Chanakya Niti। आचार्य चाणक्य ने अपने चाणक्य नीति ग्रंथ में जीवन दर्शन को लेकर विस्तार से जिक्र किया है। आचार्य चाणक्य के मुताबिक, हर व्यक्ति जीवन में सुख-समृद्धि चाहता है। इसके लिए कई बार व्यक्ति भौरे के समान भी व्यवहार करता है।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस प्रकार भौरे पुष्पकाल बीत जाने पर फूलों से रहित आम के वृक्ष को त्याग देते हैं, उसी प्रकार धन की चाह रखने वाला व्यक्ति निर्धन व्यक्ति से अपनी इच्छा की पूर्ति न होते देख उसे त्याग देता है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि यदि बुद्धिमान व्यक्ति निर्धन है तो यह उस समाज अथवा राष्ट्र का कर्तव्य है कि उसे उपेक्षित होने से बचाए। संसार में सभी को धन की जरूरत होती है परंतु जब लोग निर्धन व्यक्ति से किसी प्रकार की आशा पूर्ति होते नहीं देखते तो उसका त्याग कर देते हैं।
विद्या धनमधनानाम्
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि विद्या ही निर्धन लोगों का धन है। निर्धन व्यक्ति का सम्मान उसके ज्ञान के कारण होता है। निर्धन व्यक्ति यदि विद्वान है तो वह आवश्यकतानुसार धन उपार्जन भी कर सकता है, इसलिए विद्या को निर्धनों का ऐसा धन माना जाता है, जिससे उन्हें सम्मान प्राप्त होता है।
विद्या चौरैरपि न ग्राह्या
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि विद्या मनुष्य का एक ऐसा गुप्त धन है, जिसे चोर भी नहीं चुरा सकते, इसलिए विद्या रूपी धन को सभी धनों में श्रेष्ठ माना गया है। विद्या से मनुष्य के यश का विस्तार होता है। विद्वान् व्यक्ति जहां भी जाता है उसका सम्मान किया जाता है। जिस प्रकार दीपक का प्रकाश छिपा नहीं रह सकता, उसी प्रकार विद्वान् व्यक्ति की योग्यता भी अपने आप प्रकट हो जाती है। जिस प्रकार ज्ञानी मनुष्य पात्र व्यक्ति को दान करने से पुण्य और यश का भागी होता है, उसी प्रकार विद्वान् व्यक्ति भी विद्या का दान देकर निरंतर अपने यश में वृद्धि करता है।
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