दहेज उत्पीड़न या दुष्कर्म के झूठे आरोप अत्यधिक क्रूरता की श्रेणी में, इसमें कोई माफी : हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पति व परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न या दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाना अत्यधिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसके लिए कोई माफी नहीं दी जा सकती।

यह तलाक का भी ठोस आधार है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने यह कहते हुए पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा जिसमें एक पति को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक की अनुमति दी गई थी।

पत्नी की अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि वर्ष 2012 में शादी होने के बाद दोनों वर्ष 2014 से अलग-अलग रह रहे थे। इससे साबित होता है कि वे वैवाहिक संबंध बनाए रखने में असमर्थ थे। इससे एक-दूसरे को आपसी सहयोग और वैवाहिक रिश्ते से वंचित होना पड़ा। लगभग नौ साल का इस तरह का अलगाव अत्यधिक मानिसक क्रूरता का उदाहरण है। पति ने दावा किया था कि विवाह संपन्न नहीं हुआ है, लेकिन उसकी खुद की दलीलों से पता चलता है कि पत्नी संभोग के उसके प्रयास का विरोध करती थी और हमेशा अनिच्छुक रहती थी।

इसके अलावा पति ने खुद गवाही दी थी कि उसने पत्नी को अपने साथ डाॅक्टर के पास जाने के लिए कहा था, क्योंकि कोई बच्चा नहीं हो रहा था। एक जोड़े को एक-दूसरे के साथ और वैवाहिक रिश्ते से वंचित किया जाना क्रूरता की चरम सीमा है। इस दृष्टिकोण को सुप्रीम कोर्ट ने भी समर्थन दिया है। इस बात को दोहराने की जरूरत नहीं है कि किसी भी वैवाहिक रिश्ते की आधारशिला सहवास और वैवाहिक संबंध है।

किसी जोड़े को एक-दूसरे के साथ से वंचित किया जाना यह साबित करता है कि शादी कायम नहीं रह सकती। साथ ही, वैवाहिक रिश्ते से इस तरह वंचित करना अत्यधिक क्रूरता का कार्य है। पीठ ने यह भी नोट किया कि पति और भाई को पत्नी की ओर से लगाए गए दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ न केवल दहेज उत्पीड़न, बल्कि दुष्कर्म के गंभीर आरोप लगाना जो झूठा पाया गया अत्यधिक क्रूरता का कार्य है। इसके लिए कोई माफी नहीं हो सकती। पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दाखिल की गई झूठी शिकायतें उसके खिलाफ मानिसक क्रूरता है।


पति ने यह भी दावा किया कि पत्नी शादी के दिन से घरेलू कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही और उसे व परिवार के सदस्यों को बताए बिना अक्सर माता-पिता के घर जाती थी। उसने आत्महत्या करने और उसे व परिवार के सदस्यों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी भी दी थी। इस तरह से पारिवारिक अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला है कि प्रतिवादी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक का हकदार है।