क्या इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे शिवराज सिंह चौहान?

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी है. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते समेत 7 सांसदों को बीजेपी ने विधायकी का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है. साथ ही बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी 10 साल के बाद फिर से प्रत्याशी बनाया गया है, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम की घोषणा अभी तक नहीं की गई. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान इस बार का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं.

बीजेपी शीर्ष नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान के करीबी नेताओं के बजाय पीएम मोदी और अमित शाह के भरोसेमंद उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दे रहा है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी उम्मीदवारों के नाम भोपाल के बजाय दिल्ली से फाइनल किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं बीजेपी ने जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान के समकक्ष नेताओं को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारा गया है, उसके सियासी निहितार्थ भी हैं. बीजेपी ने इस बार किसी भी नेता को सीएम का चेहरा नहीं बनाया है और अब दिग्गज नेताओं को उतारकर सीएम चेहरे के विकल्प को खुला छोड़ दिया है, जो सीधे शिवराज के लिए संकेत माना जा रहा है.

शिवराज सिंह चौहान साल 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, जिसके बाद 2018 तक लगातार उस पद पर बने रहे. बीजेपी ने 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को सीएम पद का चेहरा बनाया था, लेकिन इस बार पार्टी अपने पत्ते नहीं खोल रही है. मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के बजाय बीजेपी सामूहिक नेतृत्व और पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है. शिवराज सिंह चौहान 16 साल 7 महीने से मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं. स्वाभाविक रूप से शिवराज सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होना लाजमी है.

क्यों शिवराज पर दांव खेलने से बच रही बीजेपी

मध्य प्रदेश चुनाव को लेकर जिस तरह से मीडिया में सर्वे आ रहे हैं, उससे भी संकेत दिख रहे हैं कि राज्य में बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर से जूझना पड़ रहा है. यही वजह है कि बीजेपी इस बार शिवराज सिंह चौहान पर दांव खेलने से बच रही है और अब पार्टी ने दूसरी लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को मैदान में उतार दिया है. इससे साफ है कि शिवराज सिंह चौहान को आगे करके बीजेपी जोखिम नहीं लेना चाहती.

सूत्रों की मानें तो शिवराज सिंह चौहान इस बार खुद ही विधानसभा चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच सकते हैं. गुजरात विधानसभा चुनाव में पिछले साल देखा गया था कि पूर्व सीएम विजय रुपाणी और डिप्टी सीएम रहे नितिन पटेल ने खुद ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती, सुषमा स्वराज, कलराज मिश्रा जैसे कई बीजेपी के दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे. इसी फॉर्मूले पर अमल करते हुए शिवराज सिंह चौहान भी खुद चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर सकते हैं? इसके संकेत पीएम मोदी के दौरे से ही दिख रहे हैं, इसके बाद उम्मीदवारों की लिस्ट आना और उसमें शिवराज का नाम न होना इस संदेह को पुख्ता कर रहा है.

पीएम मोदी नहीं कर रहे डबल इंजन की बात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर जनता से डबल इंजन की सरकार बनाने की अपील करते हुए दिखते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में डबल इंजन की सरकार बनाने की बात नहीं कर रहे हैं. पीएम मोदी ने सोमवार को भोपाल में जन आशीर्वाद यात्रा के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एक बार भी सीएम शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं लिया. उन्होंने शिवराज की एक भी योजना का नाम भी नहीं लिया.

शिवराज सिंह लाडली बहनों को हर महीने 1250 और 450 रुपये में सिलेंडर दे रहे हैं. एमपी में गेम चेंजर कही जाने वाली योजना का भी पीएम मोदी ने उल्लेख नहीं किया. इससे संदेश साफ है कि एमपी में चुनाव सीएम शिवराज नहीं बल्कि पीएम मोदी के चेहरे और काम पर ही लड़ा जाएगा. पीएम मोदी मध्य प्रदेश जाकर शिवराज सिंह चौहान को इग्नोर कर रहे हैं तो उसके सियासी मायने हैं. सूत्रों की मानें तो यह साफ है कि बीजेपी को यह भरोसा नहीं है कि शिवराज के काम और नाम पर सत्ता में वापसी कर सकते हैं?

शिवराज के समकक्ष नेताओं को टिकट

बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर साफ तौर पर समझा जा सकता है कि पार्टी ने किस तरह से चुनावी जंग जीतने की रूप रेखा खींची है. बीजेपी की सबसे जरूरी और खास बात ये है कि जितने दिग्गज चुनावी मैदान में उतारे हैं, वो शिवराज सिंह चौहान के समकक्ष हैं. इतना ही नहीं उनमें से कई नेता पहले भी सीएम पद को लेकर अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर चुके हैं. बीजेपी ने जिस तरह केंद्रीय मंत्री और सांसद को विधानसभा का टिकट दिया है, उससे एक बात साफ है कि मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर विकल्प खुला रखा है. यही वजह है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि बीजेपी ने जिन दिग्गजों को उतारा है, वो सभी अपने-अपने क्षेत्र में मुख्यमंत्री पद के दावेदार बताने का दावा करेंगे.

शिवराज सिंह चौहान के करीबियों की बजाय पीएम मोदी के भरोसेमंद उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी गई है. हर एक राजनेता अपने-अपने इलाके में खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार बताकर पूरी ताकत से चुनाव जीतने और जिताने का प्रयास करेगा और उन सभी की अपनी-अपनी कास्ट केमिस्ट्री भी है. नरेंद्र तोमर और उदय प्रताप सिंह ठाकुर जाति से आते हैं, तो रीति पाठक ब्राह्मण समाज से आती हैं. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, सांसद गणेश सिंह और राकेश सिंह ओबीसी समुदाय से आते हैं, जबकि केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी समुदाय से आते हैं. इस तरह मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ओबीसी से लेकर आदिवासी और राजपूत वोटों को साधने के लिए सियासी बिसात बिछा दी है.

कैलाश विजयवर्गीय को उतारने का दांव

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कैलाश विजयवर्गीय को दस साल के बाद फिर से चुनावी मैदान में उतारा है. विजयवर्गीय छह बार के विधायक रह चुके हैं. बाबूलाल गौर से लेकर उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में कैलाश विजयवर्गीय मंत्री रह चुके हैं. शिवराज के साथ उनके रिश्ते छत्तीस के रहे हैं. ऐसे में विजयवर्गीय और नरेंद्र तोमर को उतारने के पीछे का सियासी मकसद समझा जा सकता है. इतना ही नहीं, ओबीसी समुदाय से राकेश सिंह और प्रह्लाद पटेल को बीजेपी ने जिस तरह विधानसभा चुनाव में उतारा है, उससे भी समझा जा सकता है कि राज्य में बीजेपी ओबीसी की नई सियासत खड़ी करना चाहती है.

आचार संहिता से कदम खींच सकते हैं

मध्य प्रदेश में चुनावी आचार संहिता लगने से पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रालय में सभी मंत्रियों, विभागों के प्रमुख सचिव और अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण बैठक की. इस दौरान कोराना जैसे संकट में भी पूरी लगन से काम करने पर टीम का आभार जताया. पौने चार साल की उपलब्धियों पर मंत्रियों और अधिकारियों की मेहनत और तत्परता को लेकर धन्यवाद और बधाई दी. मंत्रियों, सीएस एवं समस्त पीएस का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया. ऐसे में सवाल उठते हैं कि आचार संहिता लागू होने से पहले अधिकारियों का धन्यवाद देना कहीं चुनावी मैदान से शिवराज चौहान के कदम खींचने के संकेत तो नहीं हैं?

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]