुलिस ने अपोलो अस्पताल प्रबंधन और संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज किया है। मामले की जांच तो कोतवाली पुलिस ने की लेकिन मामला सरकंडा थाना क्षेत्र का है लिहाजा केस वहां दर्ज किया गया है।
अस्पताल प्रबंधन ने इस तरह बरती लापरवाही
- अस्पताल में मरीज को भर्ती करते समय डॉक्टर को संदिग्ध सल्फास खाने की जानकारी मिली, तब मेडिकोलीगल केस बनाकर थाने के साथ ही एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को सूचना देने में लापरवाही बरती गई।
- डॉक्टरों की टीम ने मरीज को उल्टी राइस ट्यूब एस्पिरेंट्स (Gastric Lavage) नहीं किया। ब्लड सैंपल और यूरिन की जांच कर रासायनिक परीक्षण के लिए भेजने में लापरवाही बरती गई। जिससे केस के साक्ष्य नष्ट हो गए और जांच रिपोर्ट से इलाज में होने वाली सुविधा से मरीज को वंचित होना पड़ा।
- डॉक्टरों ने जांच को लेकर भी लापरवाही बरती। कोरोनरी एंजियोग्राफी और अपर जीआई एंडोस्कोपी जैसे परीक्षण भी नहीं कराए, जो इलाज में मददगार हो सकते थे।
- डॉक्टरों ने मरीज की मौत से पहले बयान नहीं कराया, जो जरूरी था। इस तरह के केस में न्यायिक जांच में ये उपयोगी साबित हो सकता है। इसमें भी डॉक्टरों ने लापरवाही बरती।
- पोस्टमॉर्टम के दौरान डॉक्टरों ने मृतक के टिश्यू का परीक्षण नहीं किया। जिस वजह से जहर सेवन के दुष्प्रभाव का हिस्टोपैथोलॉजिकल परीक्षण संभव नहीं हो सका। इस केस में हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच बेहद जरूरी थी।
इस तरह गोल्डी छाबड़ा की मौत के मामले में अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप है। इसकी पुष्टि मेडिको लीगल संस्थान के प्रभारी डॉक्टर विकास कुमार ध्रुव ने अपनी राय में की है।
FIR के लिए 7 साल किया संघर्ष
पूरे मामले में केस दर्ज करवाने के लिए गोल्डी के पिता परमजीत छाबड़ा को 7 साल तक लड़ाई लड़नी पड़ी। पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं होने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट के आदेश के बाद 4 साल तक पुलिस ने दोबारा जांच कराई। अब जाकर जांच रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने केस दर्ज किया है।
सरकंडा TI अब भी जांच के लिए बहाने बना रहे
सरकंडा टीआई जेपी गुप्ता FIR दर्ज होने के बाद भी जांच के बाद वैधानिक कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि इलाज में लापरवाही के संबंध में जांच की जाएगी। जबकि, मेडिको लीगल रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा है कि डॉक्टरों ने इलाज में लापरवाही बरती है। जिसके आधार पर ही पुलिस ने केस दर्ज किया है। यही वजह है कि इस केस में पुलिस की कार्यप्रणाली पर शुरू से ही सवाल उठ रहे हैं।
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